पटना. सूबे का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल पीएमसीएच, जहां सैकड़ों की संख्या में मरीज और परिजन बेहतर चिकित्सा की उम्मीद को लेकर यहां पहुंचते हैं. दरसअल पीएमसीएच को सुपर स्पेसिलिस्ट बनाने के सपने केवल बातों और किताबो में ही अच्छे लगते नजर आते हैं. इस हॉस्पीटल की स्थापना अंग्रेजी हुकुमत के दौरान सन 1925 में हुई थी. उस समय इस अस्पताल का निर्माण करने वाले लोगों का यही सपना होगा कि सूबे के लोग यहां आयेंगे और अपनी बिमारियों का इलाज करायेंगे. पीएमसीएच अस्पताल के 100 साल पूरे हो जाने के बाद भी स्थितियों में सुधार लगभग नहीं हो सका है. रविवार को जो यहां की तस्वीर देखी गई है, जिसे देखने के बाद हर किसी का रूह कांप जायेगा और वो भी यही कहेगा.
यहां एक मां-बाप बच्चे को लेकर अस्पताल उपचार के लिए गोद में लेकर पहुंचते हैं. बच्चा उनके गोद में बेसुध पड़ा होता है. उसके माता-पिता गोद में इधर-उधर बच्चे को लेकर भटकते रहते हैं. माता पिता अस्पताल में बच्चे की इलाज को गुहार लगाते हैं. रोते बिलखते रहते हैं, लेकिन अस्पताल प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगता है. न उन्हें ट्रॉलि प्रदान कराते हैं और ना ही इलाज की कोई व्यवस्था करते हैं. यहां तक की रोते बिलखते उस मां बाप को यह कहकर भटका दिया जाता है कि यहां बच्चा वार्ड नहीं है. इस सलाह के साथ उनकी जिम्मेदारी खत्म. ये उस अस्पताल की कहानी है, जो जल्द ही 100 साल पूरा करने वाला है. हाय रे सरकारी अस्पताल और यहाँ की व्यवस्था.
पीएमसीएच के सरकारी दावे खोखले नजर आ रहा है. लापरवाही का आलम ये है कि यहां इमरजेंसी में डॉक्टरों ने इलाज करने के बजाय गंभीर हालत में बच्चे को प्राथमिक इलाज नहीं कर परिजनों को बच्चा वार्ड में ले जाने को कह अपना पल्ला झाड़ दिया. हद तो तब हुई जब पीएमसीएच सुविधाओं की गुण गाने वाले किसी कर्मी और न ही डॉक्टरों ने मानवता का सही परिचय दिया है. परिजन गंभीर हालत में बच्चे को गोद में उठा कर बाइक के जरिये इमरजेंसी वार्ड से बच्चा वार्ड की ओर भागते नजर आए. पीएमसीएच में जहां स्ट्रेचर और कर्मियों की कमी नहीं है. वहीं मानवता को भूलने वाले डॉक्टर की लापरवाही साफ नजर आ रहा है, जहां एक मां चीखती चिल्लाती रही, पर किसी ने ये तक जहमत नहीं उठाया कि बच्चे का पहले इलाज कर दें.