PATNA : बिहार में महागठबंधन की उलझी सुलझने का नाम नहीं ले रही है। सीटों के तालमेल पर फंसी गांठ इतनी मोटी है कि अंधे को भी उसका अंदाज़ा हो जाये। हर लोकसभा सीट पर दावेदारी और उम्मीदवारों की कश्मकश परेशानी को हर पल बढ़ा रही है। सामने खड़ा एनडीए 40 उम्मीदवार चेहरों के साथ चुनावी रण में ताल ठोंक रहा है जबकि महागठबंधन अखाड़े में पहलवान उतारने को लेकर कन्फ्यूजन का सामना कर रहा है।
जाहिर है महागठबंधन में साफ दिखती इन गांठों का असर उसके वोट बैंक पर नकारात्मक ही पड़ेगा। बीजेपी के विरोध में खड़ा महागठबंधन के कट्टर समर्थक वोटर भी एक बार इसे लेकर कन्फ्यूजन में होगा कि क्या वह जिसे वोट देने जा रहा वह उसके लोकसभा क्षेत्र के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार है? चुनाव के ठीक पहले तक उम्मीदवारों की दावेदारी वोटरों के दिलोदिमाग में महागठबंधन के किसी एक उम्मीदवार के लिए भरोसे वाली इमेज बना पाएगी, इसे लेकर संदेह है।
महागठबंधन के वोट बैंक के लिए एक मुश्किल यह भी है कि उन्हें अबतक यह नहीं पता कि कौन सी लोकसभा सीट पर किस घटक दल का उम्मीदवार होगा। ऐसा नहीं है कि महागठबंधन में शामिल घटक दल के नेताओं को इस खतरे का अंदाज़ा नहीं होगा लेकिन अलग-अलग धाराओं से निकलकर महागठबंधन में शामिल होने वाले दल अगर आपसी सहमति नहीं बना पा रहे तो इसमें उनके विचारधारा का मेल ना खाना एक बड़ा कारण दिखता है। इस हकीकत से कोई इंकार नहीं कर सकता कि महागठबंधन में शामिल दलों के सामने दुश्मन भले ही एक हो लेकिन उन दलों की सोच आपस में मेल नहीं खाती। ऐसे में महागठबंधन को इसका खामियाजा उठाना पड़े तो कोई अचरज नहीं होगा।