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विधानसभा चुनावों में नीतीश की रणनीति की करारी हार, जदयू के हिसाब से सियासत करना कांग्रेस को पड़ गया भारी, जाति गणना का दांव पड़ा फुस्स

विधानसभा चुनावों में नीतीश की रणनीति की करारी हार, जदयू के हिसाब से सियासत करना कांग्रेस को पड़ गया भारी, जाति गणना का दांव पड़ा फुस्स

PATNA : पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह सभी राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करेगी। रविवार को चार राज्यों के आए विधानसभा चुनाव परिणाम के शुरुआती रुझानों से ही स्पष्ट हो गया है की तेलंगाना को छोड़कर हिंदी पट्टी के राज्यों ने कांग्रेस को झटका दिया है। लेकिन यह झटका सिर्फ कांग्रेस को नहीं है। कांग्रेस की हार के पीछे एक तरीके से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रणनीति का भी सामना करना पड़ा है। 

नीतीश कुमार ने बिहार में जाति आधारित गणना कराई। इस आधार पर बिहार में आरक्षण के दायरे को भी 50% से बढ़कर 65 फीसदी किया गया है। नीतीश कुमार लम्बे अरसे से राष्ट्रीय स्तर पर जाति गणना करने की मांग करते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत केंद्र सरकार ने नीतीश कुमार की इस मांग को स्वीकार नहीं किया था। उसके बाद बिहार की महागठबंधन सरकार ने अपने बलबूते राज्य में जाति गणना कराई और इसे अपनी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया। 

इतना ही नहीं नीतीश कुमार हों या राजद सुप्रीमो लाल यादव दोनों ने कांग्रेस से मांग कि वह राष्ट्रीय स्तर पर जाति गणना कराए। नीतीश कुमार के जाति गणना के दांव को कांग्रेस ने  पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रचार के दौरान खूब जोरशोर से पेश किया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने करीब करीब सभी राज्यों में यह वादा किया कि जब उनकी सरकार बनेगी तो राज्यों में जाति गणना कराई जाएगी। साथ ही ओबीसी वर्ग के लिए भी राहुल गांधी ने कई किस्म के लोक लुभावना वादे किये। लेकिन चुनाव परिणाम इसके उलट रहा है। 

विशेषकर हिंदी पट्टी के राज्यों में कांग्रेस अपनी जड़ों को मजबूत करने के लिए काफी मेहनत कर रही है। लेकिन चाहे मध्य प्रदेश हो या फिर कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। राजनीतिक जानकर भी मानते हैं कि जाति गणना को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश करने का राहुल गांधी का दांव उल्टा पड़ा है। यह ऐसा मुद्दा नहीं बन पाया जिससे अलग-अलग जातियों के वोट कांग्रेस को शिफ्ट होते। एक ओर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीब, युवा, किसान और महिलाओं को देश की सबसे बड़ी जाति के रूप में पेश करते रहे। वे जाति को तोड़कर समाज में बराबरी के लिए इन चारों को सशक्त करने की बात करते रहे तो दूसरी ओर राहुल गांधी नीतीश कुमार की तर्ज पर जाति गणना की बातें चुनाव प्रचार के दौरान किए। 

कांग्रेस को तीन राज्यों में लगे चुनावी झटके के बाद माना जा रहा है कि जाति गणना का मुद्दा कांग्रेस के लिए वैसा प्रभावशाली नहीं रहा जैसी उसे उम्मीद थी। संभव है जाति गणना और आरक्षण के लोक लुभावना फार्मूले से बिहार में नीतीश- लालू की जोड़ी कोई बड़े लाभ को देख रही हो। लेकिन कांग्रेस को लगे झटके ने फिर से यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या जाति गणना के सहारे सियासी ज़मीन मजबूत हो सकती है। फिलहाल तीन राज्यों में कांग्रेस को लगे झटके ने नीतीश कुमार को भी झटका दे दिया है।

प्रियदर्शन शर्मा की रिपोर्ट

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