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कुढ़नी में भूमिहारों को न भाजपा और ना ही महागठबंधन ने दिया भाव... अब क्या करेगा भूमिहार, इन्हीं पर टिका है जीत-हार का दारोमदार

कुढ़नी में भूमिहारों को न भाजपा और ना ही महागठबंधन ने दिया भाव... अब क्या करेगा भूमिहार, इन्हीं पर टिका है जीत-हार का दारोमदार

पटना. बिहार की राजनीती में जाति की बातें ना हो तब तक यहां की राजनीति अधूरी है. चाहे चुनाव में टिकट बंटवारे का मुद्दा हो या मंत्रिमंडल में मंत्री बनाने की बातें, हर जगह जातीय समीकरणों को साधने की पूरी कोशिश की जाती है. लेकिन जाति की राजनीति में उलझे बिहार में मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी विधानसभा के हो रहे उपचुनाव में सबसे ज्यादा संख्या वाली जाति की किसी राजनीतिक दल को फ़िक्र नहीं दिखती है. दरअसल कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में महागठबंधन ने मनोज कुशवाहा को तो भाजपा ने केदार प्रसाद गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है. दोनों क्रमशः कुशवाहा और वैश्य जाति से आते हैं. 

वहीं अगर कुढ़नी में जातीय समीकरणों की देखें तो यहां सबसे ज्यादा वोट बैंक वाली जातियों में भूमिहार करीब 40 हजार हैं. वहीं वैश्य और मुस्लिम करीब 35 से 38 हजार के बीच माने जाते हैं. वहीं यादव 30 से 32 हजार के बीच हैं जबकि कुशवाहा भी इसी अनुपात में हैं. इसके अलावा करीब 25 हजार सहनी और लगभग 15 हजार पासवान मतदाता हैं. 3 लाख 10 हजार मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में जीत-हर में हमेशा ही जातीय समीकरण सबसे अहम होते हैं. यही कारण है कि टिकट बंटवारे में हमेशा ही जातीय समीकरणों को साधा जाता है. 

कुढ़नी के इतिहास की अगर बात की जाए तो यहां लम्बे अरसे तक भूमिहार जाति के विधायक रहे. दरअसल, 1990 तक कुढ़नी की राजनीति में भूमिहार जाति को बड़ा अवसर हाथ लगता रहा. 1990 में आखिरी बार भूमिहार जाति से आने वाले साधु शरण शाही चुनाव जीते थे. वे चार बार यहां से विधायक रहे. लेकिन उसके बाद कुढ़नी का यह भूमिहारी किला दरक गया. वर्ष 1995 के चुनाव में बसावन भगत ने जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की. माना गया कि उस चुनाव को अगड़ा-पिछड़ा एक नाम पर लड़ा गया. कुशवाहा समाज से आने वाले बसावन भगत को तब लालू यादव का भी साथ मिला और वे चुनाव जीत गए. 

वहीं 1995 के बाद से राजनीतिक दलों ने भी कुढ़नी से किसी भूमिहार को उम्मीदवार बनाने से कन्नी काट ली. वर्ष 2000 के चुनाव में जरुर एनडीए ने ब्रजेश ठाकुर को समर्थन दिया था, जो बाद में बालिका गृह कांड में फंसे और जेल में बंद हैं. उस चुनाव में राजद के टिकट से फिर से बसावन भगत ने जीत हासिल की. वहीं 2005 में दो बार और फिर 2010 में मनोज कुशवाहा ने जीत हासिल की. यह सिलसिला 2015 में टूटा जब वैश्य समुदाय से आने वाले केदार प्रसाद गुप्ता को भाजपा के टिकट पर जीत मिली. वहीं 2020 में बड़ा उलटफेर हुआ और राजद के अनिल सहनी ने मात्र 712 वोटों के अंतर से जीत हासिल की. 

इन तमाम उलटफेर के बीच इस बार के उपचुनाव में एक बार फिर से जहाँ जदयू ने कुशवाहा समाज से आने वाले मनोज कुशवाहा पर दांव चला है, वहीं भाजपा के उम्मीदवार केदार गुप्ता है. भूमिहार के कई बड़े चेहरों को उम्मीद थी कि उन्हें टिकट मिल सकता है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ऐसे में बड़ा सवाल है कि कुढ़नी का भूमिहार क्या करेगा? कहा जाता है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में अनिल सहनी की जीत का एक बड़ा कारण भूमिहार वोटों का भाजपा से मामूली रूप से दूर होना था. असल में मुजफ्फरपुर शहर में भूमिहार जाति से आने वाले बीजेपी विधायक और मंत्री रहे सुरेश शर्मा 2020 में हार गए. इस हार की एक बड़ी वजह ये रही कि बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले वैश्य समुदाय ने इस सीट पर महागठबंधन के उम्मीदवार विजेंद्र चौधरी को वोट किया. माना गया कि इसका संदेश कुढ़नी में भी गया और वहां भूमिहारों ने भाजपा को सबक सिखाया. 

इतना ही नहीं मुजफ्फरपुर में ही बोचहाँ में हुए उपचुनाव में भाजपा की हार और राजद के अमर पासवान की जीत का बड़ा कारण भूमिहार वोटों का राजद में शिफ्ट होना रहा. उस समय तेजस्वी यादव ने यादव का दही और भूमिहार का चूड़ा समीकरण बनाने की बात की थी जिसका उन्हें फायदा भी हुआ. अब बोचहाँ के ही पड़ोस के विधानसभा क्षेत्र कुढ़नी में उपचुनाव है. यहां भी भूमिहार को दोनों में से किसी दल ने भाव नहीं दिया है. तो देखना होगा कि पांच दिसंबर को इस सीट पर विधानसभा उपचुनाव में भूमिहारों का रुख कैसा रहेगा?

वहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है कि महागठबंधन ने कुशवाहा, यादव और मुस्लिम गठजोड़ के हिसाब से मनोज कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है. साथ ही राजद-जदयू का मानना है कि बोचहाँ की तर्ज पर ही भूमिहार मतदाता भी बड़े स्तर पर यहां भाजपा से नाराज हैं और इसका फायदा महागठबंधन को मिलेगा. इतना ही नहीं वीआईपी के अनिल सहनी से भी मदद मिलने की जदयू ने आस लगा रखी है. वहीं दूसरी ओर भाजपा को उम्मीद है कि वैश्य, भूमिहार, पासवान को वह अपने पाले में लाने में सफल रहेगी. साथ ही कुशवाहा मतदाताओं को भी तोड़ने में सफलता मिलेगी. यानी दोनों ओर से भूमिहार वोटों को अपनी ओर आकर्षित करने की जुगत चल रही है. 

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