'जीवन की सांझ' की दुखभरी कहानी, तीन बेटों ने बांट ली मां-बाप की संपत्ति,भूख प्यास से बिलबिलाते सड़क पर भटकने को कर दिया मजबूर, जिगर के टुकड़ों ने बुढ़ापे में छीना सुख-चैन

'जीवन की सांझ' की दुखभरी कहानी, तीन बेटों ने बांट ली मां-बाप की संपत्ति,भूख प्यास से बिलबिलाते सड़क पर भटकने को कर दिया मजबूर, जिगर के टुकड़ों ने बुढ़ापे में छीना सुख-चैन

बांका- पूत सपूत तो क्या धन संचय, पूत कपूत तो क्या धन संचय ये कहावत काफी मशहूर है यानी संतान अगर अच्छी हों तो संपत्ति जुटाने का क्या मतलब, अपने हीं संपत्ति बना लेगा, वहीं  अगर संतान बुरी हैं तब भी संपत्ति जुटाने का क्या मतलब। वो उसे संभाल ही नहीं पाएंगी, सबकुछ उड़ा देंगी, बर्बाद कर देंगी.जिन्हें कभी उंगलियां पकड़ चलना सिखाया, पाल-पोसकर बड़ा किया, हड्डियां गलाया, बुढ़ापे में उनके लिए ही वह बोझ से लगने लगे. ये कहानी नहीं हकीकत है. 

सारी जमीन-जायदाद पिता ने अपने बेटों के नाम कर दी लेकिन अब अपने ही घर में उनके और उनकी पत्नी के लिए जगह नहीं है. कलयुगी बेटों ने संपत्ति का बंटवारा हो जाने के बाद बुजुर्ग मां-बाप को हीं घर से निकाल दिया. बिहार के बांका जिले के शंभूगंज थाना क्षेत्र के पौकरी पंचायत स्थित भलुआ गांव में बेटे ने अपने बुजुर्ग माता-पिता को प्रताड़ित कर घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया. वृद्ध मां बाप अपने उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं उन्होंने अपने बेटों के सामने पहले तो कफी गिड़गिड़ाया लेकिन उन्होंने एअक न सुनी. गुरुवार को पीड़ित दंपती चिंता देवी और उनके पति मुसहरू पंडित भूखे-प्यासे लाठी का सहारा लेते हुए पुलिस स्टेशन पहुंच और न्याय की गुहार लगाई. 

पुलिस से गुहार लगाते हुए  वृद्ध दंपती ने बताया कि उनके तीन बेटे- विनोद कुमार पंडित, महेश पंडित और उमेश पंडित पैतृक संपत्ति का बंटवारा हो जाने के बाद गांव में अलग-अलग रहते हैं. तीनों बेटों में से किसी ने उनकी जिम्मेदारी नहीं ली और सड़क पर दर दर भटकने के लिए छोड़ दिया.उन्होंने कहा कि इस उम्र में मेहनत और मजदूरी उनसे हो नहीं सकती . वहीं तीनों बेटों में से कोई उनलोगों का बार उठाने के लिए तैयार नहीं है.

वहीं  वृद्ध दंपती के फरियाद को सुनकर थाना प्रभारी नीरज तिवारी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तीनों पुत्रों को हिदायत देते हुए समझाया. वहीं माता पिता इस घटना से खासे आहत हैं.वहीं कानून भले हीं वृद्ध अपनी जमीन-जायदाद बच्चों के नाम कर दी है. अब अगर वह चाहें तो प्रॉपर्टी का ट्रांसफर रद्द हो सकता है और संपत्ति फिर उनके नाम हो सकती है.बहरहाल चिंता देवी और उनके पति मुसहरू पंडित इकलौते बुजुर्ग नहीं हैं जो इस तरह के हालात से जूझ रहे हैं. देशभर में न जाने कितने ऐसे वंशराम होंगे जो बुढ़ापे में अपनी संतानों की दुत्कार सह रहे होंगे.


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