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धनबल और बाहुबल की चाशनी में लिपटा वर्तमान राजनीति के मंच पर बुद्धिजीवियों के लिए कोई जगह नहीं : प्रो. रंजीत

धनबल और बाहुबल की चाशनी में लिपटा वर्तमान राजनीति के मंच पर बुद्धिजीवियों  के लिए कोई जगह नहीं : प्रो. रंजीत

PATNA : दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो. रंजीत आज की राजनीतिक मिजाज से काफी दुखी हैं। प्रो. रंजीत कांग्रेस के निर्देश पर शिवहर लोकसभा क्षेत्र में काफी दिनों से लोगों के बीच काम कर रहे थे। इस उम्मीद के साथ कि शिवहर से उम्मीदवारी हासिल होगी। लेकिन सियासत के शतरंज पर सत्ता के लिए चले गए चाल ने शिवहर सीट को राजद की झोली में डाल दिया। पहले से ही कमजोर कांग्रेस ने राजद के सामने शिवहर सीट को लेकर सरेंडर कर दिया। बस फिर क्या था प्रो. रंजीत इस वर्तमान सियासती जुगाड़ के शिकार हो गए।

 भारी मन से अपनी वेदना प्रकट करते हुए उन्होंने बताया कि वर्तमान राजनीति की नियत अर्थ नीति आधारित हो गई है। यानि आज की सियासत में संवेदना कम अर्थ का खेल कुछ ज्यादा है। मतलब अगर आप धनबली हैं और उपर से बाहुबली तो फिर क्या कहना। आज की सियासी पार्टियों के लिए आप सबसे माकूल मोहरा हैं। एक खास मुलाकात में प्रो. रंजीत ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि आज की राजनीति में पढ़े-लिखे विद्वान लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। 

प्रो. रंजीत महान दार्शनिक सुकरात के एक कथन को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि वर्तमान राजनीति को सुकरात के उस कथन से सीख लेनी चाहिए जिसमें उन्होंने कहा है कि राजनीति में योग्यता और बुद्धिमत्ता का बोलबाला होना चाहिए न की धनबल और बाहुबल का।

उन्होंने कहा कि वर्तमान मुद्दा विहिन राजनीति अजब का रास्ता अख्तियार कर चुकी है जहां मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भी चुनावी मुद्दा बना दिया गया है। राजनेता भगवान राम को अपने अंदर खोजने की बजाए चुनावी मंचों पर और संसद के पटल पर सियासी फायदे के लिए खोजते फिरते हैं। जबकि राम गरीबों की आह, सबरी के बैर और विदुर के साग में मिलते हैं। इन लोगों को दरकिनार कर जहां राम मिलते हैं वहां उन्हें नहीं खोजा जाता।

प्रो. रंजीत ने कहा कि राजनीति तो भगवान राम, कृष्ण और चाणक्य ने भी की लेकिन उस समय उसके मायने कुछ और थे। लेकिन आज की राजनीति से लोगों को विरक्ति हो रही है।

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
 अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
 हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा,
 
 काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
 गीत नया गाता हूँ।

प्रो. रंजीत ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की इन्हीं कविता के माध्यम से लोगों को जागरुक करते हुए आज की राजनीति को पुन: सुकरात के वचनों पर चलने का आह्वान किया है।

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