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चंद अधिकारियों के भरोसे नीतीश कुमार वहां महामारी कर रहा संहार,हाईकोर्ट ने कहा नाकाफी है इंतजाम,आखिर कौन है जिम्मेदार ?इनसाइड स्टोरी

चंद अधिकारियों के भरोसे नीतीश कुमार वहां महामारी कर रहा संहार,हाईकोर्ट ने कहा नाकाफी है इंतजाम,आखिर कौन है जिम्मेदार ?इनसाइड स्टोरी

Patna : क्या यही सुशासन है साहब ! जहां ऑक्सीजन के लिये तड़पती जनता दम तोड़ रही है और आप के अधिकारी हाईकोर्ट के सामने आपके बदइंतजामी का रोना रो रहे हैं। फिर हाईकोर्ट को कहना पड़ता है यह नाकाफी है ,राज्य सरकार द्वारा किये गए   इंतजाम की निगरानी हम करेंगे। क्या एक चुनी हुई सरकार के लिये यह शर्मनाक नहीं है। 

चलिये थोड़ा समय की सुई को पीछे कर लेते हैं। यानी सुशासन नामक सोंसा पर बात करने से पहले थोड़ा आपके अतीत को समझ लेते हैं। स्मृति पटल पर थोड़ा जोर डालिये । 2005 के दूसरे चुनाव में लालू- राबड़ी के तथाकथित 15 साल वाले जंगलराज के खिलाफ चुनाव में घूम- घूमकर कैसे आपने लोगों को कैसे-कैसे वादे किये थे। मुझे यानी एनडीए को वोट दीजिये हमलोग मंगलराज यानी सुशासन की सरकार लाएंगे। सरकार बनी तो जंगलराज का नामोनिशान मिट जाएगा । इसमें कोई शक नहीं कि आपके प्रथम शासनकाल में तथाकथित जंगलराज से जनता को मुक्ति का एहसास हुआ। इसी का प्रतिफल था कि एनडीए को 2010 में भारी बहुमत भी मिला। लालू यादव की पार्टी राजद किसी- किसी तरह इज्जत बचाने में कामयाब रही। जनता ने लालू यादव को दूसरी बार उनके कर्मों की सजा दे दी थी। जंगलराज चलाने वालों के लिये यह जनमत मुनादी थी कि गलत करोगे तो समयानुसार बख्शा नहीं जाएगा। एनडीए के लिये  यह लोकतंत्रात्मक तौर पर स्वर्ण युग था। आपने अपने प्रथम शासनकाल में अच्छा किया जो जनता ने महसूस भी किया उसका परिणाम सामने था। जनता का इतना बड़ा भरोसा विरले सरकार को ही मिल पाता है। विपक्ष मिटते- मिटते बचा। 

शानदार बहुमत से सरकार  बनाने के बाद आपके अहंकार की कुंडली ने कुछ ज्यादा ही आकार ग्रहण करना शुरू कर दिया। फिर प्रधानमंत्री पद वाला कीड़ा काट लेने के बाद तो आप अपना हश्र देख चुके हैं ? खैर उसमें बहुत ज्यादा जाना नहीं चाहता लेकिन इस स्थिति में सुशासन पर ग्रहण लगना तय था। हुआ भी वहीं। मैं यह नहीं कहता कि उस दौरान आपकी सरकार काम नहीं कर रही थी। लेकिन हां, उस तरीके से नहीं जिस तरीके से प्रथम शासनकाल में काम हो रहा था। अपराध नियंत्रण में था। स्वास्थ,शिक्षा के क्षेत्र में भी काम हुआ,चुकी पहले लालू राबड़ी का तथाकथित जंगलराज था तो जनता भी महससू कर रही थी काम हुआ। दिनदहाड़े व शाम होते- होते जो वातावरण में जो खौफ का आलम दिखता था वह बेशक तौर पर कम था।

लेकिन एक बड़ी बात जो सामने आ रही थी वह यह कि आपकी दूसरी पारी में लालफीताशाही का परचम कुछ ज्यादा ही लहराने लगा था। नौकरशाहों की एक छोटी जमात को आपने आत्मसात कर लिया फिर सुशासन में भी लोगों को अंतर महसूस होने लगा। बीच मे जो नैतिकता का लबादा ओढ़कर राजनीतिक ड्रामेबाजी आपके तरफ से हुई उसका भी असर हुआ। इन सबों के बीच चंद अफसरों जिनके भरोसे आप अपना एजेंडा सेट करते हैं उनका मनोबल जबरदस्त बढ़ा। इतना बढ़ा की उनके सामने कई लोग बेचारे बन गए। जहां तक मेरी जानकारी है कि दिन-रात साथ रहने वाले व वफादारी की हर परीक्षा पास कर चुके नेताओं को भी जब कुछ काम करवाना होता है तब इन अफसरानों के सामने आरज़ू मिन्नत करना ही पड़ता है। बाकी  मंत्रियों और आपके हीं पार्टी के विधायकों की हैसियत आपने क्या कर रखी है यह बिहार में ही नहीं बाहर में भी चर्चा का विषय है। कई मंत्रियों से बातचीत के बाद मैंने पाया कि वे अपने को कितना लाचार महसूस करते हैं। पता नहीं यह कौन सी रणनीति है कि आपके मंत्री आपके ही सामने छोड़ दें अपने प्रधान सचिव के सामने भी बोलने का रसूख नहीं रख पाते। कुछ मंत्री अपवाद हो सकते हैं। 

अब बड़ा सवाल यह है कि अधिकारियों की एक बेहद छोटी जमात से सुशासन पर फर्क क्या पड़ा। यही पड़ा है कि हाईकोर्ट को आपके इंतजाम की निगरानी करना पड़ा रहा। यही पड़ा है की तेजस्वी यादव जैसे नौजवान और अनुभवहीन राजनेता ने चुनाव में पानी पिला दिया। यही फर्क पड़ा है अब अफसरों पर आर्थिक अपराध का कार्रवाई बन्द हो गयी। यहीं फर्क पड़ा है आईएएस अधिकारियों की एक बड़ी जमात भीतर-भीतर असंतुष्ट है चुकी उन्हें खौफ होता है कि कुण्डलीबाज अधिकारियों की जमात की कुदृष्टि के हम शिकार न हो जाएं। यही फर्क पड़ा है कि ऑक्सीजन रहते हुए लोग अस्पताल के सामने रास्ते मे तड़प- तड़प कर दम तोड़ रहे हैं। यहीं फर्क पड़ा है कि आपके पास पर्याप्त पारा मेडिकल स्टाफ तक नहीं । आपके यहां डॉक्टर ,इंजीनियर से लेकर मास्टर तक सब के सब नियोजन पर वह भी पर्याप्त नहीं ।

अब तो आप खुद और आपकी सत्ता भी ऑक्सीजन पर है । सरकार और पार्टी दोनो की सांसे और दम लगातार फूल रहा है । हफनी मिटाने के लिये कभी सुमित सिंह  कभी जमा खान तो कभी राजकुमार सिंह नामक सियासी इन्हेलर लेना पड़ रहा है। सम्भल जाइये वक्त है। जिन परिस्थितियों का निर्माण आप खुद कर रहे हैं वह आप हीं पर भारी पड़ा रहा है। नेकनामी आपके नाम गया है तो बदनामी भी आप हीं झेल रहे हैं । समय का सिक्का हमेशा नहीं चलता ।कुंडली से निकलिए। अब तो बात बात पर आप नाहक गर्म होN जाते हैं। अभी भी वक्त है सम्भल जाइये हुजूर नहीं तो फिर गाना पड़ेगा बहुत देर कर दी हुजूर आते आते!

कौशलेन्द्र प्रियदर्शी की कलम से

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