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कोसी के कटाव में ताश के पत्तों की तरह नदी में समा रहे घर, गांवों में मरघट सा माहौल, हर ओर आंसुओं की धार

कोसी के कटाव में ताश के पत्तों की तरह नदी में समा रहे घर, गांवों में मरघट सा माहौल, हर ओर आंसुओं की धार

भागलपुर: कोसी को सचमुच शोक की नदी कहा जाता है। कोसी में उफान आना शुरू हो गया है और लोगों की तबाही शुरु हो चुकी है। गांव के गांव जलमग्न होने लगे हैं। लोग अपने गांव घर को छोड़कर पलायन करना शुरू कर दिए हैं। नवगछिया के गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र के जहांगीरपुर बैसी और उसके आस पास के गांव में कोसी का तांडव देखा जा रहा है। पिछले तीन दिनों के अंदर दस से पंद्रह घर कोसी के गोद में समा चुके हैं। वही गांव पर भी लगातार कटाव का खतरा मंडरा रहा है। 

जहांगीरपुर बैसी गांव से सटे कई गांव के लोग डरे सहमे हैं। रात भर सोते नहीं। जिसको लेकर एक तरफ जहां ग्रामीण दहशत में है। कटाव से कई घर जलमग्न होने के बाद 3 दिनों से लोगों को निवाला तक नहीं मिला है। वही पुरुषों के साथ साथ घर की महिलाएं भी घर तोड़ने में लगी हुई है। गांव के सैकड़ों लोग पलायन करने लगे हैं। 

पिछले साल ही हुषण बेगम ने अपना घर बनाया था। लेकिन साल भर के बाद ही उन्हें अपना आशियाना अपने हाथों से तोड़ना पड़ा है, महिलाओं की आंखों में आंसू है और अपना आशियाना तोड़ कर रो रही हैं। इन लोगों का कहना है कि कुछ ईट बच जाएगा तो राहत होगी। वहीं लोगों का आरोप है कि अभी तक ना तो प्रशासन देखने आया और ना ही कोई जनप्रतिनिधि इनका हाल लेने आया है। मुसीबत की इस घड़ी में किसी प्रकार जिंदगी की जद्दोजहद खुद लड़ रहे हैं।

कोसी के तांडव के कारण कई घर जलमग्न हो चुके हैं. वहीँ कई गांव के अब पलायन करने को विवश हो चुके हैं.  गांव का गांव बाढ़ और कटाव के कारण वीरान होने लगा है. एक ओर उफान मार रही कोसी की धारा है, दूसरी तरफ फूट रही आंसुओं की धार है. बेबसी और लाचारी का ऐसा आलम है कि लोग हर किसी बाहरी को उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं. कोसी में विलीन होने से पहले लोग अपने घरों से सामान तो सुरक्षित निकाल ले रहे हैं, लेकिन जिंदगी भर की मेहनत और पाई-पाई इकट्ठा कर बनाये गये आशियाने को नहीं बचा पा रहे हैं. 

मंजी बेगम का घर तीन दिन पहले कट चुका, उसका पूरा परिवार खुले आसमान में रह रहा है. मो इस्तेखार कहते हैं लगता है, गांव मरघट में तब्दील हो गया है. हर वक्त रोने की आवाजें आती हैं. गांव के लोगों ने पूर्व सरपंच अब्दुल गफ्फार को इतना कमजोर कभी नहीं देखा. जब कभी विपरीत परिस्थिति आयी तो अब्दुल ने अपने मजबूत इरादों से उसका सामना किया और जीते भी. लेकिन चार दिन से उनकी आंखों से भी आंसू रुक नहीं रहे. कहते हैं चार साल से दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते थक गया, लेकिन कोई भी रहनुमा नहीं आया. आज उनकी पूरी बस्ती कोसी में विलीन होने को है, तब भी साहब कह रहे हैं मेरे हाथ बंधे हैं.


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