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मानो या न मानो पुरुष भी होते हैं बलात्कार के शिकार

मानो या न मानो पुरुष भी होते हैं बलात्कार के शिकार

डेस्क... दुनियाभर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बहुत सारे कानून है पर क्या आप को पता है दुनियाभर में कई पुरुष हैं जो प्रताड़ना का शिकार होते हैं लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि उनके लिए कोई नहीं लड़ता. कोई महिला अगर किसी पुरुष को सड़क पर मारे तो लोग कहते हैं- 'अच्छा है और पीटो', 'लड़के ने ही कुछ बुरा किया होगा'.वहीं कई बार तो लोग खुद भी लड़के को पीटना शुरू कर देते हैं.ठीक ऐसे ही अगर कोई पुरुष किसी महिला को सड़क पर मार दे तो लोग महिला के सहयोग में खड़े हो जाते हैं और उसे बचाने के लिए चले जाते हैं.इस मामले में भी पुरुष ही बुरा साबित होता है.अगर कोई महिला किसी पुरुष पर झूठा आरोप भी लगा दे तो लोग उस महिला को इंसाफ दिलवाने के बारे में बात करते हैं, हैशटैग चलाते हैं, ट्रेंड चलाते हैं, केंडल मार्च निकालते हैं , नारे लगाते हैं, बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और सबसे बड़ी बात तो ये है कि इसमें राजनेता से लेकर बॉलीवुड सेलेब्स तक चले आते हैं और इंसाफ के लिए कहते हैं. वहीं अगर उसी महिला की जगह पुरुष हो तो उसे कहा जाता है- 'क्यों झूठ बोल रहे हो', 'ये आदमी झूठा है', 'तुम मर्द हो तुम्हारे साथ ऐसा हो ही नहीं सकता', 'तुमने ही कुछ किया होगा और इल्जाम दूसरों पर लगा रहे हो'. ऐसे ही कई आरोपों का मर्द को सामना करना पड़ता है. एक मर्द कभी रो नहीं सकता क्योंकि वो मर्द है. एक मर्द अपना दर्द नहीं बता सकता क्योंकि वह मर्द है. एक मर्द कभी किसी महिला पर घिनौने इल्जाम नहीं लगा सकता क्योंकि वो मर्द है.... ये किस दुनिया में जी रहे हैं हम, ये कैसा समाज है, ये कैसे लोग हैं, ये क्या हो रहा है...? लोगों की मानसिकता की दाद देनी होगी, एक तरफ कहते हैं महिला-पुरुष समान है और दूसरी तरफ जब महिला अपना दर्द बताती है तो पिघल जाते हैं और जब पुरुष अपना दर्द बताता है तो सख्त हो जाते हैं.. कभी -कभी ऐसा लगता है मानों एक मर्द होना गुनाह है.. 

पुरुष के साथ बलात्कार हुआकोई नहीं मानता-हम उस समाज का हिस्सा है जहाँ अगर कोई पुरुष कह दे कि उसके साथ जबरदस्ती की गई है तो सब हँसते हैं और उसकी बात को मानने से साफ़ इंकार कर देते हैं..। अगर कोई पुरुष किसी महिला की गंदी नजरों का शिकार हो जाता है तो इसमें उसकी क्या गलती और उसकी बात को लोग क्यों नहीं मानते..? ये एक बड़ा सवाल है जो बरसो से चला आ रहा है. साल 2017 का एक मामला है जिसमे एक पुरुष को तीन महिलाओं ने कैद कर लिया था तो 30 दिन तक उसके साथ बलात्कार हुआ. वहीं जब यह मामला सामने आया तो किसी ने कुछ नहीं कहा और ना ही किसी ने उसकी बात को माना. ऐसा ही एक मामला रूस से सामने आया था. यहाँ एक महिला ने 10 पुरुषों को अपनी गंदी नजरों का शिकार बनाया था. वहीं एक मामला साल 2015 का है जो अमेरिका का है. यहाँ एक गर्भवती महिला ने पुरुष के साथ बलात्कार किया था। यह सब ऐसे मामले हैं जिन्हे जानने के बाद या तो किसी ने यकीन नहीं किया या फिर ये यूँ ही रह गए. ये पुरुष वो हैं जिनके लिए न सोशल मीडिया पर ट्रेंड चला, न उनके हक के बारे में बात हुई और ना ही उनके लिए कोई सड़क पर आया.

बढ़ते जा रहे पुरुष प्रताड़ना के मामले-एक रिपोर्ट को माने तो देश में साल 2014 में ऐसे पुरुषों के 38 हजार कॉल आए, जो प्रताड़ित हुए हैं। इनमे सबसे अधिक फ़ोन छग और मप्र के पुरुषों के आए जो पत्नियों के द्वारा प्रताड़ित हुए। नेशनल हेल्पलाइन नंबर 08882498498 पर हर दिन लगभग 40 कॉल्स आती हैं जो उन पुरुषों की होती हैं जो अपनी पत्नी से प्रताड़ित होते हैं। कर्नाटक, दिल्ली के भी यही हाल हैं। साल 2020 में जितनी भी प्रताड़ना से जुडी शिकायत आईं उनमे से 30 से 40 फीसदी पुरुषों की ही रहीं। कोई अपनी बीवी से परेशान है तो कोई अपने ससुराल वालों से। कई पुरुष तो कॉल करके यह कहते नजर आए कि 'मेरी पत्नी के अवैध संबंध है और जब मैंने उसे छोड़ने के लिए कहा तो उसने दहेज़ प्रताड़ना का केस लगाने की धमकी दी।' ऐसे ही अन्य कई पुरुष भी रहे जिन्होंने अपनी इसी तरह की शिकायतें बताई। अगर साल 2020 के बारे में बात करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक़ जिस तरह लॉकडाउन के दौरान महिलाएं प्रताड़ित हुईं ठीक वैसे ही पुरुष भी प्रताड़ित हुए। लॉकडाउन के दौरान भी हर दिन 30 से 35 शिकायतें पुरुषों की आईं जो अपनी पत्नी, अपने ससुरालवालों से परेशान रहे।

बढ़ते पुरुषों के आत्महत्या के मामले-देश में पुरुषों की आत्महत्या की दर महिलाओं की तुलना में दो गुना अधिक है. दिन पर दिन पुरुषों के खिलाफ बढ़ रहे अपराध के मामले उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर करते हैं. इन आत्महत्या के मामलों के पीछे सबसे अधिक जो कारण सामने आए वह रहे घरेलू हिंसा. पुरुष अपनी पत्नियों के द्वारा हिंसा का शिकार होते हैं और उसके बाद वह इस बारे में किसी से कुछ कह भी नहीं पाते क्योंकि वह जानते हैं कोई उनकी बात पर यकीन नहीं करेगा. कई बार पुरुष तानों से बचने के लिए किसी को नहीं बताते, क्योंकि समाज को अगर यह बात पता चलेगी तो वह यही कहेगा- 'क्या भाई पत्नी से पीटकर आया है', 'पत्नी से मार खा ली, कैसे मर्द हो तुम' इस तरह के तानों से बचने के लिए पुरुष अपने साथ हुई हिंसा को जाहिर नहीं करते. कई बार पुरुष कानून की मदद लेने से भी हिचकिचाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कानून एक तरफ रुख लेगा और कहीं ना कहीं उनकी गलती निकालकर उन्हें ही दोषी माना जाएगा. देखते ही देखते पुरुष अंदर ही अंदर घुटते हैं और एक दिन जान दे देते हैं.

कहते हैं मर्द अपनी लड़ाई खुद लड़ सकते हैं-जब मर्द ऐसी किसी घटना का शिकार होते हैं तो उन्हें केवल एक ही बात कही जाती है कि, ''मर्द अपनी लड़ाई खुद लड़ सकते हैं.'' अगर समाज महिला और पुरुष को समान मानता है तो जितना वह महिला के हक़ के लिए खड़ा होता है उतना ही उन्हें पुरुष के हक़ के लिए भी खड़ा होना चाहिए. एक पुरुष अगर किसी बुरे व्यवहार का शिकार हो रहा है तो समाज को यह समझना चाहिए ना कि इसका मजाक उड़ाना चाहिए.

होना चाहिए पुरुष आयोग या कानून-सरकार ने महिलाओं के लिए कई कानून बनाये हैं लेकिन पुरुषों के लिए बहुत कम। वहीं जिस तरह से दुनियाभर में महिला आयोग बने हुए हैं, महिलाओं के लिए सुविधाएं हैं, महिलाओं के लिए हेल्पलाइन नम्बर हैं ठीक वैसे ही पुरुषों के लिए भी यह सब उपलब्ध होना चाहिए। जिस तरह से राष्ट्रीय महिला आयोग बना हुआ है ठीक वैसे ही एक राष्ट्रीय पुरुष आयोग भी होना चाहिए ताकि पुरुषों के खिलाफ होने वाली हिंसा में कमी आए।  आपने देखा होगा कई एप भी बने हैं जो महिलाओं की मदद के लिए हैं लेकिन पुरुषों की मदद के लिए कोई एप नहीं है।। यह सभी बातें सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमारे समाज में पुरुषों को बचाने के लिए कोई सुविधा नहीं है? 

बदलना चाहिए समाज का रवैया- समाज में जिस तरह महिलाओं के लिए कदम उठाये जाते हैं ठीक वैसे ही कदम पुरुषों के लिए भी उठाये जाने चाहिए. पुरुषों के प्रति भी सहानुभूति होनी चाहिए क्योंकि यह जरुरी है. समाज जिस तरह से महिलाओं के हक़ के लिए लड़ता है वैसे ही अगर पुरुषों के हक़ के बारे में भी बात करें तो कुछ हद तक पुरुष अपनी परेशानियों को खुलकर सामने ला पाएंगे और प्रताड़ित होने से बच जाएंगे. समाज का रवैया ही एक पुरुष को उसके साथ हो रहे दुर्व्यवहार को बताने से रोकता है क्योंकि समाज उसे अनदेखा कर देता है या नकार देता है. वहीं एक महिला खुलकर अपनी बात रखती है क्योंकि समाज उसे झट से मान लेता है. इन सभी बातों को सोचकर मन में कई सवाल उठते है, जैसे -आखिर कब समाज पुरुषों को भी उनके साथ हुए दुर्व्यवहार को बताने का मौका देगा, कब पुरुषों कि बातों को समझा जाएगा, कब पुरुषों के साथ हो रही प्रताड़ना को मजाक में नहीं लिया जाएगा, कब उनका मजाक नहीं उड़ाया जाएगा, आखिर कब सुधेरगा समाज..? जिस तरह से एक लड़की को इंसाफ दिलवाने के लिए दुनियाभर के लोग किसी भी हद तक पहुंच जाते हैं ठीक वैसे ही अगर पुरुष के दर्द को समझे और उन्हें भी इंसाफ दिलवाने के लिए लड़े तो समाज में सही मायने में लड़का-लड़की बराबर होंगे।

अच्छी पहल है पत्नी पीड़ित पुरुष आश्रम-यह आश्रम औरंगाबाद से करीब 12 किलोमीटर दूर मुंबई-शिरडी हाइवे पर बना है. इस आश्रम में वह पुरुष आ सकते हैं और रह सकते हैं जो अपनी पत्नी से पीड़ित हैं. इस आश्रम में आने वाले प्रताड़ित पुरुषों को कानूनी लड़ाई के बारे मे सलाह दी जाती है. इस कार्यालय में थर्माकोल से बना एक बहुत बड़ा कौआ है जिसकी सुबह-शाम अगरबत्ती लगाकर पूजा की जाती है. जी दरअसल आश्रम में रहने वालों का कहना है, 'मादा कौआ अंडा देकर उड़ जाती है लेकिन नर कौआ चूजों का पालन पोषण करता है' ऐसी ही कुछ स्थिति पत्नी पीड़ित पति की होती है. यह आश्रम उन लोगों के लिए घर है जो अपनी पत्नी के द्वारा सताए हुए हैं.

महिला भी करती है पुरुषों का शिकार : कुछ मामला ऐसा आया है जिसमें महिला पुरुषों से शादी का वादा कर के उसके भावना के साथ खिलवार करती है कुछ ऐसी महिला को देखा गया है जिसमें उन्हें पुरषों के साथ खेलने में मज़ा आता है जिससे शिकार पुरुषों में भारी चिंता, बेचैनी, आक्रामकता, अवसाद और भुलाने के लिए अत्यधिक शराब और हानिकारक ड्रग्स लेने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है. जैसा कि आत्महत्या जैसे मामलों में होता है, शर्मिंदगी को झेलने के बजाय, ऐसे मामलों में ख़ुद को चोट पहुंचाने की प्रवृत्ति चिंताजनक रूप से बढ़ जाती है.

आप महिला हैं या पुरुष ये नहीं बताता की आप का चरित्र कैसा है, कोई पुरुष अगर किसी महिला के साथ गलत करता है या कोई महिला किसी पुरुष के साथ गलत करती है तो समाज को ना तो पुरे पुरषों और पुरी महिला जाती पर सवाल उठाना चाहिये क्यों की गलत इंसान होता है चाहे वो पुरुष हो या महिला.    





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