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‘लौंडा नाच’ का अस्तित्व बचाने लालू यादव ने फिर से दिया संदेश, राजद नेताओं ने राबड़ी आवास में देखा ऐतिहासिक महत्व वाला लौंडा नाच

‘लौंडा नाच’ का अस्तित्व बचाने लालू यादव ने फिर से दिया संदेश, राजद नेताओं ने राबड़ी आवास में देखा ऐतिहासिक महत्व वाला लौंडा नाच

पटना. बिहार की लोक संस्कृति की जानदार नृत्य विधा लौंडा नाच भले ही विलुप्तप्राय हो रही हो. लेकिन, राजद सुप्रीमो लालू यादव समय समय पर इस ‘लौंडा नाच’की विधा को जीवंत बनाए रखने का संदेश देते रहते हैं. एक बार फिर से ऐसा ही देखने को मिला है. बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर  लौंडा नाच का आयोजन हुआ. इसे देखने राजद के कई नेताओं का हुजूम जुटा जिसमें खुद लालू यादव भी शामिल रहे. वहीं उनके उनके बेटे तेज प्रताप यादव, विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी सहित कई अन्य नेता सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में  लौंडा नाच देखते दिख रहे हैं. 

लालू यादव शुरू से अपने पार्टी के आयोजनों में लौंडा नाच कराने के लिए जाने जाते हैं. हालांकि लौंडा नाच दिन प्रतिदिन अब विलुप्तप्राय होता जा रहा है. लेकिन लालू यादव ने एक बार फिर से राबड़ी आवास में लौंडा नाच कराकर बिहार की इस लोक विधा को नए सिरे से पेश करने की कोशिश की है. लालू यादव पहले भी कई मंचों पर कह चुके हैं कि लौंडा नाच बिहार की लोक संस्कृति की पुरातन पहचान है. वहीं लालू यादव जिस भोजपुर इलाके से आते हैं वहां लौंडा नाच की ऐतिहासिक महत्ता रही है. हालिया समय में भले ही इस विधा को कई चुनौतियों का सामना करना पद रहा हो लेकिन लौंडा नाच का एक ऐतिहासिक कालखंड रहा है.

दरअसल, लौंडा नाच की उत्पत्ति बिहार का भोजपुर क्षेत्र मानी जाती है. इसलिए इसे भोजपुरी लोक नृत्य कहा जाता है. मौजूदा लौंडा नाच की शुरुआत 11वीं सदी में मानी जाती है. हालांकि यह देश विदेश में 19वीं सदी में लोकप्रिय हुआ.  यह लोक नृत्य बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के अलावा नेपाल, मॉरीशस और कैरेबियन द्वीप समूह में देखने को मिलता है. 19वीं सदी तब महिलाओं के स्टेज पर जाने और नाचने की मनाही थी, क्योंकि स्त्री का स्टेज पर जाकर नाचना लज्जाजनक माना जाता है. ऐसे समय में छोटी जाति के पुरुष स्त्रियों का रूप धारण करके स्टेज पर प्रदर्शन करते थे. 

लौंडा नाच को लोकप्रिय बनाने का श्रेय भिखारी ठाकुर को जाता है. उनके द्वारा 1917 में स्थापित नाच मंडली में उस दौर में भोजपुरी समाज की समस्याओं और चुनौतियों को दर्शाया जाता था. साथ ही उसी दौर में मंचों पर पुरुष ही महिला के वेश में आते थे और नाचते थे जो लौंडा नाच था. बाद में प्रसिद्ध लोक कलाकार रामचंद्र मांझी लौंडा नाच के मशहूर नर्तक हुए. उन्हें इस विधा के लिए पद्मश्री भी मिला था. 990 के बाद आर्केस्ट्रा और नर्तकियों के दौर में लोग लौंडा नाच से विमुख होने लगे. लेकिन बदले दौर में भी लालू यादव ने एक बार फिर से अस्तित्व बचाने को जूझते लौंडा नाच को कराकर बिहार की लोक संस्कृति से सबको परिचित कराया है. 

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