N4N DESK : भाजपा सांसद और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी अपनी संपत्ति का वार्षिक ब्यौरा सार्वजनिक रूप से घोषित करें. समिति ने कहा है कि सार्वजनिक पद पर आसीन और सारकारी कोष से वेतन पाने वाले किसी भी इंसान को अनिवार्य रूप से अपनी संपत्ति का वार्षिक रीटर्न दाखिल करना चाहिए. ऐसी व्यवस्था पहले से सांसदों और विधायकों के लिए बनी हुई है.
संस्थागत व्यवस्था बनाने पर दिया बल
अपनी रिपोर्ट ‘ न्यायिक प्रक्रिया और उनमें सुधार ’ विषय पर कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने कहा है कि यह सामान्य परंपरा है कि संवैधानिक पदाधिकारियों और सरकारी सेवकों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का वार्षिक ब्यौरा दाखिल करना चाहिए. सरकार ने संसदीय समिति को बताया है कि नियमित रूप से संपत्तियों की जानकारी देना और इसे सार्वजनिक रूप से अपलोड करने के लिए एक संस्थागत व्यवस्था बनाये जाने की आवश्यकता है.
पूर्व में भी इस पर आ चुका है फैसला
सनद रहे कि संविधान पीठ ने 13 नवंबर, 2019 को सूचना के अधिकार पर अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश को न्यायाधीशों की संपत्ति के विवरण का स्वेच्छा से खुलासा करने के संकल्प के बारे में न्यायमूर्ति रविंद्र भट्ट के निष्कर्ष को नजरअंदाज कर दिया था. न्यायमूर्ति भट्ट का मानना था कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सर्वोच्च न्यायालय से अलग एक सार्वजनिक प्राधिकरण है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया था. अदालत ने कहा था कि सीजेआई एक प्राधिकरण के रूप में सर्वोच्च न्यायालय का अभिन्न अंग है.
नैतिकता की बात
इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने संपत्ति से संबंधित जानकारी सार्वजानिक करने के केंद्रीय सूचना आयोग और दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश का कड़ा विरोध किया था. यह बात भी कही गयी कि सर्वोच्च न्यायालय का अन्य न्यायाधीशों पर कोई अनुशासनात्मक नियंत्रण नहीं है. ऐसा कोई कानून नहीं है और यह केवल नैतिकता की बात है. संपत्ति का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. केंद्र सरकार ने समिति को बताया है कि नियमित रूप से संपत्तियों की जानकारी देना और इसे सार्वजनिक रूप से अपलोड करने के लिए एक संस्थागत व्यवस्था बनाये जाने की आवश्यकता है.
नीरज सहाय की रिपोर्ट