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सुशील मोदी बिहार की राजनीति के नमूना! शिवानंद तिवारी बोले- उन्होंने अभी-अभी अतीत में गोता लगाया और खोज निकाला...

सुशील मोदी बिहार की राजनीति के नमूना! शिवानंद तिवारी बोले- उन्होंने अभी-अभी अतीत में गोता लगाया और खोज निकाला...

पटना. बिहार की सियासत में इन दिनों वाक युद्ध चरम पर है। राजद सुप्रीमो लालू यादव के एक साथ 16 ठिकानों पर सीबीआई रेड पर राजद नेताओं और बीजेपी नेताओं में जमकर बयानबाजी हो रही है। इस बीच राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी को 'राजनीति का नमूना' बताया दिया। उन्होंने सुशील मोदी व भाजपा पर निशाना साधते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया है। इसमें उन्होंने बताया है कि तेजस्वी और सीएम नीतीश की मुलाकात और जातीय जनगणना से डरकर बीजेपी ने लालू यादव के ठिकानों पर छापेमारी करवाई है। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने इस छापे के द्वारा नीतीश कुमार को भी चेतावनी देने की कोशिश की है।


शिवानंद का सोशल मीडिया पर पोस्ट

'बिहार की राजनीति में एक नमूना हैं सुशील कुमार मोदी. अभी अभी अतीत में उन्होंने गोता लगाया और खोज निकाला कि 2008 में हमने लालू यादव पर जमीन वाला आरोप लगाया था. सवाल तो यह नहीं था. सवाल तो यह था कि जब 2008 में आरोप लगा तो उसके बाद से अब तक यानी 14 वर्षों तक सीबीआई उन आरोपों पर क्यों सोई रही ! उसकी नींद तब क्यों खुली जब बिहार में मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के बीच जाति आधारित जनगणना कराने की सहमति बनी है. छापेमारी के लिए यह समय क्यों चुना गया ? इसका दो स्पष्ट मकसद दिखाई दे रहा है. पहला उद्देश्य तो जाति आधारित जनगणना को रोकना है. क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जाति आधारित जनगणना का घोर विरोधी है. यह उन्हीं तबकों का समर्थक है जो देश के संसाधनों पर अपनी संख्या के अनुपात से कहीं ज्यादा संसाधनों पर कब्जा जमाए बैठा है. जातीय जनगणना से इसका खुलासा हो जाएगा और वंचित समाज अपनी संख्या के अनुपात में हिस्सेदारी की मांग करने लगेगा.

दूसरी ओर जातीय जनगणना के सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता विरोधी दल तेजस्वी यादव के बीच नजदीकी बढ़ती हुई दिखाई दे रही है. भारतीय जनता पार्टी इससे सशंकित है. भाजपा को 2015 के विधान सभा चुनाव का नतीजा अच्छी तरह याद है. अनुमान लगाया जा रहा है कि छापामारी द्वारा कहीं परोक्ष रूप से नीतीश कुमार को चेतावनी देने की कोशिश तो नहीं की जा रही है!

सवाल यही था. जिसका जवाब सुशील मोदी ने नहीं दिया है. हम लोग उनसे जानना चाहेंगे कि 2008 में लगाए गये आरोपों पर अब तक सोने वाली सीबीआई चौदह बरस बाद अचानक कैसे और क्यों सक्रिय हो गई! इसका मकसद राजनीति के अलावा और क्या हो सकता है सुशील जी? इस सवाल पर कृपया हमारा ज्ञानवर्धन करें.'

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