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अटल बिहारी वाजपेयी की मौजूदगी में लालू के दल के इस सांसद ने कभी फाड़ी थी महिला आरक्षण बिल की कॉपी , जानें महिला आरक्षण बिल का कालचक्र

अटल बिहारी वाजपेयी की मौजूदगी में लालू के दल के इस सांसद ने कभी फाड़ी थी महिला आरक्षण बिल की कॉपी , जानें महिला आरक्षण बिल का कालचक्र

दिल्ली- सोमवार शाम केंद्रीय कैबिनेट की बैठक भी हुई.  मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंज़ूरी दे दी है. यह बिल पिछले 27 साल से लटका हुआ है. इसके साथ कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार संसद में महिला आरक्षण बिल लाने जा रही है. महिला आरक्षण बिल केंद्रीय राजनीति का अहम मुद्दा रहा है. इससे पहले भी संसद में यह बिल 1996 में पहली बार एचडी देवगौड़ी की सरकार  संसद में लेकर आई थी.  इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार भी चार बार ये बिल सदन में लेकर आई लेकिन पारित नहीं हो सका. साल 1998 में जब यह बिल संसद में आया तो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की पार्टी के एक सांसद ने ऐसा कारनामा किया कि यह आज भी लोकतांत्रिक इतिहास के काले पन्नों में दर्ज है. राजद से सांसद सुरेंद्र यादव ने लालकृष्ण आडवाणी के हाथ से महिला आरक्षण बिल की कॉपी लेकर फाड़ दी थी. यह घटना संसद के इतिहास में आज भी काले दाग के रूप में दर्ज है.उसके बाद सुरेंद्र यादव कभी लोकसभा नहीं पहुंच पाए. बिल फाड़ने के बाद सुरेंद्र यादव का कहना था कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर उनके सपने में आए थे और उन्हें कहा कि संविधान खतरे में है, इसलिए उन्होंने बिल की कॉपी फाड़ दी.13 जुलाई 1998, संसद में तत्कालीन कानून मंत्री एम थंबी दुरैई महिला आरक्षण विधेयक पेश किया था. बिल पेश करते ही राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया. सदन में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी मौजूद थे. दोनों दलों के सांसद नारेबाजी करते हुए वेल में पहुंच गए. अचानक आरजेडी के सांसद सुरेंद्र प्रसाद यादव लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास लपके और बिल की कॉपी को सदन में फाड़ दिया. उनकी इस हरकत को देख सभी सांसद आश्चर्य में पड़ गए थे . बता दें  1998 में सुरेंद्र यादव बिहार के जहानाबाद लोकसभा सीट से जीतकर सांसद बने थे.

महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है. उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था. लेकिन पारित नहीं हो सका था. यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था.बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था. इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था.इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए. आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं.इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण ख़त्म हो जाएगा.

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था. इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा.वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की. लेकिन सफल नहीं हुई.

यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया. वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ. भाजपा, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था.यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया. इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं.कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है.यूपीए सरकार ने 2010 में महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में पेश किया. लेकिन सपा-राजद ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी. इसके बाद बिल पर मतदान स्थगित कर दिया गया. बाद में नौ मार्च 2010 को राज्यसभा ने महिला आरक्षण बिल को एक के मुकाबले 186 मतों के भारी बहुमत से पारित किया. जिस दिन यह बिल पारित हुई उस दिन मार्शल्स का इस्तेमाल हुआ.

2010 में यूपीए कार्यकाल के दौरान यह बिल राज्यसभा से पारित हो गया था, लेकिन लोकसभा में अटक गया. अब नरेंद्र मोदी सरकार इस बिल को नए सिरे से संसद में फिर से पेश करने जा रही है. संसद के विशेष सत्र के दौरान बुधवार को यह बिल पेश किया जा सकता है. कई दल इस बिल के समर्थन में नजर आ रहे हैं. ऐसे में इस बार यह बिल संसद के दोनों सदनों से पारित होने की उम्मीद है. अगर बिल पारित हो जाता है तो महिलाओं को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में 33 फीसदी आरक्षण मिल जाएगा.

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