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बहुत कठिन है डगर पनघट की... विधान सभा चुनाव परिणाम के बाद बैकफुट पर कांग्रेस, इंडी गठबंधन में बदलाव की चर्चा शुरु

बहुत कठिन है डगर पनघट की... विधान सभा चुनाव परिणाम के बाद बैकफुट पर कांग्रेस, इंडी गठबंधन में बदलाव की चर्चा शुरु

पटना- लोकसभा का सेमिफाइनल कहे जाने वाले चार राज्यों के चुनाव में भाजपा को प्रचंड जनादेश मिला है. भाजपा की तीन राज्यों में सरकार बन रही है वहीं दक्षिण में बी बाजपा को सफलता मिली है. कांग्रेस की हार ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. विपक्षी दल इस चुनाव को सेमिफाइनल बता कर लड़ रहे थे. ऐसे में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद विपक्ष के इंडी गठबंधन को लेकर भी कई सवाल खड़े हो गए है.जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख और  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले दिनों ‘इंडिया’ गठबंधन की सक्रियता में कमी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि देश के सबसे बड़े विपक्षी दल की विधानसभा चुनावों में ज्यादा दिलचस्पी है.

विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) में कांग्रेस लीडर की भूमिका में थी. लेकिन हिन्दी पट्टी मे कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त के बाद अब कांग्रेस की स्थिति क्या रहने वाली है ये देखना होगी. वैसे 6 दिसम्बर को इंडी गठबंधन की तारिख मुकर्र की गयी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपदस्थ करने की मुहिम के सूत्रधार बन कर नीतीश कुमार सामने आए थे. तब उन्होंने कांग्रेस को इस मुहिम में साथ किया था. हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर कई ऐसे दल थे जिनकी लड़ाई भी कांग्रेस के साथ थी, बंगाल में तृणमूल, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, ओडिशा में जनता दल ( बीजू), तेलंगाना में बीआरएस पर नीतीश कुमार ने क्षेत्रीय दलों को तरजीह दिया जाएगा, इसी शर्त पर इंडी गठबंधन का स्वरूप तैयार किया गया था. एमपी के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने न तो जदयू और न ही समाजवादी पार्टी को तरजीह दी.  समाजवादी पार्टी और जदयू ने अपने-अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे. तब बचाव में एक तर्क दिया गया कि इंडी गठबंधन लोक सभा चुनाव को ले कर बना है. हालाकि मध्य प्रदेश में जदयू के प्रत्याशी अपना जमानत बचाने में भी सफल नहीं रहे.

बहरहाल, पांच राज्यों खास कर हिंदी बेल्ट के तीन राज्य, राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस बैक फुट पर है. अब इंडी गठबंधन में सब कुछ ठीक-ठाक रखना है तो कांग्रेस को क्षेत्रीय क्षत्रपों को तरजीह देनी पड़ेगी.  ऐसे समय में सीएम नीतीश कुमार को छोड़ना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. नीतीश कुमार कोई हल्की समझ वाले नेता नहीं हैं. वो जो शब्द बोलते हैं बेहद सोच-समझकर बोलते हैं लेकिन इस इधर कुछ समय पहले  उन्होंने ऐसा बहुत कुछ बोला है जिस पर यक़ीन नहीं किया जा सकता कि ये सब नीतीश कुमार ने कहा है."  

इधर बीजेपी इस बार नीतीश पर हमला करने का कोई मौक़ा छोड़ते हुए नहीं दिखती है.चाहे नौकरी की बात हो या ज़हरीली शराब से मौत के बाद मुआवज़े का मामला, बीजेपी के कई नेता एक साथ नीतीश सरकार पर हमला करते हुए दिखते हैं.नीतीश कुमार ने तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी घोषित तो कर दिया है. लेकिन उनके सामने अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर भी सवाल हैं.ये सवाल वर्ष 2023 में और खुल कर आएँगे.साथ ही केंद्र की राजनीति में आने और विपक्षी एकता की उनकी कोशिशों की भी परीक्षा होगी.


 

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