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बिहार के बड़े भाई-छोटे भाई की सियासी खिंचतान,सीट शेयरिंग पर इंडी गठबंधन में कोल्डवार जारी,आखिर नीतीश की मौन का कारण है क्या,पढ़िए इंसाइड स्टोरी

बिहार के बड़े भाई-छोटे भाई की सियासी खिंचतान,सीट शेयरिंग पर इंडी गठबंधन में कोल्डवार जारी,आखिर नीतीश की मौन का कारण है क्या,पढ़िए इंसाइड स्टोरी

PATNA- लालू और नीतीश जब जनता दल सरकार के दौरान साथ थे तो नीतीश लालू प्रसाद को बड़े भाई साहब बोलते थे. यह सिलसिला उस समय भी जारी रहा जब लालू सत्ता से बाहर थे और नीतीश कुमार बिहार की कुर्सी पर भाजपा की मदद से विराजमान थे. नीतीश उस समय भी लालू को बड़े भाई साहब कहकर ही कटाक्ष करते थे. संयोगवश मौजूदा समय में जदयू-राजद के गठबंधन की सरकार में भी नीतीश कुमार,लालू प्रसाद को बड़े भाई ही बोल रहे हैं.अब नीतीश कुमार को चार्ल्स डारविन की सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट सिद्धांत का अहसास है,वह लालू प्रसाद को बड़ा भाई बोलते रहे है.

2024 का लोकसभा चुनाव तो इन दोनों बिहारी राजनीतिक तमाशाबीनों के लिए मानो कयामत लेकर ही आई.पटना विश्वविद्यालय के छात्र रहे इन दोनों राजनीतिक धुरंधरों में शुरू से ही कुछ अंतर रहे. एक की उच्चतर पढ़ाई इसी विश्वविद्यालय के बिहार नेशनल कालेज में हुई तो दूसरा बिहार कालेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रावास से अपनी राजनीति की शुरुआत की जबकि दोनों के राजनीतिक गुरु एक ही महान हस्ती जयप्रकाशनारायण थे. लालू प्रसाद को छात्रजीवन में वाकपट्टुता और मजकिया लहजे से लगाव था जबकि नीतीश कुमार को शुरू से ही साफ कपड़ों, स्वच्छ माहौल और किताबों से प्यार था. जब बिहार में लालू की तूती बोलती थी तो इसकी नकारात्मक छवि उनके साले साधु यादव को मिली. एक तरफ जहां लालू को समाज के पिछड़े वर्गों को सवर्णों के खिलाफ आवाज देने वाले के रूप में जाना जाता है तो नीतीश को बिहार के विकास पुरुष के रूप में लेकिन फिर भी आज दोनों साथ हैं.

2024 लोकसभा चुनाव सिर पर है ऐसे में तमाम दल अपनी अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं. बिहार में सीट शेयरिंग पर घमासान मचा हुआ है. वहीं राजद का कहना है कि सीटें बंट चुकी हैं. किसे कितना हिस्सा मिलना है, उसकी औकात के हिसाब से तय हो चुका है.राजद के मुख्सय प्मरवक्यता भाई वीरेंद्र का कहना है कि  आने पर सीटों का ऐलान भी कर दिया जाएगा.

इंडी गठबंधन के बड़े नेता  लालू और नीतीश ने सीट शेयरिंग पर खामोशी की चादर ओढ़ ली है.सीटों की संख्या पर संभवतः रजामंदी हो चुकी है. तेजस्वी यादव ने सप्ताह भर पहले ही नीतीश कुमार से मुलाकात की थी, तब खबर निकल कर आई थी कि आरजेडी और जेडीयू ने 17-17-6 का सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय किया है. यानी 17-17 सीटों पर आरजेडी और जेडीयू के उम्मीदवार लड़ेंगे. कांग्रेस और वाम दलों के बीच छह सीटें बंटेंगी. बाद में जेडीयू के हवाले से 16-16-8 सीटों के फार्मूले की बात भी आई.इंडी महागठबंधन  की बिहार इकाई के के दोनों बड़े दल आरजेडी-जेडीयू 16-16 सीटों पर लड़ेंगे. पांच सीटें कांग्रेस और तीन सीटें सीपीआई (एमएल) और सीपीआई के बीच बंटेंगी. हालांकि यह बात तब आई, जब जेडीयू ने कहा कि 16 सीटों पर उसने पिछली बार जीत दर्ज की थी. इसलिए उससे कम का तो सवाल ही नहीं उठता.

बिहार की राजनीतिक घटनाक्रम पर सूक्ष्म दृष्टि रखने वालों का कहना है कि  जब नीतीश को किसी का साथ छोड़ना होता है तो वे पहले से ही ठोस बहाने तलाशने लगते हैं. साल 2017 में राजद का साथ छोड़ना था तो नीतीश ने तेजस्वी के खिलाफ सीबीआई मामले को आधार बनाया. भाजपा का साथ छोड़ना था तो पहली बार नरेंद्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी का बहाना बनाया और दूसरी बार भाजपा नेताओं के दबाव को कारण बता कर साथ छोड़ दिया. कहीं ऐसा तो नहीं कि नीतीश इंडी गठबंधन छोड़ने का बहाना तलाश रहे हैं? पहले इंडी गठबंधन का संयोजक न बनाने के सवाल पर जेडीयू में तिलमिलाहट थी. फिर कांग्रेस की लेटलतीफी को देखते हुए अकेले ही रैलियों-सभाओं का जेडीयू ने ऐलान कर दिया. अब सीट शेयरिंग को लेकर जदयू छटपटा रही है.कुछ दिनों से नीतीश और तेजस्वी साथ साथ भी नहीं दिखे हैं. बहरहाल बिहार की राजनीति संक्रांति के बाद किस करवट बैठता है देखना बाकी है.



 


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