सावन में देवाधिदेव भगवान शंकर की पूजा अर्चना का विधान है.देवासुर संग्राम के वक्त समुद्र से निकले हलाहल को महादेव ने सृष्टि की रक्षा के लिए पी लिया था. जहर के ताप को शीतल करने के लिए इंद्र ने वर्षा की थी. विष पीने के बाद भगवान शंकर के शरीर का ताप बहुत अधिक बढ़ गया जिसको ठंडा करने के लिए इंद्र ने जमकर वर्षा की थी.ये सावन मास में हुआ था इस कारण सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय महीना माना गया है. यहीं कारण शिव के सावन में जल अभिषेक का विधान है.
शिव विनाश, परिवर्तन और उत्थान के देवता हैं.संहार के देव शिव हैं तो सृजन के देवता शिव हीं हैं. शिव आदिदेव है. सभी देवों में भगवान शंकर का पूजा सबसे सरल होता है.इस बार श्रावण महीने में 8 सोमवार का शुभ संयोग बना .पांचवा सोमवार 7अगस्त को है तो यह अधिकमास का तीसरा सोमवार है. सावन में महादेव की पूजा करने का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में पूरे श्रद्धा भाव से शिव जी की करने से व्यक्ति को मनचाहा फल मिलता है.
शिवपुराण के अनुसार, शिव जी को शमी के पत्ते बहुत प्रिय हैं. शमी के पत्ते शिवलिंग के साथ-साथ गणेश जी पर भी चढ़ाए जाते हैं. शिव को सबसे प्रिय बेल पत्र है. सोमवार के दिन शिव जी को बेलपत्र के स्थान पर पीपल के पत्ते भी अर्पित किए जा सकते हैं.इसके साथ हीं धतूरा और भांग भगवान आशुतोष को सबसे प्रिय है.इसलिए शिव को शमी पत्र,बेलपत्र,भांग,भस्म और धतूरा अर्पित किया जाता है.
पुराणों के अनुसार भगवान शंकर जितना जल्दी प्रसन्न होते हैं उतना जल्दी रुष्ठ भी हो जाते हैं. शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को तुलसी और हल्दी कभी नहीं चढ़ाना चाहिए, ऐसा करने से व्यक्ति को प्रतिकूल फल मिलता है. वैसे तो हर दिन ही भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व है लेकिन सोमवार के दिन पूरे विधि विधान के साथ गिरिश की उपासना का महत्व है.
भगवान शिव को रूद्र कहा जाता है. रूद्र का अर्थ है वह जो रौद्र या भयंकर रूप में हो. शिव को सृष्टि -कर्ता भी कहा जाता है . पुराण के अनुसार शिव सो रहे हैं और शक्ति उन्हें देखने आती हैं. वह उन्हें जगाने आई हैं.शुरू में वह नहीं जागते, लेकिन थोड़ी देर में उठ जाते हैं. शिव भी गुस्से में गरजे और तेजी से उठकर खड़े हो गए. उनके ऐसा करने के कारण ही उनका पहला रूप और पहला नाम रुद्र पड़ गया. रुद्र शब्द का अर्थ होता है – दहाडऩे वाला, गरजने वाला.
वहीं शिव महाकल्याण कारी है. शात्रों के अनुसार वे केवल एक लोटे जल से ही खुश हो जाते हैं. एक ओर शिव महायोगी है तो वहीं दूसरी तरफ माता पार्वती से प्रेम विवाह भी किया है. जब भी नव दंपत्ति को को आशीर्वाद दिया जाता है, तो उन्हें शिव-पार्वती की उपमा से ही सुशोभित किया जाता है.