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जातीय गणना के आंकड़े जारी करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, नीतीश सरकार पर अपनी बात से मुकरने का लगा आरोप

जातीय गणना के आंकड़े जारी करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, नीतीश सरकार पर अपनी बात से मुकरने का लगा आरोप

NEW DELHI : बिहार में जातीय गणना के आंकड़ों को जारी कर राज्य सरकार अपनी सबसे बड़ी उपलब्धी मान रही है। वहीं बिहार में जातिगत सर्वे का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जाति सर्वे को लेकर याचिका मंजूर कर ली है। इस पर 6 अक्टूबर को सुनवाई होगी।

याचिका गैर-सरकारी संगठनों यूथ फॉर इक्वेलिटी और एक सोच एक प्रयास द्वारा दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने पहले भी जातिगत सर्वे रिलीज न करने के लिए अदालत से गुहार लगाई थी लेकिन, तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई आदेश नहीं दिया। याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि बिहार सरकार ने पहले जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक न करने की बात कही थी। लेकिन इसके बाद भी दो अक्टूबर को राज्य सरकार ने आंकड़े जारी कर दिए हैं।

बिहार में जातिगत सर्वे के आंकड़े बिहार सरकार ने कल जाति जनगणना के आंकड़े जारी किए जिसमें पाया गया कि राज्य की 13.1 करोड़ आबादी में से 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग, 27.1% पिछड़ा वर्ग, 19.7% अनुसूचित जाति और 1.7% अनुसूचित जनजाति से संबंधित है। सामान्य वर्ग की जनसंख्या 15.5% है। 

जाति जनगणना सर्वेक्षण के अनुसार, यादव, ओबीसी समूह जिससे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव संबंधित हैं, बिहार में सबसे बड़ा जनसंख्या समूह है, जो कुल आबादी का 14.27% है। बिहार की आबादी में 19.65% दलित या अनुसूचित जाति हैं, जिसमें अनुसूचित जनजाति के लगभग 22 लाख (1.68% ) लोग भी शामिल हैं।

इन आंकड़ों ने केंद्र और नीतीश कुमार सरकार के बीच रार को बढ़ा दिया है। केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता लगातार जनता के बीच जाकर जातिगत सर्वे को गलत राजनीति ठहरा रहे हैं। जबकि, इस मामले में आरजेडी और कांग्रेस नेता इसे जायज ठहराकर देश में भी जाति सर्वे की मांग कर रहे हैं।

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