PATNA : बिहार ही नहीं देश की राजनीति में भी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को माहिर खिलाड़ी माना जाता है। यहीं वजह रही की उन्होंने बिहार के दिल्ली में भी राजनीति के कई दिग्गज खिलाडियों को मात दी है। आज भी जब देश में लोकसभा का चुनाव हो रहे हैं। लालू यादव की अहमियत काफी बढ़ गयी है। यहाँ तक महागठबंधन में शामिल अन्य दलों के किस्मत का फैसला भी लालू यादव ही कर रहे हैं। उनके द्वारा दी गयी सीटों पर कांग्रेस को लड़ने के लिए लगभग मजबूर होना पड़ा है। चाह कर भी कांग्रेस कन्हैया, निखिल कुमार और पप्पू यादव जैसे नेताओं को टिकट नहीं दिला पायी। वहीँ कई उम्मीदवार ऐसे उतारे गए। जहाँ पिछले कई सालों से कांग्रेस जीत का मुंह नहीं देख पायी है। इसमें भागलपुर और महाराजगंज की सीट भी है।
अब बात करते हैं बिहार के औरंगाबाद सीट की। जहाँ से इस बार के लोकसभा चुनाव में जदयू छोड़कर राजद में शामिल हुए अभय कुशवाहा को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है। हालाँकि यह सीट कांग्रेस के कोटे में जाती तो निखिल कुमार एनडीए के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह को कड़ी टक्कर दे सकते थे। लेकिन राजद ने इसे अपने कोटे में लेकर अभय कुशवाहा को मैदान में उतार दिया है। जो टेकारी से कभी जदयू के विधायक हुआ करते थे। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में वे बेला से खड़े हुए।
यहां राजद के सुरेंद्र यादव से पराजित हो गए। इसमें कोई दो राय नहीं ही कुछ ही दिन पहले जदयू छोड़ राजद आए अभय कुशवाहा प्रयोगधर्मी लालू प्रसाद यादव के मोहरे बन कर आए हैं, जिन्हे राजपूत मतों के विरुद्ध अन्य जातियों की गोलबंदी कर एक नया चुनावी इतिहास बनाने का जिम्मा सौंपा है।
आधार यह है कि औरंगाबाद लोकसभा में आने वाले छह विधानसभा में चार पर महागठबंधन के विधायक हैं। जिसमें दो पर कांग्रेस और दो पर राजद के विधायक जीतकर आये हैं। जबकि इमामगंज से हम के जीतनराम मांझी और टेकारी से हम के ही अनिल कुमार विधायक है। यानी की लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा में एनडीए बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पायी। लालू यादव के इस बार के प्रयोग का फायदा महागठबंधन को आगामी विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। अभय कुशवाहा यदि राजपूत मतदाताओं को साधने में कामयाब हो जाते हैं तो औरंगाबाद की सभी सीटों पर महागठबंधन का दबदबा हो सकता है।