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राष्ट्रीय चेतना के यशस्वी कवि थे रामधारी सिंह दिनकर

राष्ट्रीय चेतना के यशस्वी कवि थे रामधारी सिंह दिनकर

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकरने हिंदी साहित्य में न सिर्फ वीर रस के काव्य को एक नयी ऊंचाई दी, बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का भी सृजन किया।

इसकी एक मिसाल 70 के दशक में संपूर्ण क्रांति के दौर में मिलती है। दिल्ली के रामलीला मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने हजारों लोगों के समक्ष दिनकर की पंक्ति सिंहासन खाली करो कि जनता आती हैका उद्घोष करके तत्कालीन सरकार के खिलाफ विद्रोह का शंखनाद किया था।

दिनकर ने गुलाम भारत और आजाद भारत दोनों में अपनी कविताओं के जरिये क्रांतिकारी विचारों को विस्तार दिया।

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दिनकर का जन्म 23 सितंबर, 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले में हुआ। हिंदी साहित्य में एक नया मुकाम बनाने वाले दिनकर छात्रजीवन में इतिहास, राजनीतिक शास्त्र और दर्शन शास्त्र जैसे विषयों को पसंद करते थे, हालांकि बाद में उनका झुकाव साहित्य की ओर हुआ। वह अल्लामा इकबाल और रवींद्रनाथ टैगोर को अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे। उन्होंने टैगोर की रचनाओं का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद किया।

दिनकर का पहला काव्यसंग्रह विजय संदेशवर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं की। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हुंकारऔर उर्वशीहैं। उन्हें वर्ष 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।

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पद्म भूषण से सम्मानित दिनकर राज्यसभा के सदस्य भी रहे। वर्ष 1972 में उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान भी दिया गया। 24 अप्रैल, 1974 को उनका देहावसान हो गया। दिनकर ने अपनी ज्यादातर रचनाएं वीर रसमें कीं। इस बारे में जनमेजय कहते हैं, ‘भूषण के बाद दिनकर ही एकमात्र ऐसे कवि रहे, जिन्होंने वीर रस का खूब इस्तेमाल किया। वह एक ऐसा दौर था, जब लोगों के भीतर राष्ट्रभक्ति की भावना जोरों पर थी। दिनकर ने उसी भावना को अपने कविता के माध्यम से आगे बढ़ाया। वह जनकवि थे इसीलिए उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा गया।

देश की आजादी की लड़ाई में भी दिनकर ने अपना योगदान दिया। वह बापू के बड़े मुरीद थे। हिंदी साहित्य के बड़े नाम दिनकर उर्दू, संस्कृत, मैथिली और अंग्रेजी भाषा के भी जानकार थे। वर्ष 1999 में उनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था।

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