पटना. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बिहार दौरे को लेकर भाजपा ने कमर कस ली है. 23 और 24 सितम्बर को अमित शाह पूर्णिया में रहेंगे. वे 24 सितम्बर को भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करेंगे. बिहार में नीतीश कुमार द्वारा एनडीए से अलग होकर महागठबंधन संग सरकार बनाने के बाद अमित शाह का यह पहला बिहार दौरा है. इसके पहले अमित शाह 30 और 31 जुलाई को पटना में सम्पन्न भाजपा संयुक्त मोर्चा कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक में शामिल हुए थे. लेकिन इन डेढ़ महीनों में राजनीतिक परिस्थति बदल चुकी है. ऐसे में शाह का तेवर भी अब नीतीश कुमार के लिए कुछ अलग देखने को मिल सकता है.
अमित शाह के दौरे को प्रभावशाली और संदेशपरक बनाने के लिए सिमांचल से इसकी शुरुआत मानी जा रही है. शाह के दौरे को सफल बनाने के लिए भाजपा ने 14 टीमों का गठन किया गया है. यहां तक कि बिहार भाजपा अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल खुद दो दिनों का सीमांचल दौरा कर शाह के कार्यक्रम को ऐतिहासक बनाने में जुट चुके हैं. चूकी नीतीश कुमार के एनडीए से अलग हो जाने के बाद भाजपा अब अकेले ही बिहार में संघर्ष करेगी, ऐसे में शाह के इस दौरे के साथ ही नीतीश और अन्य प्रतिद्वंद्वी दलों को घेरने की रणनीति बनाई जाएगी.
इसके लिए भाजपा की कोशिश अल्पसंख्यक समुदाय के बीच पैठ बढ़ाने की है. पूर्णिया सहित सीमांचल के अधिकांश जिलों में मुस्लिम समुदाय की प्रभावशाली उपस्थिति है. अब तक माना जाता रहा है कि यहां भाजपा की कमजोर पकड़ रही है. ऐसे में भाजपा की पहली कोशिश उनके बीच अपने भरोसे को बढ़ाने की है. इसके लिए भाजपा की ओर से जोरशोर से पूर्णिया सहित पूरे इलाके में अल्पसंख्यक से जुड़े कार्यों को प्रचारित किया जा रहा है. सीमांचल में अररिया, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज लोकसभा सीटें है. इसमें पूर्णिया ही वह सीट है जहाँ सबसे कम करीब 30 फीसदी मुस्लिम वोटर है. इसके अलावा किशनगंज में करीब 67 प्रतिशत कटिहार में 38 प्रतिशत और अररिया में 32 प्रतिशत वोटर मुस्लिम हैं.
अमित शाह के दौरे से पहले केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग की सदस्य अंजू बाला, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय का सीमांचल दौरा हो चुका है. भाजपा सीमांचल में सीएए, एनआरसी, बांग्लादेशी घुसपैठ और रोहिंग्या का मुद्दा दमदार तरीके से उठा सकती है. सीमांचल में बिहार के किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया चार लोकसभा क्षेत्र सहित पश्चिम बंगाल में कूच बिहार, अलीपुर द्वार, सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, दिनाजपुर, मालदा के इलाकों को जोड़कर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का मुद्दा भी आने वाले दिनों में उठता दिख सकता है. यह एक प्रकार से बिहार से पश्चिम बंगाल तक के इस सीमाई और संवेदनशील इलाके को अलग तरीके से पेश कर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश भी हो सकती है.
अब तक मुस्लिम समुदाय को राजद और जदयू का परमपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है. इसलिए अमित शाह सबसे पहले इस क्षेत्र से राजनीतिक रणभेरी बजाकर नीतीश और तेजस्वी यादव को कमजोर करने का बड़ा संदेश देना चाहते हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार में 40 में से 39 लोकसभा की सीटों पर जीत हासिल की थी. भाजपा एक बार फिर से वही करिश्मा दोहराना चाहती है. वहीं नीतीश और तेजस्वी पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि 2024 के लोकसभा में बिहार में भाजपा को खाता खोलना मुश्किल हो जाएगा. भाजपा इस चुनौती को अभी से महसूस कर रही है. अमित शाह अपने दौरे से आने वाले समय के लिए क्या संदेश देकर जाते हैं. लोकसभा चुनाव 2024 के किस रणनीति पर चलेंगे इसका बड़ा संदेश शाह के पूर्णिया दौरे से हो जाएगा.