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पार्टी के स्थापना दिवस सन्देश में बोले पप्पू यादव, देश का वर्तमान प्रलयंकरी और दमघोंटू विडंबनाओं के महाजाल फँसा है

पार्टी के स्थापना दिवस सन्देश में बोले पप्पू यादव, देश का वर्तमान प्रलयंकरी और दमघोंटू विडंबनाओं के महाजाल फँसा है

DARBHANGA : जन अधिकार पार्टी अपना पांचवा स्थापना दिवस मना रहा है. इसके मद्देनजर पार्टी की ओर से स्थापना दिवस सन्देश जारी किया गया है. जिसमें कहा गया है की स्वतंत्र भारत का वर्तमान ऐसी प्रलयंकरी और दमघोंटू विडंबनाओं के महाजाल फँसा पड़ा है कि आने वाले वक़्त में जब इतिहासकार आज की तवारीख लिखेंगे तो हर पन्ना लहु-सना होगा. हर पन्नों में मानवता आर्तनाद कर रही होगी. सामाजिक सौहार्द सिसक रही होगी. देश की अर्थव्यवस्था का दम घुट रहा होगा. स्त्रियों की अस्मत तार-तार हो रही होगी. धर्म जाति और राष्ट्रवाद के नाम लोग रक्तरंजित हो रहे होंगे. लोकतांत्रिक मूल्य और मानव अधिकार की अवधारणा समाप्त हो गया होगा...! ऐसा गुजर रहा है अपना वर्तमान भारत.

ऐसी दुरुह परिस्थिति में जब सियासतदार सत्ता हथियाने के लिए किसी भी हद तक नीचे गिर रहे हैं, जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) अपना पाँचवाँ स्थापना दिवस मना रहा है. इन पाँच वर्षों में जन अधिकार पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने सेवा समर्पण और संघर्ष को अपना हथियार बना कर लगातार सड़क पर डटे रहे. जिसका परिणाम है की आज बिहार का बच्चा-बच्चा, बड़े-बूढ़े, स्त्री-पुरुष, किसान-मजदूर, कर्मचारी नौकरशाह, छात्र-नौजवान, पत्रकार वक़ील, चिकित्सक शिक्षक पक्ष-विपक्ष सम्पूर्ण बिहार में जब भी कोई व्यक्ति या समाज किसी भी विकट परिस्थिति में होता है तो सबसे पहले जन अधिकार पार्टी की याद आती है.

महज पाँच वर्ष के दरम्यान में जन अधिकार पार्टी ने कई महत्वपूर्ण राजनीतिक माईलस्टोन हासिल किया है. शून्य संसाधन के बावजूद जन अधिकार पार्टी दो विधानसभा तथा एक लोक सभा चुनाव में अपनी सशक्त हस्ताक्षर दर्ज किया. एक राजनीतिक पार्टी के लिए पाँच वर्ष की आयु वैसे ही होती है जैसे मनुष्य के लिए. अपने जीवन के प्रथम पाँच वर्ष में मनुष्य बोलना चलना और ककहरा सीख रहा होता है. किंतु जन अधिकार पार्टी मानो प्रथम पाँच वर्ष में राजनीतिक विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर तक पहुँच गया है.....

पार्टी के संस्थापक राजेश रंजन उर्फ़  पप्पू यादव ने बिहार की जनता से अपील करते हुए कहा है की आज अपनी पार्टी के पाँचवे स्थापना दिवस को एक संकल्प दिवस के रूप में स्वीकार कर बिहार के धरा के मिट्टी को अपने हाथ में लेकर, मुट्ठी को अपने सीने पर रख संकल्प लें कि जब तक बिहार की राजनीति में क्रांतिकारी परिवर्तन स्थापित ना कर लें तब तक चैन की साँस नहीं लेंगे. जाति, धर्म और धन के व्यूह में फँसकर जर्जर हो चुकी राजनीतिक / लोकतांत्रिक मूल्य क्रांति के लिए चित्कार रही है. क्रांति के इस चित्कार को हर घर, हर व्यक्ति तक पहुंचाना है और नया बिहार बनाना है. 

दरभंगा से वरुण ठाकुर की रिपोर्ट

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