मोदी सरकार ने वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट में कहा था- देश का नाम बदलने की कोई जरूरत नहीं, भारत और इंडिया दोनों ही जरूरी, अब बदल गए बोल

DESK. वर्ष 2015 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने नाम बदलने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि "संविधान सभा द्वारा समीक्षा की आवश्यकता के मुद्दे पर बहस के बाद से परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।" यानी भारत और इंडिया जैसा कोई विवाद नहीं है. देश का नाम दोनों ही रहेगा.
हालांकि अब केंद्र की मोदी सरकार में शामिल कई मंत्री और भाजपा नेता देश का नाम इंडिया हटाने और सिर्फ भारत करने की मांग कर रहे हैं. तब गृह मंत्रालय ने अदालत को बताया था कि जब संविधान का मसौदा तैयार किया गया था तब संविधान सभा द्वारा देश के नाम से संबंधित मुद्दों पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श किया गया था और अनुच्छेद 1 में खंडों को सर्वसम्मति से अपनाया गया था।
केंद्र ने यहां तक कहा था कि नागरिक अपनी इच्छा के अनुसार देश को इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा था भारत को सभी उद्देश्यों के लिए 'भारत' या इंडिया कहा जाए। दरअसल, जी20 आमंत्रण पर विपक्ष की आलोचना का सामना कर रहे केंद्र ने नवंबर 2015 में शीर्ष अदालत से कहा था कि देश को 'इंडिया' के बजाय 'भारत' कहने की जरूरत नहीं है। तब कोर्ट ने पूछा था कि "भारत या इंडिया? आप इसे क्या कहना चाहते हैं। उस पर केंद्र ने साफ कहा कि नाम बदलने की कोई जरूरत नहीं है.
इतना ही नहीं तब केंद्र ने कोर्ट में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 1(1) कहता है, "इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा।" जनहित याचिका का विरोध करते हुए, गृह मंत्रालय ने कहा था कि संविधान के प्रारूपण के दौरान संविधान सभा द्वारा देश के नाम से संबंधित मुद्दों पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श किया गया था और अनुच्छेद 1 में खंडों को सर्वसम्मति से अपनाया गया था।