पटना. राजद सुप्रीमो लालू यादव बिहार के लोक नृत्य 'लौंडा नाच' को हमेशा से अपने कार्यक्रमों में जगह देते रहे हैं. रविवार को पटना में आयोजित जन विश्वास महारैली के दौरान भी 'लौंडा नाच' का आकर्षण बना रहा. राजद समर्थकों के साथ झूमते-गाते लोक कलाकारों ने जमकर लौंडा नाच किया. अपने नेता की रैली को सफल बनाने के लिए लौंडा नाच के कलाकारों ने पटना की सड़कों को खूब ठुमके लगाए. इस दौरान उनके साथ राजद समर्थकों की उमड़ी भारी भीड़ भी खूब उत्साहित दिखी.
जन विश्वास महारैली में रविवार को पटना के गांधी मैदान विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया का महाजुटान हो रहा है. राजद की अगुआई में कांग्रेस और वामदलों के तमाम शीर्ष नेता पटना में शिरकत कर रहे हैं. ऐसे में अपनी सियासी रैलियों के लिए मशहूर राजद सुप्रीमो लालू यादव और तेजस्वी यादव के समर्थक भी इस रैली को लेकर काफी उत्साहित नजर जा रहे हैं.
पूरा पटना शहर राजद और महागठबंधन के नेताओं-कार्यकर्ताओं, उनके पोस्टर-बैनरों और कट आउटों से अटा पड़ा है. गांधी मैदान के चारों तरफ़ सड़कों पर, रेलवे स्टेशन और बस अड्डों के आसपास भी राजद के झंडे डंडों के साथ कार्यकर्ताओं का हुजूम दिख रहा है. वह भी ऐसे समय में जब पटना में रविवार की सुबह बूंदाबादी वाली है. लोकसभा चुनाव के पहले विपक्षी एकजुटता और अपनी ताकत दिखाने के आयोजित इस जन विश्वास महारैली में लालू यादव और तेजस्वी यादव मुख्य रूप से अपनी ताकत दिखा रहे हैं. ऐसे में लौंडा नाच के कलाकारों ने भी खूब बढ़चढ़कर हिस्सा लिया.
क्या है लौंडा नाच : दरअसल, लौंडा नाच की उत्पत्ति बिहार का भोजपुर क्षेत्र मानी जाती है. इसलिए इसे भोजपुरी लोक नृत्य कहा जाता है. मौजूदा लौंडा नाच की शुरुआत 11वीं सदी में मानी जाती है. हालांकि यह देश विदेश में 19वीं सदी में लोकप्रिय हुआ. यह लोक नृत्य बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के अलावा नेपाल, मॉरीशस और कैरेबियन द्वीप समूह में देखने को मिलता है. 19वीं सदी तब महिलाओं के स्टेज पर जाने और नाचने की मनाही थी, क्योंकि स्त्री का स्टेज पर जाकर नाचना लज्जाजनक माना जाता है. ऐसे समय में छोटी जाति के पुरुष स्त्रियों का रूप धारण करके स्टेज पर प्रदर्शन करते थे.
लौंडा नाच को लोकप्रिय बनाने का श्रेय भिखारी ठाकुर को जाता है. उनके द्वारा 1917 में स्थापित नाच मंडली में उस दौर में भोजपुरी समाज की समस्याओं और चुनौतियों को दर्शाया जाता था. साथ ही उसी दौर में मंचों पर पुरुष ही महिला के वेश में आते थे और नाचते थे जो लौंडा नाच था. बाद में प्रसिद्ध लोक कलाकार रामचंद्र मांझी लौंडा नाच के मशहूर नर्तक हुए. उन्हें इस विधा के लिए पद्मश्री भी मिला था. 990 के बाद आर्केस्ट्रा और नर्तकियों के दौर में लोग लौंडा नाच से विमुख होने लगे. लेकिन बदले दौर में भी लालू यादव ने एक बार फिर से अस्तित्व बचाने को जूझते लौंडा नाच को कराकर बिहार की लोक संस्कृति से सबको परिचित कराया है.