सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका को संवैधानिक बेंच को भेजा :सर्वोच्च न्यायालय ने कहा - आईपीसी की जगह नया विधेयक पिछले मामलों को प्रभावित नहीं कर सकता

दिल्ली-    राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता 124A के तहत राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को कम से कम पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है. कोर्ट ने इस आधार पर बड़ी पीठ को मामला सौंपने का फैसला टालने के केंद्र की मांग ठुकरा दी कि संसद दंड संहिता के प्रावधानों को फिर से लागू कर रही है. 152 साल पुराने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार 12 सितंबर को सुनवाई हुई.  चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 5 जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया. 

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने कहा कि मामले में बड़ी पीठ के संदर्भ की आवश्यकता है क्योंकि 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मामले में 5 जजों की पीठ ने राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को कायम रखा था.

उसने कहा कि छोटी पीठ होने के नाते केदारनाथ मामले पर संदेह करना या उसे खारिज करना उचित नहीं होगा और जब तक केदारनाथ सिंह वाला फैसला लागू है, तब तक राजद्रोह का कानून वैध है.

Nsmch
NIHER

 केंद्र सरकार ने नए बिल का हवाला देकर कोर्ट से सुनवाई टालने का अनुरोध किया. इस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि भले ही नया विधेयक कानून बन जाए, लेकिन नए कानून का पिछले मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.इससे पहले 1 मई को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि राजद्रोह को अपराध बनाने वाली IPC की धारा 124A की समीक्षा की जा रही है. इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी थी.

हालांकि, सुनवाई की तारीख आने से पहले ही 11 अगस्त 2023 को गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में 163 साल पुराने 3 कानूनों में बदलाव के लिए बिल पेश किया. इसमें राजद्रोह कानून खत्म करना भी शामिल है.

देश की सबसे बड़ी अदालत ने पिछले साल 11 मई को एक ऐतिहासिक आदेश में इस दंडात्मक कानून पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी जब तक कि ‘‘उचित'' सरकारी मंच इसकी समीक्षा नहीं करता. उसने केंद्र और राज्यों को इस कानून के तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया था. शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी थी कि देशभर में राजद्रोह कानून के तहत जारी जांच, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाही पर भी रोक रहेगी.

सरकार के प्रति असंतोष'' पैदा करने से संबंधित राजद्रोह कानून के तहत अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. इसे स्वतंत्रता से 57 साल पहले और भारतीय दंड संहिता के अस्तित्व में आने के लगभग 30 साल बाद 1890 में लाया गया था.