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बाप रे बाप! हांफ रहे मास्टर साहेब! के के पाठक का राज है! शौचालय से लेकर इंसान की गिनती तक,बोरा से कर कबाड़ बेचने तक..आखिर कितने काम का बोझ

पटना- शिक्षकों का मुख्य काम हैं पढ़ाना लेकिन बिहार में पंचायत चुनाव हो या फिर मानव श्रृंखला, जल जीवन मिशन हरियाली हो या फिर सरकार की कोई भी कल्याणकारी योजना, जनगणना,पशुगणना से लेकर चुनावी कार्यों तक की जिम्मेदारी दिए जाने वाले शिक्षकों को कभी खुले में शौच से मुक्त अभियान से जोड़ा जाता है तो कभी बोरा बेचने के काम में लगाया जाता है. स्कूलों के शिक्षकों की ड्यूटी अब कबाड़ बेचने के लिए लगाई गई है.

बिहार के शिक्षा विभाग में  कुछ महीनों से लगातार नए-नए नियम जारी हो रहे हैं.  बिहार की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए अपर मुख्य सचिव केके पाठक एक के बाद एक कई बड़े निर्णय ले रहे हैं और रोज स्कूलों का निरीक्षण कर रहे हैं. कभी शिक्षकों, कभी छात्रों तो कभी कोचिंग सेंटर्स के लिए फरमान जारी कर रहे हैं. अब शिक्षा विभाग ने स्कूलों के टीचर्स को एक और नई जिम्मेदारी दी है. सरकारी स्कूलों के हेड मास्टरों को बोरे बेचने का आदेश आया. बोरा को 20 रुपये की दर से बेचने वाले आदेश पर शिक्षक सोंच ही रहे थे कि शिक्षा विभाग ने स्कूलों में पड़े कबाड़ को बेचने का फरमान जारी कर दिया. इस आदेश से शिक्षक अपने को कुछ असहज महसूस करने लगे हैं.

बिहार में शिक्षकों को कभी शराबियों, शराब तस्करों, पियक्कड़ों की निगरानी करने के काम में लगाया जाता है तो  कभी खुले में शौच से मुक्त अभियान से जोड़ा जाता है.एक समय मास्टर जी के लिए निर्देश जारी हुआ था कि वे सुबह अपने क्षेत्र के खुले स्थान, यानि नदी, नाले या खेत की ओर जाएंगे. वहां अगर कोई लोटा पार्टी उन्हें दिखती है तो उसे खुले में शौच करने की सलाह देंगे. उसके साथ सेल्फी लेंगे और इसकी रिपोर्ट प्रखंड विकास पदाधिकारी को देंगे. इसके बाद  शिक्षकों को शराबियों शराब तस्करों और पियक्कड़ों की निगरानी में लगा दिया जाता है.

यहीं नहीं बिना मास्टर साहेब के जातीय जनगणना कैसे होगी तो उन्हें जातीय जनगणना में लगा दिया जाता है.और अब  बोरा बेचने के बाद कबाड़ बेचने के काम में लगाया गया है. 

अपर मुख्य सचिव केकेपाठक के शिक्षा में सुधारवादी कदम की सब जगह प्रशंसा हो रही है,वहीं शिक्षको का कहना है सरकार और शिक्षा विभाग के स्तर से सबसे अधिक कार्यों की जिम्मेवारी  शिक्षक को ही क्यों सौंपी जाती है?  शिक्षकों का कहना है कि उनहें स्कूल के बाहर के दायित्वों से मुक्त करना चाहिए, तभी केके पाठक के सख्ती का असर शिक्षा व्यवस्था में देखने को मिलेगा.

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