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मोहनजोदड़ो में दीवार की खुदाई कर रहे पाकिस्‍तानी मजदूरों को मिला खजाना, मिला 500 साल पुराने तांबे के सिक्कों से भरा बर्तन

मोहनजोदड़ो में दीवार की खुदाई कर रहे पाकिस्‍तानी मजदूरों को मिला खजाना, मिला 500 साल पुराने तांबे के सिक्कों से भरा बर्तन

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में संरक्षण कार्य के दौरान यूनेस्को के वैश्विक धरोहर स्थल मोहनजोदड़ो के एक स्तूप से तांबे के सिक्कों से भरा एक बर्तन मिला। एक मीडिया रिपोर्ट में शुक्रवार को यह जानकारी दी गई.दुनियाभर की सबसे पुरानी सभ्याताओं में गिनी जाने वाली सिंधु घाटी सभ्यता के वैश्विक धरोहर स्थल मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान एक दीवार से तांबे के सिक्कों से भरा बर्तन मिला है। एक साइट के संरक्षण के दौरान पाकिस्तानी मजदूर एक दीवार पर काम कर रहे थे। संरक्षण विभाग के निदेशक सैयद शाकिर शाह के मुताबिक दीवार ढह गई थी और इसी की खुदाई की जा रही थी। तभी मजदूरों की नजर एक बर्तन पर पड़ी। इसे निकाला गया तो इसमें तांबे के सिक्के निकले। इसका बाद संरक्षण विभाग के अधिकारियों को इसकी जानकारी दी गई। टीम ने इन सिक्कों को लैब भेज दिया है। बताया जा रहा कि लंबे समय के बाद मोहनजोदड़ो से कोई ऐसी चीज मिली है जो कि किसी बड़े रहस्य से पर्दा उठा सकती है।

मोहनजोदड़ो का इतिहास एक ऐसी प्राचीन सभ्यता है जो कई हज़ार वर्षों पहली इस दुनिया में मौजूद थी। मोहनजोदड़ो का मतलब है मुर्दों का टीला, दक्षिण एशिया में बसे इस शहर को सबसे पुराना शहर माना जाता है, यह बहुत ही व्यवस्थित ढंग से बनाया गया था। पाकिस्तान के सिंध में 2600 BC के आस पास इसका निर्माण हुआ था। खुदाई के दौरान इस शहर के बारे में लोगों को जानकारी हुई, इसमें बड़ी बड़ी इमारतें, जल कुंड, मजबूत दिवार वाले घर, सुंदर चित्रकारी, मिट्टी व धातु के बर्तन, मुद्राएँ, मूर्तियाँ, ईट, तराशे हुए पत्थर और भी बहुत सी चीजें मिली। जिससे ये पता चलता है कि यहाँ एक व्यवस्थित शहर बना हुआ था। इस पर कई बार खुदाई का काम शुरू हुआ और बंद हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि एक तिहाई भाग की ही खुदाई हुई है। यह शहर 200 हैक्टेयर क्षेत्र में बसा हुआ है।

1856 में एक अंग्रेज इंजिनियर ने रेलरोड बनाते समय इस प्राचीन सभ्यता को खोज निकाला था। रेलवे ट्रैक बनाने के लिए यह इंजिनियर पत्थरों की तलाश कर रहा था, जिससे वो गिट्टी बना सके। यहाँ उन्हें बहुत मजबूत और पुराने ईट मिली, जो बिल्कुल आज की ईट की तरह बनी हुई थी। वहां के एक आदमी ने बताया कि सबके घर इन्ही ईटो से बने है जो उन्हें खुदाई में मिलते है, तब इंजिनियर समझ गया कि ये जगह किसी प्राचीन शहर से जुड़ी है। इस इंजिनियर को सबसे पहले सिन्धु नदी के पास बसे इस सबसे पुरानी सभ्यता के बारे में पता चला था, इसलिए इसे सिंधु घाटी की सभ्यता कहा गया। अपने आप में अभी तक एक छुपी हुई पहेली की तरह है।

बहरहाल इन सिक्कों की भाषा और उन पर अंकित संख्याओं की व्याख्या करने के अलावा यह विश्लेषण करने के लिए अनुसंधान किया जाएगा कि ये सिक्के कितने पुराने थे। संरक्षण और संरक्षण निदेशक ने कहा कि सटीक समय अवधि और अन्य प्रासंगिक विवरणों की पुष्टि प्रयोगशाला विश्लेषण के बाद ही की जा सकती है।1980 में यूनेस्को की उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य की विश्व धरोहर स्थलों की लिस्ट में अंकित मोहनजोदड़ो के पुरातात्विक खंडहर - मोहनजोदड़ो के प्राचीन विशाल शहर के खंडहर - तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में पूरी तरह से कच्ची ईंटों से बने हैं। ये सिंधु घाटी में स्थित हैं।

संरक्षण विभाग के निदेशक शाकिर शाह के मुताबिक इन सिक्कों पर किसी भाषा में कुछ अंकित किया गया है। पहले तो सिक्कों को निकालना ही बड़ी चुनौती थी। लंबे समय से दबे होने की वजह से वे क्षरित भी हुए हैं। जांच के बाद पता चलेगा कि ये सिक्के किस जमाने के हैं और इनमें क्या लिखा है। उन्होंने कहा कि इन सिक्कों से कई बातें सामने आ  सकती हैं जिससे पुरानी दुनिया के बारे में कई बातें पता चलेंगी। मोहनजोदड़ो 500 साल पुरानी विरासत है। इस जगह से मिले अवशेष बताते हैं कि यहां कभी बहुत ही विकसित शहर हुआ करता था।

1980 में मोहनजोदड़ो को विश्व धरोह स्थल में शामिल किया गया था। यहां से मिले पुरातात्विक खंडहर तीसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूराव के बताए जाता हैं। यहां मिट्टी की कच्ची ईंटें पाई गई थीं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण शहर हैं। सिंधु घाटी सभ्यता पाकिस्तान, अफगानिस्तान और भारत में फैली हुई है मोहनजोदाड़ो सिंधी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है मुर्दों का टीला।सिंधु घाटी की सभ्यता को सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक माना जाता है। इसके शहरों मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के निवासी पशुपालन और खेती करते थे और कई तरह के अनाज, फल, दालें, मसाले वगैरह उगाते थे। यह मौजूदा समय में पाकिस्तान के सिंध में है।

यह शहर 26 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बना था। हालांकि इस शहर को 1921 में ढूंढ़ा गया। मोहनजोजड़ों की खोज राखलदास बनर्जी ने की थी। 1922 में राखालदास बेनर्जी जो पुरातत्व सर्वेक्षण के सदस्य थे, उन्होंने पाकिस्तान में सिंधु नदी के पास में खुदाई का काम किया था। उन्हें बुद्ध का स्तूप सबसे पहले दिखाई दिया। जिसके बाद शक था कि यहाँ इसके नीचे कुछ और  इतिहास दबा हुआ है। इस खोज को आगे बढ़ाते हुए 1924 में काशीनाथ नारायण व 1925 में जॉन मार्शल (ब्रिटिश) ने खुदाई का काम करवाया। 1965 तक इसे भारत के अलग-अलग लोगों की कमांड में करवाया गया। लेकिन इसके बाद इस खोज को बंद करा दिया गया और कहा गया कि मोहनजोदड़ो का इतिहास और इसकी खुदाई से प्रकति को नुकसान हो रहा .


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