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सड़क से सदन तक तेजस्वी सिर्फ यही चंद लाइनों पर टिके हैं, आखिर विकास की राह में सत्ता पक्ष और विपक्ष की खाई कैसे होगी कम

सड़क से सदन तक तेजस्वी सिर्फ यही चंद लाइनों पर टिके हैं, आखिर विकास की राह में सत्ता पक्ष और विपक्ष की खाई कैसे होगी कम

पटना... नई सरकार के गठन के बाद बिहार विधानसभा का विशेष सत्र पांच दिनों का 23 नंवबर से शुरू हुआ और पांच दिनों के सत्र का आज पांचवा दिन रहा। इससे पहले हम आगे की बात करें इससे पहले हम आपको बता दें कि सत्र के पहले दिन नवनिर्वाचित विधायकों को सदस्यता की श्पथ दिलाई गई थी, दूसरे दिन नए विधायकों ने शपथ ली, तीसरे दिन बिहार विधानसभा के अध्यक्ष का चुनाव हुआ  और चौथे दिन की बात करें तो राज्यपाल का अभिभाषण हुआ, जिसमें सरकार के विकास के रोडमैप को रखा गया। वहीं पांचवे दिन की बात करें तो आज राज्यपाल के अभिभाषण पर वाद-विवाद हुआ। इस दौरान ही विपक्ष ने वाद विवाद में हंगामे के आसार पर अपने तेवर शुरू होते ही साफ कर दिया। 

शुक्रवार को पांचवे दिन तेजस्वी यादव काे 56 मिनट का समय दिया गया। इस सदन में उनके संबोधन से यह सत्ता पक्ष को हमले और सरकार के काम काज के तरीकों पर हमले की उम्मीद तो थी, लेकिन यहां इससे इतर तेजस्वी यादव दिखाई दिए। तेजस्वी यादव अपने पूरे भाषण के दौरान सरकार के काम काज को छोड़ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पीछे पड़े रहे और लगातार निजी हमले करते रहे। निजी हमले में उन्होंने पूरी तरह से बिगड़े बोल बोलते नजर आए, हालाकि इस दौरान कई बार आसन से अध्यक्ष टोकते नजर आए, लेकिन वो अपने संबोधन को विकास और रोजगार के मुद्दे पर नहीं ले जा सके। देखा जाए तो सड़क से सदन तक तेजस्वी सिर्फ रटी रटाई कुछ चंद लाइनों पर ही टिके हैं। उनके संबोधन से तो साफ पता चलता है कि वो कितने योग्य हैं। आखिर विकास की राह में सत्ता पक्ष और विपक्ष की खाई कैसे कम होगी। 

तेजस्वी यादन ने जब बोलना शुरू किया तो सिर्फ वही बातें सदन में कही जो उन्होंने विगत माह चुनाव प्रचार के दौरान जनता के समक्ष कही। चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार की ओर से लालू परिवार पर किए गए बयान को लेकर बोलना शुरू किया तो सारी मार्यादा तोड़ डाली। सदन में चुनाव प्रचार की कही बातों को लेकर अगर कटाक्ष किया तो सदन की गरिमा का कोई महत्व नहीं रह जाता, लेकिन आज विपक्ष की ओर से रोजगार और विकास को छोड़ तकरीबन 20 मिनट से भी अधिक देर तक निजी हमले होते रहे। सदन में निजी हमलों को लेकर हंगामा भी होता रहा, लेकिन विपक्ष पर कोई फर्क नहीं पड़ा। 

सदन में विपक्ष का मजबूत होना जरूरी है, लेकिन यहां मजबूती विकास को लेकर नहीं, बल्कि निजी हमलों लेकर देखा जा रहा है। अगर सदन में सत्र के दौरान राजनीतक खाई को बढ़ाने की कोशिश होती रहेगी तो पिछड़ापन बदस्तूर जारी रहेगा। हालाकि तेजस्वी यादव के 56 मिनट के संबोधन पर गौर करें तो चुनाव से वे सिर्फ रटी राटाई भाषा में सिर्फ कुछ यही बातें सड़क से सदन तक बोलते नजर आ रहे है। 

1. हमारी सरकार आई तो कैबिनेट की पहली बैठक में पहले दस्तखत से 10 लाख नौकरी देंगे। 

2. हम जनता के सिंचाई, पढ़ाई, लिखाई, दवाई और सुनवाई की सरकार देना चाहते हैं। 

3. नीतीश कुमार अब थक चुके हैं और उनसे राज्य नहीं संभल रहा है। 

4. जनादेश बदलाव का था, चोर दरवाजे से पहले भी सरकार बनाई और अब भी बनाए

5. राज्य में भ्रष्टाचार फैला है, हर थानों में भ्रष्टाचार और ब्लॉक में पैसे बिना काम नहीं होते

6. समान काम समान वेतन, किसानों को कर्ज माफ कर देंगे। 

7. बंद पड़े सरकारी मिलों को चालू करेंगे। 

8. पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देंगे। 

9. हमारे भाजपा के 30 हैलिकॉप्टर छोड़ रखा है

10. 30 साल के नौजवान से डर गए हैं मोदी और नीतीश

11. कुर्सी का मोह नीतीश कुमार से छूट नहीं रहा

12. हमारे 18 माह के कार्यकाल की बात नहीं करते, 15 सालों की बात करतें हैं

13. पिता के 15 साल में गरीबों को और पिछड़ों को सम्मान दिलाया

14. हम भ्रष्टाचारी हैं तो हमारी जांच जिस एंजेसी हो जांच करा लें। 

15. नीतीश कुमार के 15 साल को कुशासन बताते रहे। 

अगर बात करें तो यह पहला चुनाव था, जिसमें विपक्ष ने एजेंडा सेट किया था। इसके बाद विपक्ष के एजेंडे को धीरे-धीरे सभी राजनीतिक दलों ने अपना लिया फिर चाहे वो सत्ता पक्ष ही क्यों न हो। देखा जाए तो चुनाव के दौरान सही मायनों में सत्ता पर हमलावर होने के साथ-साथ अपने मुद्दों पर भी तेजस्वी यादव टिके रहे, लेकिन इनके उपरोक्त कथनों को सत्ता पक्ष के नेताओं ने जंगलराज से जोड़ कर लोगों को आईना दिखाने की हद तक सफल कोशिश की। 


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