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अब नहीं दिखती देशी दारू की भट्ठियां, धूएं वाली हांडी की कटिहार के इस इलाके में महिलाएं खेती से ला रही हैं बदलाव

अब नहीं दिखती देशी दारू की भट्ठियां, धूएं वाली हांडी की कटिहार के इस इलाके में महिलाएं खेती से ला रही हैं बदलाव

KATIHAR : कटिहार के आदिवासी बहुल हसनगंज प्रखंड के आदिवासी टोला में नदियों के आस पास धधकती भट्ठियों में देशी शराब बनाए जाने से मयखाना जैसे माहौल की चर्चा अब बीते कल की बात हो चुकी है, कल तक इन भट्ठों में अपने प्रतिष्ठा दांव में लगाकर शराब परोसने वाली महिलाएं अब उस जिंदगी से तौबा करते हुए बहुत आगे निकल चुकी है। अब यहां देसी शराब बनाने के लिए हांडियो से धूएं नहीं निकलते हैं, बल्कि उसकी जगह इस सुदूर इलाके में अब महिलाएं पुरुष के दबदबा बाले मखाना खेती में अपने हाथ आजमा रही है। अब उनके लिए यही रोजगार का जरिया बन गया है। 

शुरुआत में हुई परेशानी, फिर सब कुछ ठीक हो गया

जीविका के पहल पर नदियों से घिरे इस इलाके में बड़े पैमाने पर कभी मयखाने के हिस्सा रहे ये दीदीया अब मखाना की खेती कर किसान दीदी बनकर  प्रतिष्ठित जिंदगी जी रहे है, इन दीदीओ के माने तो मजबूरी में शराब  भट्टीयों के हिस्सा रहने के बाद अब इससे मुक्ति मिलने से पहले कुछ दिन तो रोजगार का संकट हुआ था मगर अब जीविका के सहयोग से उन लोगों ने इस इलाके में पारंपरिक खेती से अलग हटकर तेजी से मुनाफा देने वाले मखाना खेती से जुड़कर अपनी किस्मत के साथ साथ प्रदेश की तस्वीर बदलने की कोशिश कर रहे हैं।

पुरुषों के लिए मानी जाती है खेती

आम तौर पर खेती किसानी का काम पुरुषो के लिए माना जाता है। लेकिन हसनपुर के आदिवासी टोला की महिलाओं ने इसे गलत साबित कर दिया है। घर की चौकी से बाहर निकलकर अब वह खुद खेतों में पहुंच रही है। यह स्थिति टोले के एक घर की नहीं है, बल्कि पूरे इलाके की है। ज हसनगंज प्रखंड के आदिवासी टोला में मायखाना से तौबाकर मखाना की खेती के सहारे अपने जीवन को बदले रही इन महिलाओं को अब किसी का डर नहीं है। इससे होनेवाली आय से वह अपना परिवार बेहतर तरीके से अब चला पा रही हैं। 

जीविका से जुड़े डा. नीतीश कुमार  ने बताया कि शुरुआत में इलाके के कुछ महिलाएं ही इससे जुड़ी, लेकिन धीरे धीरे और महिलाएं भी मखाने की खेती से जुड़ने लगी। हमारी तरफ से उन्हें जरुरी सुविधा मुहैया करवाई गई। जिसका नतीजा यह हुआ कि अब गांव की बहुत सी महिलाएं इस पेशे से जुड़ने लगी हैं। 


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