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महागठबंधन को अपनी करनी का मिलेगा फल! नेताओं की आपसी खींचतान में करीब 10 सीटों का होगा नुकसान

महागठबंधन को अपनी करनी का मिलेगा फल! नेताओं की आपसी खींचतान में करीब 10 सीटों का होगा नुकसान

PATNA : एक्जिट पोल में बिहार में महागठबंधन का सूपड़ा साफ होता दिखाया जा रहा है। एक्जिट पोल में दिखाए जा रहे आंकड़े पूरी तरह से सही हो या नहीं, लेकिन यह स्पष्ट है कि बिहार में महागठबंधन की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहने वाली है। जो अनुमान है उसके अनुसार महागठबंधन के सभी घटक दलों को मिलाकर करीब 10 सीट मिलने की संभावना है।

जानकारों की माने तो जो संभावना जताई जा रही है परिणाम वैसे ही आएं तो इसके जिम्मेवार काफी हदतक महागठबंधन के नेता होंगे। क्योंकि बाहरी तौर पर बिहार में विपक्ष एकजुट होकर महागठबंधन तो बना लिया, लेकिन उनके बीच सीटों को लेकर आपसी खींचतान, वैमनस्य और अहम की लड़ाई अंदर ही अंदर पूरी चुनाव जारी रहा। 

बिहार की करीब 10 सीटों पर सीधे तौर पर महागठबंधन नेताओं की आपसी करनी का फल भुगतना पड़ेगा। क्यों कि भले हीं वो एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे लेकिन पीछे से टांग खीचनें की भरपुर कोशिश होती रही। लिहाजा उन सीटों पर बीजेपी या उसकी सहयोगी पार्टी पुरे चुनाव अभियान में बढ़त लिए दिखायी दी।

बिहार की 10 ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां महागठबंधन नेताओं की अहम की लड़ाई का फायदा सीधे तौर पर एनडीए को होता दिख रहा है। 

मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में तेजस्वी और पप्पू यादव के अहम की लड़ाई में राजद प्रत्याशी शरद यादव की नैया फंसती दिख रही है। नेताओं की अहम की लड़ाई में जदयू प्रत्याशी की जीत की संभावना है। वही हाल सुपौल की है वहां भी तेजस्वी याजव और पप्पू यादव की लड़ाई में कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत रंजन के लिए संसद पहुंचना मुश्किल हो गया है। 

मधुबनी लोकसभा क्षेत्र में महागठबंधन प्रत्याशी के खिलाफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डा. शकील अहमद निर्दलीय मैदान में उतर गए। लिहाजा उन्होंने महागठबंधन उम्मीदवार के लिए राह मुश्किल कर दी और बीजेपी प्रत्याशी के लिए राह आसान बन गया। 

शिवहर में भी अंत समय तक पेंच फंसा रहा ,आखिर में राजद ने फैसल अली को टिकट दिया जिसका उस इलाके में हीं भारी विरोध हुआ। 

सीतामढ़ी में भी पूर्व सांसद व राजद नेता सीताराम यादव ने पार्टी उम्मीदवार अर्जुन राय के खिलाफ खुलकर विरोध किया। दरभंगा में भी अगर राजद उम्मीदवार हारते हैं इसके लिए कहीं न कहीं राजद के बागी हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री अली अशरफ फातमी का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। 

पश्चिम चंपारण के महागठबंधन उम्मीदवार को भी अपने हीं नेताओं के विश्वासघात का सामना करना पड़ा है।जिस तरीके से अंत समय में प्रत्याशी घोषित किया गया और वो भी पूरी तरह से नए उम्मीदवार मैदान में उतरे ।अगर बीजेपी की जीत होती है इसमें महागठबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। 

पाटलिपुत्र में भी अगर राजद प्रत्याशी मीसा भारती की हार होती है तो कहीं न कहीं राजद नेताओं के विश्वासघात की वजह से होगी।

जहानाबाद की भी कुछ वही स्थिति है।यहां तो तेजस्वी और तेजप्रताप के अहम की लड़ाई खुलकर सामने आ गयी है।

झंझारपुर में भी मंगनी लाल मंडल को साईड कर गुलाब यादव को टिकट दे दिया गया।बेगूसराय में भी तेजस्वी यादव के अहम में लड़ाई में चुनाव त्रिकोणात्मक हो गया जिसका सीधा लाभ बीजेपी उम्मीदवार को को मिलते दिख रहा है। इसके अलावे कई ऐसे लोकसभा क्षेत्र है जहां महाघटबंधन नेताओं ने पूरी एकजुटता से चुनाव नहीं लड़ा। जिस वजह से  एनडीए बढ़ लेते हुए दिख रही है।

विवेकानंद की रिपोर्ट


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