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नीतीश को नेतृत्व देने से क्यों पीछे हटी इंडिया, इतिहास से सबक लेकर नहीं लिया रिस्क

नीतीश को नेतृत्व देने से क्यों पीछे हटी इंडिया, इतिहास से सबक लेकर नहीं लिया रिस्क

मुंबई में दो दिनों तक चली विपक्षी गठबंधन इंडिया की बैठक. बैठक में विपक्षी दलों की कोशिश थी कि वे एकजुट होकर वह चुनाव मैदान में उतरेंगे. समितियां भी बन गई हैं,  30 सितंबर तक राज्य स्तर पर सीटों का बंटवारा कर लिए जाने की भी बात की जा रही है. इंडिया गठबंधन के नेताओं ने  दो अक्टूबर से चुनावी अभियान भी शुरू करने की बात है. लेकिन सबसे सवाल है कि मुंबई की सड़कों पर लगे पोस्टरों के विवाद सुलझ गए, महागठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा.

याद दिला दें पहली बैठक पटना में इसमें अरविंद केजरीवाल गुसाए तो बैंगलोर की दूसरी बैठक में नीतीश लाल हुए वहीं तीसरी बैठक में ममता ने तलवार खिंच ली.ऐसे में सवाल सबसे बड़ा है कि महागठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा.

मुंबई की बैठक से ठीक पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद के तौर पर स्वीकार करने के लिए दबाव बनाया तो मुंबई की सड़कों पर 'देश मांगे नीतीश' के पोस्टर लग गए. ऐसे में शिवसेना की ओर से संजय निरूपम राहुल गांधी को ही प्रधानमंत्री बनाने की मांग करने लगे. प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर घमासान थमता नजर नहीं आ रहा है. ममता बनर्जी के भी समर्थक भी पीएम पद की उनकी दावेदारी को लेकर ताल ठोक रहे हैं.

याद कीजिए साल 996 का आम चुनाव. उस समय विपक्ष ने एकजुट होकर लड़ने की तैयारी की.इससे कांग्रेस अलग थी.इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ा दल बनकर उभरी लेकिन उसे शिवसेना के अलावा किसी ने समर्थन नहीं दिया तो फिर सरकार बनाने की जिम्मेदारी गठबंधन वाले दलों के कंधों पर आ गई.उस समय लालू यादव, मुलायम यादव, शरद यादव, ज्योति बसु जैसे तमाम राजनीति के दिग्गज प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल थे. किसी के नाम पर बात नहीं बनी तो देवेगौड़ा के नाम पर सहमति बना.सरकार कितने दिन चली य् बताने की जरुरत नहीं.बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस ने ऐसा दाव खेला कि देवेगौड़ा एक सालपूरा किए बिना हीं  सत्ता से बाहर हो गए.कांग्रेस चाहत थी कि देवगौड़ा के बाद उसके नेता के नाम पर सहमति बनेगी.बात बनी नहीं और इंद्रकुमार गुजराल पीमएम बने जो साल पूरा नहीं कर पाए.

इतिहास गवाह है कि पहले जितनी बार कांग्रेसी समर्थन से सरकारे बनी हैं, उन सरकारों की ज़ड़ नहीं जम पायी.  चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, देवेगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल की सरकारों का क्या हश्र हुआ बताने की जरुरत नहीं हैं.वहीं कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी तो उसने पूरे समय राज किया. मुंबई की बैठक में राहुल को छोड़ कर तीन नाम और उभरे शायद इसी कारण इंजिया महागठबंधन का कोई संयोजक नहीं बन पाया. उस कारण हीं उपसमितियां बनाने की नौबत आयी. 

लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का चेहरा है और विपक्ष का चेहरा कौन होगा अभी पता नहीं है. महागठबंधन का कोई संयोजक बनता तो वही चेहरा बन जाता. यहीं कारण है कि संयोदक के नाम की घोषणा नहीं हुई.कांग्रेस की ओर से संयोजक बनना विपक्षी गठबंधन के दूसरे नेताओं को पसंद नहीं, सिवा लालू के। नीतीश, ममता और शरद पवार संयोजक की दौड़ में आगे दिखते हैं.

मोदी के सामने राहुल गांधी को चेहरा बनाने से कांग्रेस बच रही. वहीं वह किसी और को चेहरा बनाने से परहेज भी कर रहा. ऐसे में कम हीं संभावना लगती है कि विपक्ष किसी एक को नेता मान कर चुनाव लड़ेगा.  


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