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पितृपक्ष के मौके पर बहन ने मां से कराया भाई का पिंडदान, कहा पुरोहित को पैसे देने में हैं असमर्थ

पितृपक्ष के मौके पर बहन ने मां से कराया भाई का पिंडदान, कहा पुरोहित को पैसे देने में हैं असमर्थ

GAYA: विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला को लेकर मोक्ष धाम गयाजी यूं तो देश-विदेश से लाखों तीर्थ यात्री अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करते देखे जा रहे हैं, लेकिन शनिवार को गया जी में पिंडदान का एक अलग नजारा देखने को मिला। पितृ मुक्ति के लिए पिंडदान करवाते तो अपने पुरोहित को देखा होगा लेकिन ऐसा आपने ना ही सुना एवं देखा होगा कि अपने भाई के मोक्ष प्राप्ति के लिए स्वयं एक बहन ने पैसों के अभाव में मां से पिंडदान करवाया। यह नजारा गया जी के सीता कुंड पद पर देखने को मिला। 

दरअसल, नालंदा जिले के बिछा गांव की रहने वाली कामिनी कुमारी और उसकी माता सीताकुंड पथ पर पिंडदान कर्मकांड संपन्न कर रही थी। नालंदा जिले से आई मां बेटी जब गया जी के पुरोहित से पिंडदान करवाने के लिए संपर्क किया तो पुरोहित के द्वारा 500 रुपये की मांग की गई तो उन लोगों ने अपनी असमर्थता जताई और कामिनी स्वयं 20 रूपया का एक किताब खरीद कर अपने भाई का पिंडदान अपनी मां से करवाने लगी। पिंडदान के दौरान कामिनी कुमारी ने बताया कि विगत वर्ष पहले उनके भाई की मृत्यु हो गई है। जिसका पिंडदान करने के लिए गया जी आए हैं ,लेकिन पुरोहितों को देने वाले पैसा के अभाव में पिंडदान अपनी मां से करवा रही हूँ।

 वहीं अपने बेटा का पिंडदान कर रही नालंदा जिले की रहने वाली मां ने बताया कि अपने बच्चों के मुक्ति के लिए गया जी आए हैं और पिंडदान कर रहे हैं लेकिन पैसे के अभाव में उनकी पुत्री कामिनी स्वयं किताब खरीद कर अपने भाई का पिंडदान करवा रही है,क्योंकि पुरोहित द्वारा ₹500 की मांग की जा रही थी परंतु 500 देने में हम लोग असमर्थ थे। पिंडदान कर रही महिला ने बताया कि उनके पुत्र की हत्या उनकी पुत्री के ससुराल वालों के द्वारा दहेज के कारण करवा दी गई थी। उन्होंने यह भी बताया कि अपनी पुत्री की शादी एक अच्छे परिवार देखकर किया था परंतु उनके ससुराल वाले अच्छे परिवार होने के बावजूद भी लगातार दहेज की मांग कर रहे थे। दहेज नहीं देने के कारण उनके पुत्र की हत्या करवा दिया।

बहरहाल मृत्यु का कारण चाहे जो भी हो परंतु नालंदा जिले के रहने वाली मां बेटी  के द्वारा किए जा रहे हैं पिंडदान यह  भी दर्शाता है कि गरीबी की मार झेलते हुए मन में अगर श्रद्धा की आस्था हो एवं अपने पितरों की मुक्ति करवाने का लक्ष्य हो तो गरीबी रोड़ा नहीं बनती है। कामिनी ने पिंडदान करवा कर एक मिसाल कायम की है।

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