PATNA : नरेन्द्र मोदी सरकार के चार साल पूरा होने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार ने बधाई देने की केवल रस्मअदायगी की। उन्होंने ट्वीटर पर बधाई देने की
खानापूर्ति की। सूत्रों के मुताबिक इस मौके पर नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री से फोन
पर कोई बात नहीं हुई। नीतीश कुमार मोदी सरकार की चौथी सालगिरह पर कुछ बोलने से
बचते रहे। शनिवार को बिहार बैंकर्स समिति की बैठक के बाद जब पत्रकारों ने उनसे इस मामले पर
प्रतिक्रिया लेनी चाही तो वे इससे पल्ला झाड़ते नजर आये। पत्रकार उनके पीछे-पीछे
भागते रहे लेकिन वे बच कर निकलते रहे। मोदी सरकार की सालगिरह पर उन्होंने कुछ भी बोलने
से परहेज किया। इसके बाद राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा तेज हो गयी है कि
नीतीश कुमार, भाजपा के साथ गठबंधन में सहज नहीं हैं। पिछले कुछ समय से वे अपने को
नरेन्द्र मोदी के साथ असहज महसूस कर रहे हैं। इसके पहले बिहार विधान परिषद के
चुनाव में जब उन्होंने खालिद अनवर को MLC बनाया तो इस मुद्दे पर उनका भाजपा से मतभेद भी हुआ था।
कुछ समय पहले जब
नीतीश कुमार दिल्ली गये थे तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी।
लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार की मुलाकात की कोई तस्वीर
नहीं जारी हुई। इस मुलाकात में दोनों नेताओं के बीच क्या बात हुई, यह भी सार्वजनिक
नहीं किया गया। इसके पहले जब
भी नीतीश, मोदी से मिले खबरों और तस्वीरों को बहुत प्रमुखता से मीडिया को मुहैया
कराया गया। नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए पिछले कई साल
से अभियान चला रहे हैं। लेकिन इस मामले में उन्हें नरेन्द्र मोदी से कोई ठोस
आश्वासन नहीं मिल पाया है। जदयू में इससे असंतोष है। जदयू के नेता अक्सर इस मुद्दे
पर बयान देते रहे हैं कि केन्द्र, बिहार के हक के साथ नाइंसाफी कर रहा है। राजद के
नेता इस मामले में जदयू का मजाक उड़ाने से नहीं चूकते हैं।
शुक्रवार को
केन्द्रीय मानवसंसाधन राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार से मुलाकात की
थी। यह मुलाकात भी काफी गोपनीय रही। दोनों के बीच क्या बात हुई, इसको सार्वजनिक
नहीं किया गया। बाद में मीडिया को केवल एक तस्वीर जारी की गयी। माना जा रहा है कि
नीतीश कुमार बीजेपी के अल्टरनेटिव की तलाश में हैं। केन्द्रीय मंत्री और लोजपा प्रमुख
रामविलास पासवान से भी नीतीश का मिलना-जुलना बढ़ गया है। नीतीश कुमार एक स्वीकार्य
विकल्प की तलाश में हैं ताकि उन्हें भाजपा पर निर्भर नहीं रहना पड़े। उपेन्द्र
कुशवाहा और रामविलास पासवान क्षेत्रीय क्षत्रप हैं, इस लिए वे भी अपनी साख बचाने
के लिए कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं।