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जब अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद से मिला था अपराध और सियासत का कॉकटेल शहाबुद्दीन , 19 साल पुरानी पुलिस फाइल की सच्चाई जान लीजिए

जब अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद से मिला था अपराध और सियासत का कॉकटेल शहाबुद्दीन , 19 साल पुरानी पुलिस फाइल की सच्चाई जान लीजिए

DESK : भारत और पाकिस्तान में राजनीतिक प्रतिष्ठान, खुफिया विभाग और मीडिया में सोमवार सुबह से अटकलें हैं कि भगोड़े आतंकवादी दाऊद इब्राहिम कास्कर को 26 दिसंबर को उसके 68वें जन्मदिन से लगभग एक सप्‍ताह पहले कथित तौर पर कराची के एक अस्पताल में जहर दिया गया है और उसकी हालत गंभीर है.   पाकिस्‍तान की सरकार ने इसे लेकर कोई बयान नहीं दिया है. पाकिस्तान में रविवार रात से ही इंटरनेट सर्विस डाउन है.पाकिस्तान में सोशल मीडिया भी ठीक से काम नहीं कर रहा है. बताते हैं बिहार के एक समय के बाहुबली सांसद की जिसने अंडरवर्ल्ड के डॉन दाऊद इब्राहिम से  20 साल पहले भेट किया था, जिसका जिक्र आज भी पुलिस की  फाइल में दर्ज है.साल 2003 में पुलिस मुख्यालय की ओर से सरकार को सौंपी गई एक रिपोर्ट में माफिया डॉन दाऊद इब्राहीम और बाहुबली शहाबुद्दीन के मुलाकात का जिक्र है. शहाबुद्दीन ने दाऊद इब्राहिम से साल 2001 में मक्का  में मुलाकात की थी. ये फाइल बिहार के तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा के कार्यकाल में तैयार की गई थी.

265 पन्ने की सीक्रेट रिपोर्ट में शहाबुद्दीन का D कंपनी के मालिक दाऊद इब्राहिम, कश्मीरी आतंकवादी और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से रिश्तों का खुलासा है. उस वक्त लालू से शहाबुद्दीन के मतभेद की खबरें थीं और कई अपराधिक मामलों के आरोप में जेल में बंद राजद के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद शहाबुद्दीन से जुड़ी फाइलों को इकट्ठा किया गया था. तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा के कार्यकाल में पुलिस मुख्यालय ने ये रिपोर्ट सरकार के सामने रखी थी.तब बिहार की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं. डीपी ओझा ने राज्य सरकार को सलाह दी थी कि ये काफी संवेदनशील मामला है, केंद्र सरकार की भी मदद लें.शहाबुद्दीन को लेकर रिपोर्ट को पेश करना और सरकार को सलाह देना डीपी ओझा को काफी महंगा पड़ा. उन्हें अपने डीजीपी के पद से हटा दिया गया इसका खुलासा खुद ओझा ने किया था.



2001 में राज्यों में सिविल लिबर्टीज के लिए पीपुल्स यूनियन की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि राजद सरकार कानूनी कार्रवाई के दौरान शहाबुद्दीन को संरक्षण दे रही थी. सरकार के संरक्षण में वह खुद ही कानून बन गए थे. सरकार की ताकत ने उन्हें एक नई चमक दी थी. पुलिस शहाबुद्दीन की आपराधिक गतिविधियों की तरफ से आंखे बंद किए रहती थी. शहाबुद्दीन का आतंक इस कदर था कि किसी ने भी उस दौर में उनके खिलाफ किसी भी मामले में गवाही देने की हिम्मत नहीं की. सीवान जिले को वह अपनी जागीर समझते थे. जहां उनकी इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था. ताकत के नशे में चूर मोहम्मद शहाबुद्दीन इतना अभिमानी हो गए थे कि वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कुछ नहीं समझते थे. आए दिन अधिकारियों से मारपीट करना उनका शगल बन गया था. यहां तक कि वह पुलिस वालों पर गोली चला देते थे. मार्च 2001 में जब पुलिस राजद के स्थानीय अध्यक्ष मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट तामील करने पहुंची थी तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तारी करने आए अधिकारी संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया था. और उनके आदमियों ने पुलिस वालों की पिटाई की थी.

मनोज कुमार पप्पू प्रकरण से पुलिस महकमा सकते में था. पुलिस ने मनोज और शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी करने के मकसद से शहाबुद्दीन के घर छापेमारी की थी. इसके लिए बिहार पुलिस की टुकड़ियों के अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद भी ली गई थी. छापे की उस कार्रवाई के दौरान दो पुलिसकर्मियों समेत 10 लोग मारे गए थे. पुलिस के वाहनों में आग लगा दी गई थी. मौके से पुलिस को 3 एके-47 भी बरामद हुई थी. शहाबुद्दीन और उसके साथी मौके से भाग निकले थे. इस घटना के बाद शहाबुद्दीन पर कई मुकदमे दर्ज किए गए थे.

2000 के दशक तक सीवान जिले में शहाबुद्दीन एक समानांतर सरकार चला रहे थे. उनकी एक अपनी अदालत थी. जहां लोगों के फैसले हुआ करते थे. वह खुद सीवान की जनता के पारिवारिक विवादों और भूमि विवादों का निपटारा करते थे. यहां तक के जिले के डॉक्टरों की परामर्श फीस भी वही तय किया करते थे. कई घरों के वैवाहिक विवाद भी वह अपने तरीके से निपटाते थे. वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कई जगह खास ऑपरेशन किए थे. जो मीडिया की सुर्खियां बन गए थे.1999 में एक सीपीआई (एमएल) कार्यकर्ता के अपहरण और संदिग्ध हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को लोकसभा 2004 के चुनाव से आठ माह पहले गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन चुनाव आते ही शहाबुद्दीन ने मेडीकल के आधार पर अस्पताल में शिफ्ट होने का इंतजाम कर लिया. अस्पताल का एक पूरा फ्लोर उनके लिए रखा गया था. जहां वह लोगों से मिलते थे, बैठकें करते थे. चुनाव तैयारी की समीक्षा करते थे. वहीं से फोन पर वह अधिकारियों, नेताओं को कहकर लोगों के काम कराते थे. अस्पताल के उस फ्लोर पर उनकी सुरक्षा के भारी इंतजाम थे.

हालात ये थे कि पटना हाई कोर्ट ने ठीक चुनाव से कुछ दिन पहले सरकार को शहाबुद्दीन के मामले में सख्त निर्देश दिए. कोर्ट ने शहाबुद्दीन को वापस जेल में भेजने के लिए कहा था. सरकार ने मजबूरी में शहाबुद्दीन को जेल वापस भेज दिया लेकिन चुनाव में 500 से ज्यादा बूथ लूट लिए गए थे. आरोप था कि यह काम शहाबुद्दीन के इशारे पर किया गया था. लेकिन दोबारा चुनाव होने पर भी शहाबुद्दीन सीवान से लोकसभा सांसद बन गए थे. लेकिन उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले जेडी (यू) के ओम प्रकाश यादव ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी. चुनाव के बाद कई जेडी (यू) कार्यकर्ताओं की हत्या हुई थी.  

साल 2004 के चुनाव के बाद से शहाबुद्दीन का बुरा वक्त शुरू हो गया था. इस दौरान शहाबुद्दीन के खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए. राजनीतिक रंजिश भी बढ़ रही थी. नवंबर 2005 में बिहार पुलिस की एक विशेष टीम ने दिल्ली में शहाबुद्दीन को उस वक्त दोबारा गिरफ्तार कर लिया था जब वह संसद सत्र में भागेदारी करने के लिए यहां आए हुए थे. दरअसल उससे पहले ही सीवान के प्रतापपुर में एक पुलिस छापे के दौरान उनके पैतृक घर से कई अवैध आधुनिक हथियार, सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी शस्त्र फैक्ट्रियों में बने हथियार बरामद हुए थे. हत्या, अपहरण, बमबारी, अवैध हथियार रखने और जबरन वसूली करने के दर्जनों मामले शहाबुद्दीन पर हैं. अदालत ने शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

 

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