दिल्ली- चेहरे पर मुस्कान हाथ में संविधान.. संसद के बाहर विपक्षी सांसदों का नजारा देखने लायक था... राजनीतिक पंडित इसके अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं... विपक्ष जब मजबूत होता है तभी देश तरक्की करता है...सर पर लाल टोपी हाथ में संविधान लेकर सभी सपा विधायक संसद पहुंचे थे अखिलेश यादव के चेहरे पर अलग सी मुस्कान थी.... तस्वीर थी विपक्ष के नेताओं के सिटिंग अरेंजमेंट की. जब विपक्ष की ओर इसके नेता बैठे तो फ्रंट लाइन में सफेद टी-शर्ट पहने राहुल गांधी नजर आए तो लाल टोपी लगाए हुए अखिलेश यादव उनके बगल में बैठे थे. इसी जगह बैठे थे अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद. अखिलेश हर जगह उन्हें अपने साथ लेकर चल रहे थे और कई मौकों पर तो खुद से आगे भी रख रहे थे.
अखिलेश यादव फैजाबाद लोकसभा सीट से जीत कर आये अवधेश प्रसाद को पीछे की पंक्ति से बुलाकर अपने बगल में खड़ा किया और देशभर को यह मैसेज देने की कोशिश की जिस अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करके भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था उसी अयोध्या सीट पर भारतीय जनता पार्टी को करारी हार मिली अखिलेश यादव देशभर को यह मैसेज देना चाहते थे कि श्री राम का आशीर्वाद उन्हें मिला इसलिए वह उत्तर प्रदेश में 37 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे हैं।
अखिलेश यादव और राहुल गांधी अवधेश प्रसाद को पीछे की पंक्ति से बुलाकर बीच में खड़ा किया सभी विपक्षी सांसदों के हाथों में संविधान की किताब थी सभी विपक्षी सांसद यह मैसेज देने की कोशिश कर रहे थे कि हम संविधान बचाने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे। सच है कि तस्वीर जो भी हो, जैसी भी हो, फर्क तब पड़ता है जब देखने का नजरिया हो.
बात जब राजनीति की हो तो तस्वीरें और भी मौजूं हो जाती हैं, क्योंकि किस तस्वीर को किस नजरिए से देखा जा रहा है और उनका क्या मतलब हासिल हो रहा है, ये सिर्फ वक्त ही बता सकता है.मौका था 18वीं लोकसभा के पहले सत्र की शुरुआत का और इस दौरान विपक्ष की ओर से जो तस्वीर निकल कर सामने आई है, उसने बिना बोले ये जता दिया है कि दस साल बाद ही सही, लेकिन इस बार हमारी (विपक्ष की) मौजूदगी संसद में मजबूती से रहेगी...
अखिलेश यादव और राहुल गांधी सत्ता पक्ष को यह संदेश देना चाह रहे थे कि इस बार विपक्ष के बगैर सत्ता पक्ष कुछ नहीं कर सकता लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने कई तैयारियां कर रखी थी कई बिल लाने वाली थी जैसे सोशल मीडिया पर शिकंजा कसना इसके अलावा कई अन्य चीजों पर लगाम लगाना चाहती थी लेकिन अब बगैर विपक्ष के सहमति की भारतीय जनता पार्टी कुछ भी नहीं कर सकती। यही वजह है कि चुनाव हारने के बाद भी विपक्ष के चेहरे पर मुस्कान थी उसे पता था कि अब उनकी भागीदारी संसद में कितनी होने वाली है। विपक्ष के मजबूत होने से इस बार सत्ता पक्ष का काम करने का तरीका अलग हो सकता है।
रिपोर्ट आशिफ खान