बिहार के इस गांव का इतिहास जुड़ा है महाभारत काल से , गुरु द्रोणाचार्य यहां करते थे तपस्या

सीवान-प्राचीन काल में बिहार विशाल साम्राज्यों, शिक्षा केन्द्रों एवं संस्कृति का गढ़ था. वहीं बिहार का सीवान जिला भी अपने आप में पुरातन काल के इतिहास को समेटे हुए है. सीवान का दोन गांव ऐतिहासिक और पौराणिक गाथाओं को समेटे हुए है. महाभारत काल में कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य यहीं पर रहते थे. दोन गांव की ख्याति सीवान ही नहीं, बल्कि विश्व पटल पर भी है. गुरु द्रोणाचार्य का गुरुकुल दोन में ही था और वो यहीं पर क्षत्रियों के बालकों को शिक्षा-दीक्षा देते थे. आज भी इस गांव में उनका मंदिर मौजूद है. गांव का नाम उनके नाम पर हीं प्रसिद्ध हो गया है. बिहार का इकलौता गुरु द्रोणाचार्य का मंदिर है, जहां लोग आकर पूजा-अर्चना करते हैं
दोन गांव कालांतर में महाभारत कुरुक्षेत्र की लड़ाई के रणनीतिकार गुरु आचार्य द्रोणाचार्य के कर्मस्थली होने के नाते महाभारत के महारथियों का अड्डा हुआ करता था. माना जाता है कि यहां गुरु द्रोण का आश्रम था. जहां आचार्य द्रोणाचर्या तपस्या किया करते थे, सीवान के दोन गैंव में टीलानुमा जगह इसका गवाह है. कहा जाता है कि गुरु द्रोण से आशीर्वाद लेने के लिए धनुर्धर अर्जुन, गदाधारी भीम यहां आते थे.यहां से तीन किलोमीटर दूर कुकुरभोक्का गांव है जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि यही वो जगह है जहां एकलव्य ने कुत्ते के मुख को अपने तीरों से भेद दिया था.
दोन में भारतीय पुरातत्व विभाग एएसआई के द्वारा पूर्व में खुदाई की गई थी जिसमें आचार्य द्रोणाचार्य से जुड़ी कई महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हुई थी. यहां के लोगों के सहयोग से गुरु द्रोण का मंदिर इस टीला पर स्थापित किया गया है. खुदाई से प्राप्त सामग्री को पुरातत्व विभाग अपने साथ लेकर चले गए. अगर पुरातत्व विभाग के द्वारा इस पर ध्यान दिया जाये तो भविष्य में यह स्थान न सिर्फ पर्यटन का केंद्र हो सकता है, बल्कि इसके गर्भ में छुपी और भी जानकारियां प्राप्त हो सकती हैं.
दोन आचार्य द्रोणाचार्य की कर्मभूमि रही है. यही वजह है कि यहां उनकी प्रतिमा और मंदिर है. उनके नाम पर गांव का नाम पड़ा है. यहां दूर-दराज से पर्यटक सहित अन्य लोग मंदिर को देखने और उनके दर्शन के लिए आते हैं. एएसआई की टीम भी कई बार जाकर जांच कर चुकी है और हमेशा रिसर्चर आते रहते हैं. स्थानीय लोगों को कहना है कि वैसे तो इसकी ख्याति देश और दुनिया में फैली हुई है. महाभारत काल में भी यह अंकित है. जरूरत है कि सरकार इसको पर्यटक स्थल घोषित कर दे, जिसकी मांग इलाके के लोग लंबे समय से कर रहे हैं.