PATNA : लगभग चार महीन के इंतजार के बाद आखिरकार नीतीश कुमार- लालू प्रसाद के ड्रीम प्रोजेक्ट माने जानेवाले जातीय सर्वे को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पटना हाई कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा। पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने इस सम्बन्ध में 3 जुलाई 2023 से पांच दिनों की लम्बी सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रखा था।
पांच दिन तक चली थी बहस
पिछली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत किया था.उन्होंने कहा कि ये सर्वे है, जिसका उद्देश्य आम नागरिकों के सम्बन्ध आंकड़ा एकत्रित करना है, जिसका उपयोग उनके कल्याण और हितों के लिए किया जाना है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि जाति सम्बन्धी सूचना, शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश या नौकरियां देने के समय भी दी जाती है। एडवोकेट जनरल शाही ने कहा कि जातियां समाज का हिस्सा हैं, उन्होंने कहा कि हर धर्म में अलग अलग जातियाँ होती है।
सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि इस सर्वेक्षण के दौरान किसी भी तरह की कोई अनिवार्य रूप से जानकारी देने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा रहा है। जातीय सर्वेक्षण का कार्य लगभग 80 फीसदी पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि ऐसा सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है।
राज्य सरकार को अधिकार नहीं
इससे पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है। याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है। ये असंवैधानिक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
वहीं अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को ये भी बताया था कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही हैं. उन्होनें ने बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। उन्होंने बताया था कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पाँच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है।
बता दें मार्च में हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार द्वारा की जा रही जातीय व आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दिया था। कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है। कोर्ट ने ये भी पूछा था कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं। साथ ही ये भी जानना कि क्या इससे निजता का उल्लंघन होगा। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी बिहार सरकार को निर्देश दिया था कि वह पहले हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार करें। ऐसे में अगर फैसला सरकार के पक्ष में नहीं आता है तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाएगा। ऐसे में सरकार को और इंतजार करना पड़ जाएगा।