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सुपौल में पहली बार लालटेन जलाने की जोर आजमाइश में तेजस्वी यादव, कोसी की धार सी बदलती है यहां सियासत, जदयू को बड़ी चुनौती

सुपौल में पहली बार लालटेन जलाने की जोर आजमाइश में तेजस्वी यादव, कोसी की धार सी बदलती है यहां सियासत, जदयू को बड़ी चुनौती

पटना. पिछले तीन लोकसभा चुनावों में तीन अलग अलग सांसदों को देख चुके सुपौल में पहली बार लालटेन जलाने की तमन्ना पाले तेजस्वी यादव जोरदार चुनाव प्रचार करते दिखे. अब उसी सुपौल में 7 मई को मतदान होना है. कोसी की बदलती धारा की तरह यहां कि सियासत भी हर चुनाव में बदल जाती है. परिसीमन के बाद वर्स 2009 में पहली बार सुपौल में लोकसभा चुनाव हुए तो जदयू के विश्व मोहन कुमार ने जीत हासिल की. लेकिन पांच साल बाद 2014 में कांग्रेस की रंजीत रंजन ने जीत का परचम लहराया. हालांकि 2019 में फिर से सुपौल ने नए सांसद के रूप में जदयू के दिलेश्वर कामत को देखा. ऐसे में हर चुनाव में नए सांसद को जिताने का इतिहास रखे सुपौल में इस बार राजद को उम्मीद है कि इतिहास कायम रहेगा और लालटेन जलेगा.

समाजवादी सियासत के गढ़ रहे सुपौल में इस एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है. इन सबके बीच निर्दलीय प्रत्याशी पूर्व आईआरएस अधिकारी बैद्यनाथ मेहता त्रिकोणीय संघर्ष बनाने में जुटे हुए हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मंच के राष्ट्रीय महासचिव रहे बैद्यनाथ मेहता को यहां जातीय वोट बैंक पर भरोसा है. यही जदयू और राजद की चिंता है. करीब 19 लाख वोटरों वाले सुपौल में सियासी लड़ाई में स्थानीय चुनौतियों की जगह सियासी दलों ने जातीय समीकरणों को साधने की पूरी कोशिश की है. 

राजद ने इस बार सुपौल में दलित कार्ड खेला है और सिंहेश्वर (एससी) सीट से अपने विधायक चंद्रहास चौपाल (47) को मैदान में उतारा है. सिंहेश्वर बगल के मधेपुरा जिले में पड़ता है. ऐसे में एनडीए समर्थक उन्हें "बाहरी व्यक्ति" बताते हैं. हालाँकि जद (यू) का गढ़ रहे सुपौल में 78 वर्षीय मौजूदा सांसद दिलेश्वर कामैत को सीट बचाने की चुनौती है. पिछले लोकसभा चुनाव में दिलेश्वर ने दो लाख 66 हजार वोटों से ज्यादा के बड़े अंतर से जीत हासिल की थी. इस बार कुल 15 प्रत्याशी सुपौल की लड़ाई में है.

निर्मली, पिपरा, सुपौल, त्रिवेणीगंज (एससी), सिंघेश्वर (एससी) और छातापुर के छह विधानसभा क्षेत्रों वाले इस लोकसभा क्षेत्र में यादव, कुर्मी, मुस्लिम, भूमिहार और ब्राह्मणों के वोटों का बड़ा हिस्सा है और यही जातियां यहां चुनाव परिणाम तय करते हैं. जद (यू) से अनिरुद्ध प्रसाद यादव, राम विलास कामत, बिजेंद्र प्रसाद यादव और वीणा भारती निर्मली, पिपरा, सुपौल और त्रिवेणीगंज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. वहीं भाजपा के पास छतरपुर सीट है जहां नीरज कुमार सिंह 'बबलू' विधायक हैं. सुपौल लोकसभा क्षेत्र में राजद के पास केवल एक विधायक चौपाल में है। इस संसदीय क्षेत्र के छह में से एक विधायक बिजेंद्र यादव राज्य के ऊर्जा मंत्री हैं और उनका अपने क्षेत्र में प्रभाव है, जिसका वे 1990 से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. 

बिहार के अन्य क्षेत्रों की तरह की तरह ही यहाँ भी पलायन, तकनीकी संस्थानों की कमी, किसानों की दयनीय स्थिति प्रमुख समस्या है. वहीं जीर्ण-शीर्ण कोसी बराज और इतने वर्षों में कोई विकल्प विकसित नहीं होने वाले तटबंध क्षेत्रों में लोगों की खराब स्थिति प्रमुख समस्याएं हैं जिनके तत्काल समाधान की आवश्यकता है. लेकिन स्थानीय लोगों का गुस्सा इसे लेकर भी है कि इन मुद्दों पर कोई भी राजनीतिक दल बात नहीं करता. ऐसे में बिहार के कोसी क्षेत्र की सुपौल सीट पर भी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. इस क्षेत्र से अब तक आरजेडी नहीं जीत सकी है. अब 7 मई को होने वाले मतदान में तेजस्वी पहली बार राजद का लालटेन जलाने के लिए सुपौल में कमर कसे हैं. दूसरी ओर जदयू को अपना गढ़ बचाने की चुनौती है. 

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