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बिहार की दशा और दिशा बदलने के लिए 23 हजार करोड़ मार्केट से कर्ज लेगी बिहार सरकार, कुल बकाया ऋण निर्धारित सीमा के अंदर..

बिहार की दशा और दिशा बदलने  के लिए 23 हजार करोड़ मार्केट से कर्ज लेगी बिहार सरकार, कुल बकाया ऋण निर्धारित सीमा के अंदर..

PATNA- लोकसभा 2024 का चुनावी बिगुल बजने में कुछ माह शेष हैं. ऐसे में बिहार सरकार 23 हजार करोड़ बाजार से ऋण लेने वाली है.इसके लिए बिहार सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक को अनुरोध पत्र भेज दिया है. वहीं हर वर्ष बिहार पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है.इसके कारण प्रति व्यक्ति ऋण में भी इजाफा हुआ है.रिजर्व वैंक ने बिहार सरकार की मांग को ध्यान में रखते हुए आरबीआई ने जनवरी से मार्च की तिमाही में करीब हर सप्ताह दो हजार करोड़ की प्रतिभूति की बोली लगाएगा. सबसे आसान शर्त और बोली लगाने वाले वित्तीय निकाय से 23 हजार करोड़ की राशि बिहार सरकार को तय समय में दिलाई जाएगी.अधिकारियों का कहना है कि कर्ज की राशि 15 वें वित्त आयोग के तय मानक के अनुसार हीं लिया जा रहा है.बता दें फाइनेंस कमिशन की ओर से बिहार के लिए यह लिमिट राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का चालिस प्रतिशत है. बता दें पंद्रहवे  वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार वित्तीय साल 2023-24 के लिए बिहार को कुल बकाया ऋण जीएसडीपी के अनुपात का 40.4 प्रतिशत की सीमा में रखना है.

 आरबीआई एजी और राज्य सरकार के स्त्रोतों के अनुसार बिहार देश के सबसे अधिक कर्ज लेने वाले राज्यों में शामिल  है. बिहार का कर्ज हर साल बढ़ रहा है. 2021-22 में 2 लाख 59 हजार करोड़ बिहार पर कर्ज था जो 2022-23 में बढ़कर 2 लाख 85 हजार करोड़ होने का अनुमान लगाया जा रहा है.बिहार के कुल कर्ज में हर साल 10% के आसपास बढ़ोतरी हो रही है, जबकि राजस्व की बात करें तो 5% के आसपास इजाफा हो रहा है. बिहार के जीडीपी का कुल कर्ज 38.6% तक पहुंच गया है. बढ़ते कर्ज के कारण हर साल बिहार को सूद के रूप में बड़ी राशि चुकानी पड़ रही है. 3 साल पहले तक बिहार के प्रत्येक व्यक्ति पर कर्ज 12 से 13 हजार था लेकिन अब यह बढ़कर 15 हजार से 16 हजार के करीब पहुंच गया है. 2022- 23 के बजट में कर्ज का सूद चुकाने के लिए 16305 करोड़ का प्रावधान करना पड़ा यानी हर दिन कर्ज का सूद 45 करोड़ का वहन सरकार कर रही है.

अर्थशास्त्री डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार यदि कर्ज उन योजनाओं में लगाए जा रहा है,जिससे लाभ मिलेगा तब तो ठीक है.राज्य सरकारें कर्ज लेती है और ब्याज भी चुकाती हैं लेकिन एक अनुपात के बाद यदि कर्ज बढ़ता है तो बजट के लिए  वह बोझा बन जाता है.डीएवी महाविद्यालय के अर्थशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ रामानंद पाण्डेय ने कहा कि बिहार के बजट को देखें तो एक बड़ा हिस्सा ब्याज अदायगी में देना पड़ रहा है.डॉ पाण्डेय का यह भी कहना है कि बिहार उसी स्थिति में आ गया है जहां अब कर्ज नहीं लेना चाहिए.

डॉ रामानंद पाण्डेय ने कहा कि बिहार पर कर्ज को लेकर दबाव है.बिहार सरकार को राजस्व उगाही पर ध्यान देना चाहिए और इसके लिए उन क्षेत्रों का चयन करना चाहिए जहां टैक्स अभी नहीं लिया जा रहा है.डॉ पाण्डेय के अनुसार सूक्ष्म उद्योग के लिए क्लस्टर बनाने पर भी जोर देना चाहिए जिससे निवेशक आकर्षित हों और बिहार को राजस्व प्राप्त हो सके


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