नीतीश कुमार की तरफ से बिहार की जनता को लिखे पत्र से शिक्षकों में भारी नाराजगी,कहा- CM के पत्र में शिक्षा-शिक्षकों के लिए कोई विजन नहीं

PATNA: मुख्यमंत्री द्वारा राज्य की जनता के नाम लिखे खुले पत्र में शिक्षा और शिक्षकों के लिए कोई विजन या योजना नहीं रहने से शिक्षकों में काफी आक्रोश है। ज्ञात हो कि बुधवार को राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी अब तक के शासनकाल में किए गए कार्यों और उपलब्धियों के साथ साथ भविष्य की योजनाओं के बारे में चर्चा करते हुए जनता से उन्हें पुनः सेवा का मौका यानी वोट देने की अपील की है। 

शिक्षकों का कहना है कि बिहार जो बुद्ध , महावीर  की ज्ञानस्थली व गांधी की कर्मभूमि रही है तथा ज्ञान का  गौरवशाली  अतीत रहा है। आज मुख्यमंत्री के इस विकास गाथा के पाती को देखकर आंसू बहाने को मजबूर है ।  शिक्षकों का कहना है कि सर्वविदित है कि किसी भी देश , राष्ट्र या समाज की उन्नति में शिक्षा की भूमिका अतिअहम होती है । शिक्षा ही गुण , धर्म , संस्कार , परिकल्पना विभिन्न रूपों में प्राण संचार करती है ।   इतना ही नहीं शिक्षा सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक व सांस्कृतिक क्रांति का अमोघ हथियार रही है । 

उनलोगों ने याद दिलाई कि अपनी जेल डायरी में शहीदेआजम भगत सिंह ने लिखा है कि "क्रांति लहू और लोहे से नहीं आती ; बल्कि क्रांति रूपी तलवार की धार विचारों की शान पर तेज होती है ।"  बाबा साहब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने भी नारा दिया था ,"शिक्षित  हो , समझदार बनो और तब संघर्ष करो ।" किन्तु अफशोस  प्रदेशवासियों के नाम मुख्यमंत्री ने जो सार्वजनिक व खुला पत्र लिखा है , उसमें शिक्षा व शिक्षकों  पर कुछ भी खास प्रकाश नहीं डाला गया है । 

शिक्षकों का कहना है कि मुख्यमंत्री शिक्षा और शिक्षकों का मुद्दा डालते भी कैसे ! बिहार के खेत-खलिहानों में काम करनेवाले  मेहनतकश  मजदूर-किसानों के बच्चों में वैचारिक धार चढ़ाने की कोई परिकल्पना सरकार के शिक्षाई एजेंडे में हो तब न ? सुदूर  गरीबों- ग्रामीणों के निरीह बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने की कोई मजबूत सरकारी इच्छा शक्ति व विजनरी इरादा सरकार के जेहन में पल रहा होता तो निश्चितरूप से सूबे के मुखिया  स्कूली शिक्षा से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सहित उसके सुदृढ़ीकरण की योजना आदि पर विजन रखते हुए खुला-पत्र में जगह देते। राज्य के शिक्षकों का कहना है कि पत्र का सिंहावलोकन करते ही स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक परिवर्तन व विकास का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा "स्कूली गुणवत्ता शिक्षा" , आज की तिथि में सरकार के एजेंडे में "साइकिल - मीड डे मील -पोशाक -वजीफा" तक सीमित हो चुका है । 

सबों का कहना है कि सबसे ताज्जुब की बात तो यह है कि शिक्षकों के लिए जिस "सेवाशर्त नियमावली 2020" और ईपीएफ योजना को सरकार आनन फानन में चुनाव पूर्व नियोजित शिक्षकों को गुमराह करने के लिए लाई थी , वह भी मुख्यमंत्री के पत्र और उपलब्धियों में जगह नहीं बना सका। क्योंकि मुख्यमंत्री /सरकार भी जानती है कि ये सेवा शर्त  असंवैधानिक, गैरकानूनी सहित अपूर्ण और शिक्षकों के हित में नहीं है। जिस प्रदेश की पूंजी और उसकी मेधा और परिश्रम हो वहां सरकार ना तो बच्चों के शिक्षा के अधिकार के प्रति संवेदनशील दिखती है और न ही शिक्षकों  के संवैधानिक अधिकारों के प्रति ही। 

शिक्षकों ने कहा कि "गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बगैर कोई भी समाज गुणवान नहीं हो सकता । तनाव रहित व प्रसन्नचित एक गुणवान  शिक्षक ही गुणवान नागरिक पैदा कर सकता है ;  परन्तु  बिहार जो आज पुरे देश का  निरक्षरतम प्रदेशों में से एक है , सरकार के मजबूत इच्छाशक्ति के अभाव में आधुनिक धरातल पे अपने गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत व अतीत की जर्जर ठठरी लिए कलप रहा है ।  

शिक्षकों का कहना है कि एक अन्य महत्वपूर्ण  विंदु यह भी  है कि पंचायत व नगर निकाय संस्थानों के अन्तर्गत कार्यरत शिक्षकों के लिए लागू की गई छद्म व शोषणकारी नई सेवाशर्त नियमसवली  व  ईपीएफ आदि को खुद सरकार अपनी उपलब्धियों  में न गिनवा सकी ; किन्तु एक शिक्षक संघ के नेता व एमएलसी प्रत्याशी  दोयमदर्जे  की सेवाशर्त नियमावली और उसमें वर्णित  ईपीएफ आदि के लिए  सरकार को बधाई देते नही अघा रहे और इसे संघ व अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं। शिक्षकों ने कहा कि "निर्माण और प्रलय दोनों ही उनके गोद में पलते हैं" । हम सभी ने इन सबों को अर्श से फर्श पर पहुंचाया है तो अब समय आ गया है कि सरकार और संघ के मठाधीशों को ही नहीं , बल्कि विधान परिषद में सरकार और संघ समर्थित उम्मीदवारों को जमींदोज करेंगे।