पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि विभागीय जांच में किसी कर्मचारी को गवाहों एवं दस्तावेजी साक्ष्य साबित किए बगैर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जस्टिस विवेक चौधरी ने गया के निवासी राज कुमार राम की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय पारित किया।
हाई कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए गया के डीएम को याचिकाकर्ता के पेंशन एवं अन्य लाभ 60 दिनों के भीतर देने का निर्देश दिया है । याचिकाकर्ता जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में चपरासी के पद पर कार्यरत था।विजिलेंस ब्यूरो ने याचिकाकर्ता को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा । याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 के तहत विजिलेंस का मामला दर्ज किया गया।
इसके बाद विभागीय जांच शुरू की गई और जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए आरोप में दोषी पाया। अनुशासनिक प्राधिकारी ने याचिकाकर्ता के सेवानिवृत्ति लाभ से 100% पेंशन जब्त करने का आदेश पारित किया।
इसके विरुद्ध याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता इन्दु भूषण ने कोर्ट को बताया कि आरोप ज्ञापन में उन गवाहों की सूची नहीं थी, जिनके माध्यम से विभाग याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप साबित करने का प्रस्ताव रखता है।