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गद्दार हैं नीतीश कुमार, जदयू से निकाले जाने के बाद आरसीपी ने बिहार के सीएम पर लगा दिया बड़ा आरोप

गद्दार हैं नीतीश कुमार, जदयू से निकाले जाने के बाद आरसीपी ने बिहार के सीएम पर लगा दिया बड़ा आरोप

ARA : बिहार के मुख्यमंत्री गद्दार हैं, उन्होंने एक बार नहीं, बल्कि तीन बार बिहार की जनता के साथ गद्दारी की है। यह कहना हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का। जदयू से इस्तीफा देने के बाद लगातार मुख्यमंत्री पर हमलावर रहे आरसीपी ने कहा कि वह मेरी औकात की बात करते हैं, लेकिन यह बात वह भी जानते हैं कि मेरी औकात उनसे ज्यादा है। 

बिहार में जनसंपर्क यात्रा पर निकले जदयू के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि नीतीश कुमार मेरी हैसियत की बात करते हैं कि तो मैं बता दूं कि 1982 में जिस वक्त वह सड़क की खाक छान रहा थे। उस समय मैं गांव में बैठकर यूपीएससी की परीक्षा पास कर चुका था। उन्होंने कभी ऐसी परीक्षा नहीं दी होगी। इंजीनियरिंग करने के बाद एक बार नेवी की परीक्षा दी थी,लेकिन उसमें भी वह फेल  हो गए थे।

आरसीपी ने कहा कि वह कहते हैं कि उन्होंने मुझे नेता बनाया है, लेकिन वह पैदाइशी नेता नहीं बने थे। वह बताएं कि 1977 में उनकी क्या हैसियत थी, 1980 में चुनाव हार गए थे। वह कहते हैं कि वह जननेता हैं। लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया है।

गद्दार हैं सीएम

आरसीपी ने इस दौरान नीतीश कुमार पर गद्दार होने का आरोप भी लगा दिया। आरा में मीडिया से बात करते हुए आरसीपी ने कहा कि नीतीश कुमार ने एक बार नहीं तीन बार बिहार की जनता के साथ गद्दारी की है, उन्हें धोखा दिया है, वह बात करते हैं मैंने उनके और जदयू के साथ गद्दारी की है। असली गद्दार कौन है, यह प्रदेश की जनता अच्छे से जानती है।

जदयू के कई नेता हैं संपर्क में 

आरसीपी ने कहा कि आज मैं भले ही जदयू में नहीं हूं। लेकिन प्रखंड स्तर पर अब भी बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मेरे साथ खड़े हैं, उन्हें पता है कि उनके साथ कौन खड़ा है। उन सभी से संपर्क करने की कोशिश में लगा हूं।

पांच छह सांसदों से कैसे बनेंगे प्रधानमंत्री

आरसीपी ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के लिए सबसे जरुरी है संख्या बल, आपके पास सांसद कितने हैं, यह भी निर्भर करता है। अभी वह जिस पार्टी के साथ हैं, अगर उनके साथ चुनाव लड़ने जाते हैं, तो बिहार की 40 सीटों में से उनके हिस्से में कितनी सीटें आएंगी। 10-11 सीटें मिलेंगी, उनमें कितनी सीटें आएंगी, यह वक्त बताएगा। लेकिन कुछ सांसदों वाली पार्टी के नेता को कोई कैसे अपना प्रधानमंत्री चुन सकता है। जबकि दूसरे राज्यों में कई प्रादेशिक पार्टियां है, जिनका उन राज्यों में अपना जनाधार है, वह किसी दूसरी पार्टी के साथ अपना जनाधार क्यों बांटेंगी, यह समझा आसान है। 


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