कुलपतियों की नियुक्ति विवाद का समाधान,राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच बातचीत के बाद निकला समाधान

कुलपतियों की नियुक्ति विवाद का समाधान,राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच बातचीत के बाद निकला समाधान

पटना- बिहार के विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति को लेकर नीतीश सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव और विवाद समाधान हो गया है. बुधवार को राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर और  सीएम नीतीश कुमार की मुलाकात और बातचीत के बाद विवाद समाप्त माना जा रहा है. बुधवार शाम को पांच बजे राजभवन में राज्यपाल से मुख्यमंत्री ने मुलाकात की,  राज्य के उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालय से संबंधित विषयों पर समाधान विमर्श की जानकारी राजभवन सचिवालय की ओर से जानकारी दी गई.

राज्यपाल सह कुलाधिपति के अधिकार क्षेत्र में शिक्षा विभाग के हस्तक्षेप, बीआरबीए अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति और प्रतिकुलपति के वेतन बंद करने और उनके वित्तीय अधिकार पर रोक लगाने और विश्वविद्यालय के बैंक खातों को फ्रीज करने संबंधी जानकारी मुख्यमंत्री को दी गई.मुख्यमंत्री को यह भी बताया गया कि जब आदेश वापस लेने के लिए विभाग से कहा गया तो आदेश वापस लेने से शिक्षा विभाग ने इंकार कर दिया. इससे राजभवन कार्यालय के समक्ष असहज स्थिति पैदा हो गई है. राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच समाधानपूर्ण बाते हुईं. माना जा रहा है कि राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर और  सीएम नीतीश कुमार की मुलाकात के बाद विवाद थम जाएगा.

बता दें बिहार के विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति को लेकर नीतीश सरकार और राज्यपाल 13 साल बाद फिर आमने-सामने हो गए . शिक्षा विभाग और राजभवन द्वारा कुलपति की नियुक्ति के लिए अलग-अलग विज्ञापन निकाले गए. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि कुलपति की नियुक्ति कौन करेगा? साल 2010 में भी तत्कालीन राज्यपाल देवानंद कुंवर के समय भी इसी तरह का विवाद उठा था. तब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था. 2013 में शीर्ष अदालत ने इस विवाद को खत्म करते हुए कुलपतियों की नियुक्ति की प्रक्रिया को स्पष्ट किया था. 

राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने हाल ही में शिक्षा विभाग के एक विश्वविद्यालय के कुलपति और प्रति-कुलपति के वेतन को रोकने और उनके बैंक खातों को फ्रीज करने के आदेश को "मनमाना" और "विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर हमला" करार दिया था. राजभवन ने इसे वापस लेने का निर्देश दिया. इसके बाद शिक्षा विभाग ने इस पर सवाल उठाया है. 

विभाग के सचिव बैद्यनाथ यादव के पत्र में कहा गया है, "विभाग अपने पहले के आदेशों को वापस लेने में असमर्थ है और विश्वविद्यालयों पर अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए बाध्य है." “कृपया बताएं कि बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की किस धारा के तहत 'स्वायत्तता' को परिभाषित किया गया है और विश्वविद्यालयों को 'स्वायत्त' बनाया गया है. इसके अलावा, जब राज्य सरकार विश्वविद्यालयों को हजारों करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करती है, तो वह तथाकथित 'स्वायत्तता' की आड़ में विश्वविद्यालयों में अराजकता की अनुमति नहीं दे सकती."

सचिव के पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्य सरकार विश्वविद्यालयों को सालाना 4000 करोड़ रुपये का अनुदान देती है और इसलिए, विभाग को विश्वविद्यालयों से जवाबदेही मांगने का अधिकार है कि करदाताओं का पैसा कैसे और कहां खर्च किया जाता है. मौजूदा मामले में बीआरए बिहार विश्वविद्यालय (मुजफ्फरपुर) बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 4 (2) के तहत अनिवार्य परीक्षा आयोजित करने के अपने मौलिक दायित्व में चूक गया. इसके अलावा, विश्वविद्यालय सभी विभागों, कॉलेजों का निरीक्षण करने के अपने प्राथमिक दायित्व में चूका है. राज्य सरकार न केवल करदाताओं बल्कि छात्रों और उनके अभिभावकों के प्रति भी जिम्मेदार और जवाबदेह है. इसलिए जब कोई विश्वविद्यालय अपने प्राथमिक उद्देश्य में विफल रहता है, तो राज्य सरकार हस्तक्षेप करने, उससे रिपोर्ट मांगने और बैठकें बुलाने के लिए बाध्य है. 

 

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