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JDU एमएलसी नीरज कुमार ने लालू परिवार से पूछा, भूमि विवाद या भूमि बंटवारा,क्या है RJD का विकास मॉडल?

JDU एमएलसी नीरज कुमार ने लालू परिवार से पूछा, भूमि विवाद या भूमि बंटवारा,क्या है RJD का विकास मॉडल?

लालूवाद का भूमिहीनों के साथ वादाखिलाफी ।

भूमि विवाद या भूमि बँटवारा ? क्या है राजद का विकास का मॉडल

PATNA : राजद के 25 साल पूरे होने पर जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार हर दिन लालू परिवार के शासन की पोल खोल रहे हैं, इस कड़ी में उन्होंने इस बार लालूवाद में भूमिहिनों के साथ वादाखिलाफी को लेकर बड़ा हमला किया है। उन्होंने राजद नेताओं से पूछा है कि क्या यह सच नहीं कि लालू यादव ने अपने शासनावधि में सत्ता के तिकड़म से गरीब-गुरबों-मजलूमों से ऐनकेन प्रकारेण उनकी जमीनें हथिया ली। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जमींदारी खत्म कर दिया गया परंतु लालू यादव सत्ता पाते ही खुद को जमींदारी मनोवृत्ति का शिकार बना लिया और अधिकाधिक भूमि पर काबिज होने लगे जिसका परिणाम है खुद तो चारा घोटाले में सजायाफ्ता हैं ही परिवारजन भी दर्जनों मामलों के आरोपी बने बैठे हैं। 

नीतीश कुमार ने दिलाया अधिकार

नीरज कुमार ने नीतीश सरकार की सामाजिक परिवर्तन मॉडल को केंद्र में भूमिहीनता के सवाल को रखा गया। संयुक्त राष्ट्र संघ में वर्ष 1996 में हुए Human Settlements (Habitat II) सम्मेलन में अपनी भूमि पर घर के अधिकार को मौलिक अधिकार से जोड़ा था। भारत के कई राज्यों ने इस विषय पर भूमिहीन जनता को घर के लिए न्यूनतम ज़मीन पर मालिकाना हक़ देने के लिए योजनाएँ बनाई लेकिन बिहार के भूमिहीन ग़रीबों को इस सम्मान को पाने के लिए नीतीश सरकार का इंतज़ार करना पड़ा। उन्होंने कहा कि सत्ता में आते ही नीतीश कुमार ने 2006-07 में इस विषय पर अध्ययन करने के लिए एक विशेष समिति और एक महादलित समिति का गठन किया जिसने वर्ष 2008 में अपनी रिपोर्ट सौंपी और उसी वर्ष 2008 में राज्या सरकार ने बिहार की भूमिहीन दलित और पिछड़ों को घर बनाने के लिए महादलित आवास भूमि योजना  के तहत प्रत्येक परिवार को तीन डिस्मिल ज़मीन देने की घोषणा कर डाली। जिसे बाद में बढ़ाकर पाँच डिस्मिल कर दी गई। 

वर्ष 2015-16 के अपने रिपोर्ट में भूमि सुधार विभाग ने पूरे बिहार में 238,606 महादलित परिवारों को 7284.8 एकड़ ज़मीन बाटे जो सरकार द्वारा तय लक्ष्य का लगभग 99% था।  इस उपलब्धि को पाने के लिए सरकार ने कुछ तरीक़े अपनाए: 

•    GMK ज़मीन : ज़मींदारों के क़ब्ज़े की ग़ैरमजरुआ ज़मीन को भूमिहीन को बाटना 

•    GMA ज़मीन : गाँव की ग़ैरमजरुआ ज़मीन को भूमिहीन को बाटना 

•    बिहार रैयती ज़मीन ख़रीद पॉलिसी 2010: सरकार भूमिहीनो को घर बनाने के लिए नीती ज़मीन ख़रीदकर देगी या उन्हें ज़मीन ख़रीदने के लिए आर्थिक सहायता करेगी। 

इतना ही नहीं सरकार ने भूमिहीन को दिए इस ज़मीन को किसी को भी ख़रीदने का अधिकार नहीं दिया। महादलित परिवार के लिए वर्ष 2016-17 के बिहार राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण में इससे सम्बंधित तीन योजनाओं का वर्णन किया गया है: महदलित विकास योजना, गृहस्थल योजना और ट्राइबल सब-प्लान। इसके अलावा वर्ष 2011 में बिहार लैंड म्यूटेशन ऐक्ट बनाया गया, वर्ष 2012 में बिहार लैंड रेफ़ोर्म ऐक्ट (1962) को संसोधित किया गया ताकि भूमिहीन को बाटे जा रहे ज़मीन का आधा हिस्सा पर महिलाओं का मालिकाना अधिकार हो। 

तोडरमल योजना में कितने लोगों को दिया लाभ

1990 में जब RJD सत्ता में भूमिहीनों को ज़मीन देने के नाम पर सत्ता में आइ तो प्रदेश के ग़रीबों को उम्मीद बनी पर सत्ता में आने के बाद अपने पहले कार्यकाल के दौरान सरकार ने इस विषय पर मौन हो गई। नीरज कुमार ने कहा राजद ने अपने दूसरे कार्यकाल में भूमिहीन लोगों को जमीन देने के लिए तोडरमल योजना की घोषणा की थी। क्या RJD बता पाएगी कि तोडरमल योजना के तहत कितने भूमिहीन लोगों को ज़मीन दी गई थी? इस योजना को लागू करने में बाधा उत्तपन्न करने वाले लोगों को दंडित करने के लिए ऑपरेशन कालदूत और पुरस्कृबत करने के लिए ऑपरेशन देवदूत की घोषणा की गई, परन्तु  1999 के एक साक्षात्कार में लालू यादव जी ने भूमिहीन को भूमि बँटवारे के सवाल को निरर्थक बताते हुए कहा था कि बिहार में मुफ़्त बाटने के लिए ज़मीन ही नहीं है और न ही उसकी ज़रूरत है। 

जबकि योजना आयोग से लेकर कई अन्य रिपोर्ट में बिहार में ऐसी हज़ारों एकड़ ज़मीन उपलब्ध होने का दावा किया जिसे सरकार भूमिहीनों को बांट सकती थी। नीतीश सरकार ने न सिर्फ़ उन जामिनों को भूमिहीनों के बीच बाँटा बल्कि भूमिहीनों के लिए निजी जामिनों को ख़रीदकर बाँटा। इस प्रक्रिया में हो रहे देरी को दूर करने के लिए वर्ष 2018 में मुख्य्मंत्री नीतीश कुमार ने भूमिहीनों को ज़मीन ख़रीदने के लिए नगद 60,000 रुपए सीधे उनके बैंक खाते में देने की योजना बनाई। 

अंतर साफ़ है भूमि के सहारे लोगों को सम्मान दिलाने का नीतीश कुमार मॉडल शांति, क़ानून, सामाजिक समरस्ता, और राजकीय ज़िम्मेदारी की थी और आपका  मॉडल सामाजिक द्वेष, वैमनस्यता, अराजकता और हिंसा पर आधारित था।

RJD के काल में बढ़ी भूमिहीन की संख्या

इतना ही नहीं NSSO के रिपोर्ट के अनुसार RJD सरकार के कार्यकाल के दौरान प्रदेश में भूमिहीन ग्रामीण जनता का अनुपात 67% से बढ़कर 75% हो गया। एक अन्य रिपोर्ट में वर्ष वर्ष 1992 और 2003 के दौरान पूरे बिहार में कम से कम 6% भूमिहीन  लोगों की वृद्धि होने का दावा किया गया। वर्ष 1992 और 2003 के दौरान बड़े भू-धारी के क़ब्ज़े की ज़मीन का अनुपात 4.44% से बढ़कर 4.63% हो गया। 

ये आंकड़े फर्जी सामाजिक न्यामय का फर्जी नारा लगाने वाले की उपलब्धि है।  इसी तरह वर्ष 1991-92 और 1995-96 के दौरान बिहार का कृषि वृद्धि दर -2% था और 1996 से 2002 के दौरान 0.8% था जबकि राष्ट्रीय औसत 3% रहा। कृषि के प्रति उदासीनता ग्रामीण गरीब और दलितों के प्रति उदासीनता थी क्यूँकि ज़्यादातर दलित और गरीब कृषि पर ही निर्भर थे और यही कारण है कि वर्ष 1991 और 2001 के दौरान बिहार से होने वाले पलायन में 200% की वृद्धि हुई।

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