दौर - ए - सियासत, शब्दों की मर्यादा की सीमा लांघ नीतीश ने राजनीति में बदजुबानी का नया इतिहास रच दिया,कभी राजनारायण ने प्रतिद्वंदी के छुए थे पैर....मांगे थे पैसे...

दौर - ए - सियासत, शब्दों की मर्यादा की सीमा लांघ नीतीश ने राजनीति में बदजुबानी का नया इतिहास रच दिया,कभी राजनारायण ने प्रतिद्वंदी के छुए थे पैर....मांगे थे पैसे...

पटना-  मर्यादापुरुषोत्तम राम लोकतांत्रिक भागीदारी के साथ अपना लक्ष्य हासिल करना चाहते थे. महात्मा गांधी राम राज्य की बात करते थे. पुरातन काल में नालंदा जैसा विश्वविद्यालय जहां के ज्ञान के अलौकिक ज्योति से देश हीं नहीं विदेश भी जगमग करता था. उसी नालंदा से आते हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, नीतीश को गंभीर नेता के तौर पर जाना जाता था.  बदजुबानी की बात तो कोई भी सोच नहीं सकता था.  लेकिन बिहार विधानमंडल के  शीतकालीन सत्र में जिस तरह दो दिनों में उन्होंने बदजुबानी की, उससे समूचे बिहार के साथ  देश के लोग भी हैरत में रह गए.  विधानसभा में सेक्स  ज्ञान का मुद्दा गरमाया तो उन्होंने माफी मांग ली. अभी इसकी आग ठंड़ी भी नहीं पड़ी थी कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को तू तड़ाक जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर उन्होंने अपनी हीं छवि को तार तार कर दिया.

नीतीश के बयान से राजनीति में कड़वाहट  

शब्द को ब्रह्म माना गया है.  कोई भी विषय खराब नहीं होता, शब्द का चयन महत्वपूर्ण माना जाता है. रोशनी के त्योहार के ठीक पहले नीतीश कुमार ने गोपन अंधेरे वाले विषय पर जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर भावं भंगिमा बनाई ,  ऐसे में बवाल तो होना हीं था. बात यहीं तक सीमित रहती तो उनके इस शब्दों  को उनके अतीत की उपलब्धियों के चलते भुला दिया जाता शायद, शायद... लेकिन इसके अगले ही दिन उन्होंने अपने ही पूर्व साथी और वरिष्ठ नेता जीतन राम मांझी के साथ जिस तरह से तू-तड़ाक की भाषा का इस्तेमाल किया, उसने उनकी अशोभन छवि बनाई. नालंदा विश्वविद्यालय की माटी से आने वाले अनुभवी और गंभीर राजनेता से ऐसी उम्मीद किसी को नहीं थी. नीतीश अपनी गंभीरता के लिए जाने जाते थे. लेकिन उन्होंने  जीतनराम मांझी के लिए जो शब्द कहे  उससे नई खाई ही बना दी है. उनके शराबबंदी कानून के चलते उनकी प्रशंसक रही महिलाएं अब उनसे अपसेट हैं. पिछड़ों में अति पिछड़ा और दलितों में अति दलित की उन्होंने श्रेणियां बनाईं, उससे इस वर्ग में उनके प्रति जो आदरबोध था, जीतनराम मांझी के साथ तू-तड़ाक करने से वह जैसे चकनाचूर होता दिख रहा है.

 जब राजनीतिक विरोधी कमलापति से चंदा लेकर चुनाव लड़े राजनारायण

साल 1980 के आम चुनाव में कमलापति त्रिपाठी के खिलाफ लोकदल की ओर से राजनारायण मैदान में थे. इसके तीन साल पहले उन्होंने इंदिरा गांधी को रायबरेली के मैदान में हराया था. उसके बाद देश के स्वास्थ्य मंत्री बने थे लेकिन राजनारायण फक्कड़ थे. पैसे उनके पास नहीं रहते थे. एक बार चुनाव प्रचार के दौरान उनके काफिले का सामना पंडित कमलापति त्रिपाठी से हो गया. राजनारायण  ने कमला पति त्रिपाठी  को घेर लिया, उनके पांव छुए और जीत का आशीर्वाद मांगा. कमलापति उनके प्रतिद्वंद्वी थे. लेकिन उन्होंने राजनारायण को जीत का आशीर्वाद दिया. फिर राजनारायण ने उनसे पैसे मांगे, क्योंकि उनके पास अपने साथियों को चाय पिलाने के लिए पैसे तक नहीं थे.  पंडित कमलापति त्रिपाठी  ने उन्हें पैसे भी दिए. राजनारायण ने रुपये जेब में रखते हुए कहा, ‘गुरु जी यह तो नाश्ते के हो गए. जीप में तेल डलवाने को भी तो दीजिए ताकि प्रचार कर सकूं.’ पंडित जी ने हंसते हुए राजनारायण को कुछ रुपये और दिए.कहा, ‘मन से चुनाव लड़ो’ . एक राजनीति का वो दौर था और एक ये दौर है कि सरकार मांझी को कहते हैं कि मैंने हीं तुम्हें सीएम बनाया था. 

अतीत के झरोखे में वर्तमान का सच

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और सबसे कमजोर एवं पिछड़ा माने जाने वाले तबके मुसहर समाज से आने वाले जीतनराम मांझी की समधन ज्योति देवी गया जिले की बाराचट्टी से विधायक हैं. नीतीश कुमार के बयान  से मचे बवंडर के बीच उन्होंने जो कहा, उस पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है. ज्योति देवी ने कहा कि भगवान ने सिर्फ दो जाति बनाई है-औरत और मर्द. क्या राजनीति में ये हीं सच है.बहरहाल अब  राजनेता एक-दूसरे पर जमकर कीचड़ उछालते हैं पर एक दौर ऐसा भी था जब नेताओं में आपसी संबंध बेहद मधुर होते थे, विरोधी से पैसे लेकर चुनाव तक लड़ते थे और आज...


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