लालू के खेल में बुरा फंसे नीतीश,न इधर के रहे न उधर के, "इंडिया" गठबंधन में भी बताई हैसियत, राहुल गांधी का लिया साथ..सियासी छटपटाहट की इनसाइड स्टोरी...
अगले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों ने महागठबंधन बनाकर मोदी सरकार को मात देने की तैयारी शुरू कर दी है.कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने गठबंधन के साथियों की हौसला अफजाई करते हुए 2024 के चुनाव में सत्ता में पहुंचने का मार्ग भी दिखाया. उन्होंने कहा कि हमारे गठबंधन की देश के 11 राज्यों में सरकारें चल रही हैं, इसलिए हम आगामी लोकसभा चुनाव में भी जीत हासिल कर सकते हैं.कांग्रेस ने सियासी बिसात पर सधी हुई चाल चलते हुए करीब सभी विपक्षियों को राहुल का नेतृत्व मानने के लिए एकमत कर लिया.इसमें कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़े रहे लालू प्रसाद यादव. लालू प्रसाद ने कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ा होकर न सिर्फ अपना कद बढ़ाया है वरन अपने छोटे भाई को सियासी मात भी दिया है.जिस नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की जमीन तैयार की, अब विपक्षी गठबंधन इंडिया में उन्हें ही पूछने वाला कोई नहीं है.इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री बनने के लिए सर्वाधिक लालायित नीतीश कुमार ही नजर आते हैं. इसलिए उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़कर इस महागठबंधन की नींव रखी थी. इसकी पहली बैठक भी उन्होंने अपने प्रदेश बिहार में आयोजित की थी.हालांकि वह बैठक एक तरह से लालू प्रसाद यादव के मजाकिया अंदाज के लिए ज्यादा चर्चित हुई थी. इसमें उन्होंने राहुल गांधी को शादी की सलाह देकर पहले ही उनका नाम हंसी-हंसी में पीएम पद के लिए खारिज कर दिया था. लालू अपने चुटीले अंदाज में नजर आए और राहुल गांधी की दाढ़ी की ओर इशारा करते हुए कहा, "आप घूमने लगे तो दाढ़ी बढ़ा लिए, इससे नीचे मत ले जाइए. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, "आप हमारी सलाह नहीं माने, विवाह नहीं किए। अभी समय नहीं बीता है। आप शादी करिये, हम लोग बारात चलें." उन्होंने कहा कि आपकी मां (सोनिया गांधी) बोलतीं थीं कि हमारी बात नहीं मानता, शादी करवाइए। आप शादी कर लीजिए." लालू के इस अंदाज पर वहां मौजूद नेता और अन्य हंसने लगे. इसके जवाब में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि आपने कह दिया, तो (शादी) हो जाएगी.
लालू की शैली जो जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि उनकी हर बात का एक राजनीतिक अर्थ होता है. फिर लालू यादव के राहुल गांधी को दूल्हा बनाने की वकालत के पीछे असली मकदस क्या है? साफ है कि उन्होंने इशारों-इशारों में सबको बता दिया है कि विपक्ष का गठबंधन कांग्रेस की अगुवाई में ही बनेगे और दूल्हा यानी प्रधानमंत्री पद के दावेदार राहुल गांधी ही होंगे. ये और बात है कि सबको साथ रखने की मजबूरी में इसकी औपचारिक घोषणा भले ही चुनाव के नतीजे से पहले संभव न हो पाए.
लालू ने ये बयान क्यों दिया इसे समझने के लिए बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के बयान को जानना पड़ेगा. मीटिंग से पहले रविशंकर प्रसाद ने कहा था,"2024 के लिए नीतीश बाबू बारात सजा तो रहे हैं लेकिन दूल्हा कौन है, पीएम बनने की कुछ की इच्छा अंदर है, और कुछ की इच्छा बाहर है. देश आगे निकल गया है, देश एक स्थायी सरकार चाहता है."
क्या विपक्ष नीतीश को पीएम उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार करेगा और उनका नाम इस पद के लिए आगे करेगा? पीएम पद के लिए नीतीश की दावेदारी के खिलाफ एक चीज़ जा सकती है वो ये कि वे कभी भी पाला बदल लेते हैं. बड़ा सवाल है कि नीतीश अपने दम पर कितनी सीटें ला सकते हैं. कांग्रेस कितनी भी कमज़ोर हो लेकिन तमाम क्षेत्रीय दलों से उसकी सीटें अधिक हो सकती हैं. इसके अलावा कांग्रेस ने कभी ये नहीं कहा कि उसे छोड़ कर किसी दूसरी पार्टी का पीएम उम्मीदवार हो सकता है.तो क्या नीतीश के अंदर पीएम बनने की महत्वाकांक्षा नहीं है और क्या वह बिहार में राजद के साथ अपनी सरकार बनाने के बाद अपनी इस दावेदारी को जोर-शोर से पेश नहीं करेंगे? नीतीश वक्त वह अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने की कोशिश में हैं. उन्हें डर है कि महाराष्ट्र में शिवसेना की तरह भाजपा बिहार में जनता दल यूनाइटेड को दो फाड़ न कर दे. '' अगर नीतीश पीएम बनने का सपना देख रहे हों तो यह मुश्किल है क्योंकि इस वक्त विपक्ष को जोड़ने वाले तत्व नदारद हैं.'नीतीश के साथ सबसे ज्यादा विश्वसनीयता का संकट है. वह कब किधर चले जाएंगे कहा नहीं जा सकता. उनकी पार्टी भी ऐसी नहीं है कि बहुत ज़्यादा सीटें जीत ले और विपक्ष की सरकार बनने की स्थिति में पीएम पद के लिए दावेदारी ठोक दे. नीतीश की पार्टी का ना तो अखिल भारतीय संगठन है और ना उनमें एक-दो से ज्यादा राज्यों में चुनाव जीतने की क्षमता है. ऐसे में विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर पर नीतीश की दावेदारी काफी कमज़ोर लगती है. लालू ने छोटे भाई नीतीश को ऐसे घेर में घेर लिया है जिससे फिलहाल उनका बाहर निकलना मुश्कील लग रहा है.
वहीं लालू का एक ही सपना है कि राहुल गांधी दिल्ली की गद्दी संभालें और उनके बेटे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बिहार की सत्ता के सरताज बनें. इसके लिए लालू ककिसी की भी बली दे सकते हैं चाहे वे नीतीश कुमार हीं क्यों न हों.
याद कीजिए मुम्बई बैठक से पहले लालू का बयान, महागठबंधन में तीन राज्य पर एक संयोजक होंगे,नीतीश बैठक से पहले लालू के बयान को काटते हुए कहा था कि संयोजक पद पर बैठक में फैसला होगा. मीटिंग में क्या निर्णय हुआ इसकी सबको जानकारी है,.कई राजनीतिक पंडित मान रहे थे कि लालू राजनीतिक रुप से सक्रिय नहीं है,उनकी पत्री भी जवाब दे गई. लालू ने ऐसी चाल चली कि सबको धारासाई कर दिया.लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में सजायाफ्ता हैं, किडनी बदलने के बाद एक बार फिर से दोबारा राजनीति में सक्रिय हो गए हैं.बिहार की राजनीति में उनकी जड़ें इतनी गहरे पैठी हैं कि बड़े से बड़े झंझावात को भी वे झेल जाते हैं. राष्ट्रीय राजनीति में भी लालू ब्राड नेम हैं. विपक्षी महागठबंधन में उनकी पूछ सबसे ज्यादा है.
विपक्षी एकता की सबसे पहली कवायद पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने शुरू की थी.उसके बाद तेलंगाना के सीएम केसी राव ने शुरुआत की . राव के बाद नीतीश कुमार ने पहल शुरु की तो पहले कांग्रेस ने भाव नहीं दिया लेकिन लालू यादव के कहने पर सोनिया ने उनसे मुलाकात कर ली.सिंगापुर से लौटते हीं मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने पहली बार नीतीश कुमार से आमने-सामने मुलाकात की, उन्हें विपक्ष को गोलबंद करने का दायित्व सौंपा गया. नीतीश ने पटना में डेढ़ दर्जन विपक्षी दलों के नेताओं को जुटाया. लालू भी बैठक में शामिल हुए, मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट से तात्कालिक राहत मिलते ही राहुल गांधी पहुंच गए लालू के घर मटन पार्टी का मजा लेने.तीसरी बैठक होते-होते अब यह बात साफ हो गई है कि विपक्ष का पीएम फेस 2024 में राहुल गांधी ही होंगे
एक तरफ जहाँ कांग्रेस पार्टी राहुल गाँधी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर चुकी है, वहीँ उनके साथ गठबंधन बनाने वाली छोटी-मोटी पार्टियों के अध्यक्ष भी पीएम की गद्दी पर आसीन होने का सपना देख रहे हैं. सपा से अखिलेश यादव, बसपा से मायावती, राजद से तेजस्वी यादव, इनमे से कुछ प्रत्यक्ष तो कुछ अप्रत्यक्ष तरीके से खुद को पीएम का उम्मीदवार घोषित करने में लगे हुए हैं. लालू प्रसाद के पुत्र और राजद नेता तेजस्वी यादव ने तो मंगलवार को दिए अपने बयान में भी यह कह दिया है कि राहुल गाँधी अकेले ही पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं, उनके अलावा कई विपक्षी नेता जैसे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और बसपा प्रमुख मायावती प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की सूचि में हैं.
बंगाल की शेरनी कही जाने वाली ममता बनर्जी अंदर ही अंदर प्रधानमंत्री बनने इच्छा तो रखती हैं लेकिन वह उसे बाहर किसी के सामने नहीं बयां कर रहीं हैं. उन्होंने बीच में महागठबंधन से अलग होकर स्वतंत्र रूप से लोकसभा चुनाव में जाने का मन बनाते हुए घोषणा भी कर डाली थी. इसके बावजूद अभी सत्ता की सियासत में बहुत कुछ होना बाकी है. फिलहाल पूर्वोत्तर में मिली मात के बाद ममता बनर्जी की प्राथमिकता अपना घर बचाने और उसे मजबूत करने की है.
एक बात तो तय है कि बगैर कांग्रेस की सहमति और सहयोग के कोई भी विपक्षी पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बनना तो दूर उस कुर्सी के आस-पास भी नहीं पहुंच पाएगा. अगर लालू का दाव सफल हो जाता है तो राहुल को पीएम बनने से कोई रोक भी नहीं पाएगा.