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चुनावी साल में महंगाई की मार से बेहाल जनता, अनिश्चित वैश्विक परिदृश्य है कारण,लगाम के लिए उठाने होंगे कड़े कदम

चुनावी साल में महंगाई की मार से बेहाल जनता, अनिश्चित वैश्विक परिदृश्य है कारण,लगाम के लिए उठाने होंगे कड़े कदम

दिल्ली-   महंगाई आर्थिक मोर्चे पर अभी सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती बनी हुई है. भारत में भी यह असहज स्तर पर है, लेकिन कई देशों पर इसका कहर कहीं ज्यादा असर डाल रहा है, जिसकी तपिश हमें भी झेलनी पड़ रही है. हाल के दिनों में रुपये की पतली हुई हालत से लेकर शेयर बाजार पर पड़ती मार के पीछे भी कहीं न कहीं महंगाई का वैश्विक रुझान ही जिम्मेदार है. वहीं  केंद्र सरकार ने कहा कि इस समय त्योहारी मौसम के दौरान आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहने की उम्मीद है. सरकार ने हाल ही में मूल्य स्थिर रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं. इसके तहत सरकार ने अपने नियंत्रण वाले सभी उपायों का उपयोग किया है चाहे वह व्यापारिक नीति हो या स्टॉक सीमा मापदंड तय करने का पैमाना हो. सरकार का यह वक्तव्य ऐसे समय में आया जब इन दिनों हमास-इस्राइल युद्ध, कच्चे तेल उत्पादक देशों द्वारा तेल उत्पादन में कटौती, कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ते हुए ऊंचे स्तर पर पहुंचने और वैश्विक खाद्यान्न संकट से दुनियाभर में महंगाई बढ़ने का परिदृश्य दिखाई दे रहा है. इसी माह अक्तूबर, 2023 में प्रकाशित केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक थोक एवं खुदरा महंगाई के सूचकांक महंगाई में कमी का संकेत दे रहे हैं, लेकिन चुनौतीपूर्ण वैश्विक भूराजनीतिक व आर्थिक चुनौतियों के दौर में तेज महंगाई बढ़ने की आशंका बनी हुई है.

महंगाई शहरी मध्यम वर्ग को अधिक प्रभावित करती है, इसलिए आगामी चुनावों में महंगाई के मुद्दे के मद्देनजर सरकार द्वारा महंगाई नियंत्रण सरकार की बड़ी चिंता बन गई है. यह चिंता इसलिए भी दिखाई दे रही है क्योंकि पिछले दिनों विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के साथ-साथ भारत में भी महंगाई बढ़ने की चुनौती पैदा हुई है. रिपोर्ट में वर्ष 2023-24 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 5.9 फीसदी रहने का अनुमान प्रस्तुत किया गया है, पूर्व में प्रस्तुत महंगाई के अनुमान से नया अनुमान अधिक बताया गया है. 16 अक्तूबर को प्रकाशित थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आंकड़ों के अनुसार सितंबर, 2023 में थोक मुद्रास्फीति दर लगातार छठे महीने शून्य से नीचे घटकर सितंबर में -0.26 प्रतिशत दर्ज की गई. अगस्त महीने में थोक महंगाई दर पांच महीने के उच्च स्तर -0.52 फीसदी पर पहुंच गई थी. पिछले माह सितंबर में रासायनिक उत्पादों, खनिज तेल, कपड़ा, बुनियादी धातुओं और खाद्य उत्पादों की कीमतों में गिरावट थोक महंगाई के कम होना प्रमुख कारण है. 

अर्थशास्त्री डॉ रामानंद पाण्डेय ने बताया कि इस समय देश में महंगाई को लेकर चुनौतियां मुंह बाएं खड़ी हैं. पिछले माह सितंबर के दौरान ज्यादातर समय कच्चे तेल का दाम 90 डॉलर प्रति बैरल से अधिक रहा है. अब ये और बढ़ कर 94 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है. चूंकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरत का करीब 80 फीसदी आयात करता है, अतएव वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के तेजी से बढ़ते हुए मूल्यों के कारण महंगाई बढ़ने की आशंका है. जहां दुनिया के बाजारों में गेहूं, दाल और चावल की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं, वहीं चीनी की कीमतें तो 12 साल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं. डीएवी कॉलेज के अर्थशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार इसी माह अक्तूबर, 2023 में त्योहारी मांग बढ़ने से गेहूं, अरहर की दालों व अन्य खाद्यान्नों के दाम बढ़ने लगे है. यह भी उल्लेखनीय है कि 18 अक्तूबर को सरकार द्वारा प्रकाशित खाद्यान्न उत्पादन आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022-23 में गेहूं का उत्पादन अनुमानित लक्ष्य से 20 लाख टन घटकर 11.05 करोड़ टन रहेगा, दालों का उत्पादन पिछले वर्ष 2.7 करोड़ टन से घटकर 2.6 करोड़ टन और चावल का उत्पादन भी घटकर 13.57 करोड़ टन होने का अनुमान है. ऐसे में गेहूं और दालों की कीमतें बढ़ने की आशंकाएं सामने हैं. पिछले साल 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद कम उत्पादन के कारण गेहूं के निर्यात पर जो पाबंदी लगाई गयी थी, वह अब तक जारी है. प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया है. सरकार ने 25 अगस्त से उबले चावल के निर्यात पर भी 20 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है. डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार महंगाई के नए आंकड़ों से महंगाई नियंत्रित दिखाई दे रही है लेकिन दुनिया के चुनौतीपूर्ण भूराजनीतिक और युद्धपूर्ण परिदृश्य के मद्देनजर महंगाई बढ़ने की आशंका बनी हुई है. डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार गेहूं के दाम नियंत्रण के लिए खुले बाजार में मांग की पूर्ति के अनुरूप इसकी अधिक बिक्री जरूरी है. आटा मिलों को अधिक मात्रा में गेहूं देना होगा. साथ ही गेहूं के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दिए जाने की जरूरत है. यह भी ध्यान में रखा जाना होगा कि इस वर्ष सरकार 341 लाख टन के मुकाबले किसानों से 262 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई है. यह भी ध्यान रख जाना होगा कि एक अक्तूबर तक सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक करीब 240 लाख टन था जो पिछले 5 साल के औसत करीब 376 लाख टन से की कम है.

अर्थशात्री डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार नकारात्मक संकेतों के बीच भारत के नजरिये से कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं. दुनिया के मुकाबले भारत में महंगाई उतनी ज्यादा नहीं है और तमाम देशों की मुद्राओं से तुलना करें तो भारी वैश्विक उथल-पुथल की स्थिति के बावजदू रुपये की हैसियत में तमाम देशों की मुद्राओं की तुलना में उतनी ज्यादा गिरावट नहीं आई है. मुद्रा को संतुलन देने में रिजर्व बैंक का रुख भी अभी तक बहुत सधा हुआ रहा है. अब बस यही देखना होगा कि वैश्विक चुनौतियों से निपटने में आगे किस प्रकार की कार्रवाई जारी रहती है  


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