बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

17 वें विधानसभा में दूसरी बार हटाए जाएंगे विधानसभा के स्पीकर, पद से हटाने के बारे में क्या कहता है संविधान, 10 फरवरी को स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग

17 वें विधानसभा में दूसरी बार हटाए जाएंगे विधानसभा के स्पीकर, पद से हटाने के बारे में क्या कहता है संविधान, 10 फरवरी को स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग

पटना: बिहार की राजनीति में कई उथल-पुथल हो गया. राज्य में  सरकार बदल गई है , तो  'विधानसभा अध्यक्ष या असेंबली स्पीकर 'भी सियासी सुर्खियां बटोर रहे हैं. नीतीश ने एनडीए के साथ मिलकर 28 जनवरी को सरकार बना लिया. 10 फरवरी को नीतीश कुमार को विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त करना   है.  सोमवार की शाम सीएम नीतीश की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया. मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ एनडीए ने 28 जनवरी को ही अविश्वास प्रस्ताव दिया है.  ऐसे में नियमानुसार 14 दिनों के बाद ही विधानमंडल का सत्र आहूत किया जा सकता है,  इसीलिए 10 फरवरी का दिन तय किया गया है. 

बता दें  संविधान के अनुच्छेद 179 में पद से हटाने के बारे में प्रावधान है. संविधान में ही इस बात को स्पष्ट कर दिया गया है कि विधानसभा के अध्यक्ष को कैसे हटाया जा सकता है. इसके लिए अनुच्छेद 179 में प्रावधान किया गया है.अनुच्छेद 179 - अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्‍त होना  पदत्‍याग  और पद से हटाया जाना या ) यदि विधान सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा,  उपाध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख के जरिए पद त्याग,  विधानसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प से हटाया जा सकता है. इसके लिए अनुच्छेद 179 के धारा सी में अध्यक्ष को हटाने के बारे में प्रावधान है.  विधानसभा अध्यक्ष को हटाने का संकल्प अनुच्छेद 179 के तहत ही लाया जाता है. हालांकि इसके लिए कोई भी संकल्प  तब तक विधानसभा में पेश नहीं किया जाएगा, जबतक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने की सूचना कम से कम 14 दिन पहले न दे दी गई हो. यानी स्पीकर को हटाने के लिए  किसी भी संकल्प की सूचना 14 दिन पहले देनी होगी. अगर ऐसे संकल्प पर विधानसभा में विचार किया जाता है तो ऐसे संकल्प को तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित होना जरूरी है . 

संविधान के अनुच्छेद 179 के अधीन विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के संकल्प की सूचना लिखित रूप से विधानसभा सचिव को देनी होती है. सूचना देने के 14 दिन बाद ही इसे विधानसभा की कार्यवाही के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है. ऐसे किसी भी संकल्प को विचार के लिए तभी विधानसभा में मंजूर किया जाता है, जब इस तरह के प्रस्ताव पर सदन की कुल संख्या का दसवां हिस्सा इसके समर्थन में हो. इसे उदाहरण से समझें तो महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सदस्य हैं. ऐसी स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष को हटाने से जुड़े संकल्प पर तभी विचार किया जाएगा जब उसके समर्थन में कम से कम 29 विधायक होंगे. इसलिए जो भी इस तरह का संकल्प विधानसभा सचिव को भेजता है, उसकी कोशिश होती है कि ऐसे संकल्प पर ज्यादा से ज्यादा विधायकों का हस्ताक्षर हो जाए. हालांकि ये विधानसभा में ही तय होता है कि संकल्प लाने के समर्थन में कितने विधायक हैं. 

बता दें कि जब विधानसभा की किसी बैठक में अध्यक्ष  को हटाने के किसी संकल्प पर विचार किया जा रहा हो, तब अध्यक्ष पीठासीन नहीं होगा. यानी सदन की कार्यवाही का संचालन वो शख्स नहीं करेगा. संविधान के अनुच्छेद 181 में ये स्पष्ट कर दिया गया है. हालांकि उस दौरान अध्यक्ष को बोलने और उसकी कार्यवाहियों  में भाग लेने का अधिकार होगा. उसे आम सदस्य की तरह वोट करने का भी अधिकार होगा. हालांकि मत बराबर होने की स्थिति में वोट देने का अधिकार नहीं होगा. इस तरह के संकल्प पर जब सदन में कार्यवाही चल रही होती है, तो उस वक्त अध्यक्ष की बजाय विधानसभा के उपाध्यक्ष  के पीठासीन अधिकारी होते हैं और वे ही सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं.

 विधानसभा अध्यक्ष के  बारे में एक दिलचस्प पहलू ये है कि अगर विधानसभा भंग हो जाती है, तब भी वो अपने पद पर बने रहते हैं. अध्यक्ष विधानसभा भंग होने के साथ-साथ अपने पद से नहीं हटते हैं. वे तब तक अपने पद पर बने रहते हैं, जब तक अगले विधान सभा का पहला अधिवेशन  शुरू नहीं हो जाता. इस बारे में संविधान के अनुच्छेद 179 में ही प्रावधान है.  

17वें विधानसभा में यह दूसरी बार है  जब विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया है. यह भी पहली बार है जब किसी एक विधानसभा की अवधि में दो बार ऐसा हुआ हो. इसके पहले वर्ष 2022 में निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष और मौजूदा उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था. ऐसे यह चौथा अवसर है जब किसी विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है. इसके पहले कांग्रेस के शिवचन्द्र झा और विन्ध्येश्वरी प्रसाद वर्मा के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था.

विधानसभा अध्यक्ष अवध विहारी चौधरी सामान्य दिन की तरह विधानसभा आए और रूटिन काम निपटाते रहे. कुछ समय के लिए उनके कक्ष के बाहर लाल बत्ती भी जली, जब उन्होंने आवश्यक कार्य निपटाया.  हालांकि, उन्होंने कुछ कानूनविदों से भी बातचीत की और उनसे राय-मशविरा किया. विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी भी पहले तल्ले पर अपने कमरे में मौजूद थे. वे भी अपना सामान्य कार्य करते रहे

विवाद का एक बड़ा मुद्दा रहा है विधायकों की सदस्यता के मसले पर फैसला. संविधान की दसवीं अनुसूची में शामिल दल-बदल कानून के तहत जब किसी विधायक की सदस्यता का मसला उठता है तो विधानसभा अध्यक्ष का फैसला अंतिम होता है. विधायकों की अयोग्यता पर स्पीकर के फैसले को विपक्षी दल सत्तारूढ़ पार्टियों के पक्ष में होने का आरोप लगाते रहते हैं.  कई बार ऐसे मामले अदालतों में भी पहुंचे हैं.  52वें संविधान संशोधन एक्ट के जरिए संविधान की दसवीं अनुसूची को जोड़ा गया. इसे ही दलबदल कानून  के नाम से जाना जाता है.  दसवीं अनुसूची में निहित शक्तियों के तहत ही विधान सभा अध्यक्ष किसी सदस्य की सदस्यता पर फैसला लेते हैं. इस कानून के तहत अध्यक्ष का फैसला आखिरी हुआ करता था. लेकिन बार-बार अदालतों में ऐसे मामले पहुंचने के बाद  1991 में सुप्रीम कोर्ट ने 10वीं अनुसूची के सातवें पैराग्राफ को अवैध करार कर दिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि स्पीकर के फैसले की कानूनी समीक्षा हो सकती है.

Suggested News