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बिहार में किसका खेला खराब करेंगे ओवैसी, मुस्लिम बहुल सीटों पर नहीं लड़ा चुनाव, अब राजपूत के खिलाफ राजपूत प्रत्याशी, आठ सीटों पर बड़ा गेम

बिहार में किसका खेला खराब करेंगे ओवैसी, मुस्लिम बहुल सीटों पर नहीं लड़ा चुनाव, अब राजपूत के खिलाफ राजपूत प्रत्याशी, आठ सीटों पर बड़ा गेम

पटना. असदुद्दीन ओवैसी बिहार में किसका खेल खराब करेंगे. या फिर असदुद्दीन ओवैसी इस बार बिहार में अपने बलबूते कोई बड़ा करिश्मा करेंगे. यह सवाल अचानक से लोकसभा चुनावों के मध्य में बिहार में चर्चा में आ गया है. इसके पीछे की वजह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के अचानक से बिहार में आठ लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के ऐलान के कारण हुआ है. बिहार में पहले दो चरणों के चुनाव में नौ संसदीय सीटों पर मतदान हो चुका है. इसमें सीमांचल की वे सीटें भी शामिल हैं जहां बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी है. बावजूद इसके एआईएमआईएम ने सिर्फ किशनगंज से ही उम्मीदवार उतारा और खुद असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव प्रचार भी किया. हालाँकि अब पार्टी ने अपनी रणनीति बदल दी है. 

एआईएमआईएम ने घोषणा की है कि वह बिहार में आठ से 10 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. इसमें किशनगंज के अलावा शिवहर, गोपालगंज, पाटलिपुत्र, महाराजगंज, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, जहानाबाद, काराकाट, वाल्मीकिनगर, मोतिहारी की सीट शामिल हो सकती है. पार्टी ने शिवहर में पूर्व सांसद सीताराम सिंह के बेटे राणा रणजीत सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है. शेष सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम का इंतजार है. लेकिन शिवहर से उम्मीदवार की घोषणा के साथ ही ओवैसी निशाने पर आ गए हैं. उन पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे जानबूझकर एनडीए को कमजोर करने की रणनीति के तहत इन सीटों पर चुनाव में प्रत्याशी उतार रहे हैं. 

दरअसल, जिस शिवहर सीट से राणा रणजीत सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है यहां मुख्य मुकाबला जदयू की लवली आनंद और राजद की रितु जायसवाल के बीच है. लवली आनंद राजपूत जाति से आती हैं. ऐसे में यहां राजपूत जाति से आने वाले राणा रणजीत सिंह को अपना प्रत्याशी बनाकर ओवैसी विरोधियों के निशाने पर आ गये हैं. कहा जा रहा है कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया है ताकि राजपूत वोटों में बंटवारा हो जाए. अगर ऐसा हुआ तो यह लवली आनंद के लिए बड़ा झटका हो सकता है. यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या महज 16 प्रतिशत है. 

जाहिर तौर पर मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के आधार पर खड़ी एआईएमआईएम के अचानक से बिहार में कई सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला सबको चौंका रहा है. दरअसल, सीमांचल के जिन इलाकों में चुनाव संपन्न हुआ है उसमें कटिहार, पूर्णिया दो ऐसी सीटें रही जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद 40 फीसदी से ज्यादा मानी जाती है. इसी तरह अररिया में करीब 42 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों के बावजूद एआईएमआईएम ने यहां प्रत्याशी नहीं दिया. कटिहार में तो एआईएमआईएम ने आदिल हसन को प्रत्याशी तक घोषित कर दिया था, लेकिन नामांकन से चंद घंटों पूर्व पार्टी का फैसला आया कि यहां से वह चुनाव नहीं लड़ेगी. इसी तरह अररिया में पूर्व सांसद तसलीमुद्दीन के बड़े पुत्र सरफराज आलम का टिकट काटकर लालू ने उनके छोटे भाई शाहनवाज को उम्मीदवार बना दिया. इससे सरफराज नाराज हुए और उन्हें उम्मीद थी कि शायद एआईएमआईएम से उन्हें अररिया से उम्मीदवार बनाया जाये.  लेकिन ओवैसी की पार्टी ने अररिया से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया. 

अब ओवैसी का शिवहर से राजपूत प्रत्याशी देना और कई अन्य सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान करना सियासी तौर पर एक खास रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. जैसे शिवहर से राणा रणजीत सिंह उम्मीदवार बनाने से लवली आनंद को नुकसान होता है तो यह राजद के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि शेष जिन सीटों से ओवैसी के एआईएमआईएम चुनाव लड़ने का फैसला लिया है वहां किसे उम्मीदवार बनाया जाता है. यह कई प्रमुख उम्मीदवारों के लिए बड़ा झटका देने वाला हो सकता है. 

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