पटना. बिहार में एक कहावत है रोम पोप का तो मधेपुरा गोप का। जी हां, गोप प्रभावित इस संसदीय सीट पर जहां से बड़े-बड़े राजनेता ने जीत का परचम लहराया है तो दूसरी तरफ इसी जमीन पर उन्हें जबरदस्त हार का सामना भी करना पड़ा है. वह भी एक दफा नहीं चार-चार बार, चाहे समाजवादी राजनीति के पुरोधा बीपी मंडल हों तथाकथित सामाजिक न्याय के मसीहा लालू यादव हों या फिर मंडल राजनीति के उपज शरद यादव। सब के सब सियासत के एक से एक नामी धुरंधर जिनकी वजह से मधेपुरा का नाम राष्ट्रीय राजनीति की क्षितिज पर चमका उन्हें यहां की जनता ने उसी तर्ज पर हराया भी।
गौरतलब है कि वर्तमान में पूर्णिया से चुनाव लड़ रहे पप्पू यादव भी यहां से दो बार सांसद रह चुके हैं। लेकिन इसी जमीन पर पप्पू यादव ने अपने दम पर 2019 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा में चुनावी या अखाड़े में किस्मत आजमाने की कोशिश की तो मधेपुरा की जनता ने ऐसी पटखनी दी की बेचारे अपनी सीट बदलने पर ही मजबूर हो गए। राजद सुप्रीमो लाल यादव और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव उन्हें मधेपुरा से लड़ने का खुला ऑफर देते रहे लेकिन पप्पू यादव ने मधेपुरा से चुनाव लड़ने से ही मना कर दिया।
इसी तरह समाजवादी पुरोधा बीपी मंडल जो मंडल आयोग के अध्यक्ष के रूप में पूरे देश में चर्चित हुए उन्हें भी मधेपुरा से दो दो बार चुनावी हार का सामना करना पड़ा । गौरतलब है कि मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही आरक्षण लागू किया गया था। बता दें कि 1978 में जनता पार्टी की सरकार द्वारा मंडल आयोग का गठन बीपी मंडल की अध्यक्षता में किया गया था। बीपी मंडल ने मंडल आयोग के अध्यक्ष के तौर पर काम करते हुए 1980 में रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी थी. हालांकि इसके बाद इन्हें मधेपुरा से ही हार का सामना करना पड़ा और चुनाव परिणाम में तीसरे स्थान पर रहने को मजबूर हो गए। बीपी मंडल 1967 ,1968 व 1977 में सांसद बने थे जबकि 1971 के चुनाव में उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा था । उस समय कांग्रेस के आर पी यादव ने इन्हें पराजित किया था। मंडल कमीशन की रिपोर्ट सौंपने के बाद भी 1980 में कांग्रेस के उम्मीदवार आरपी यादव नहीं इन्हें हराया था।
लालू यादव ने तीन बार आजमाई मधेपुरा से किस्मत
आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी यहां से तीन-तीन बार किस्मत अजमाई। तीनों ही बार इनका मुकाबला शरद यादव से हुआ। बता दें कि लालू प्रसाद यादव 1998 में मधेपुरा से पहली बार चुनावी अखाड़े में उतरे । उस दौरान उनकी टक्कर राष्ट्रीय कद के समाजवादी नेता शरद यादव से हुई इसकी चर्चा पूरे देश में हुई थी के 1998 में शरद यादव को लालू यादव ने हराकर लोकसभा का रास्ता तय किया. हालांकि 1999 में हुए मध्यावधि चुनाव में राजद सुप्रीमो का को हार का सामना करना पड़ा। 2004 में भी लालू प्रसाद यादव ने यहां से बाजी मारी थी । हालांकि एक ही साथ छपरा से चुनाव जीतने के कारण लालू यादव ने मधेपुरा की सीट छोड़ दी थी। जबकि 2004 में लालू प्रसाद यादव के द्वारा मधेपुरा सीट छोड़े जाने की वजह से मधेपुरा उपचुनाव में राजद ने पप्पू यादव को प्रत्याशी बनाया और वे जीतने में कामयाब हुए।
शरद चार बार जीते और चार बार हारे
समाजवाद की राजनीति की कोख से निकले राष्ट्रीय स्तर के नेता शरद यादव ने भी मधेपुरा के सियासी मैदान में खूब लड़ाई लड़ी। शरद यादव यहां से एक तरफ चार बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे तो वह उतनी ही दफा वे पराजित भी हुए। शरद को मधेपुरा से 1998 और 2004 में लालू प्रसाद यादव से हार का सामना करना पड़ा था. वहीं 2014 और 2019 में भी पराजित हुए. 1991 और 1996 में जनता दल के टिकट पर शरद यादव ने जीत दर्ज की. 1999 के चुनाव में शरद यादव ने जदयू के टिकट पर जीत हासिल की. 2009 में फिर शरद यादव की वापसी हुई और मधेपुरा से जीतने में सफल रहे.
मधेपुरा में फिर से गोप में मुकाबला
लोकसभा चुनाव 2024 में भी मधेपुरा में मुख्य मुकाबला दो यादव उम्मीदवारों के बीच ही है. यहाँ जदयू ने निवर्तमान सांसद दिनेश चन्द्र यादव को उम्मीदवार बनाया है. वहीं राजद की ओर से डॉ कुमार चंद्रदीप प्रत्याशी हैं. मधेपुरा के जातीय समीकरण पर नजर डाले तो यहां सबसे अधिक आबादी यादव की है. इसके बाद मुस्लिम, ब्राह्मण और राजपूत वोटर हैं. इस सीट पर दलित, कुर्मी कोयरी वोटर की संख्या भी ठीक-ठाक है. मधेपुरा में 2019 के चुनावों में, जेडीयू के दिनेश चंद्र यादव ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले शरद यादव को 3 लाख से अधिक वोटों से हराया था. 2019 के चुनाव में जेडीयू प्रत्याशी को 54.42% और आरजेडी प्रत्याशी को 28.14% वोट हासिल हुए थे. तब पप्पू यादव को 97 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. ऐसे में इस बार के चुनाव में फिर से दो यादवों के बीच मधेपुरा में प्रतिष्ठा की लड़ाई फंसी हुई है.
- कौशलेंद्र प्रियदर्शी