केंद्र सरकार ने बिहार के जाति सर्वेक्षण पर अपने कदम क्यों पीछे खींचे ... जानिए क्यों मोदी सरकार आई बैकफुट पर

पटना. केंद्र सरकार ने बिहार में जातिगत सर्वे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे को सोमवार को अचानक से वापस ले लिया. एक ही दिन दूसरा हलफनामा भी दायर कर दिया. इसके साथ ही जाति सर्वे के रास्ते में आने वाली केंद्र के स्तर की बाधा दूर हो गई. ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया.
केंद्र द्वारा बिहार जाति सर्वेक्षण का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा जारी करने के कुछ ही घंटों बाद उसने 'अनजाने में हुई त्रुटि' का हवाला देते हुए अपने पिछले बयानों से पीछे हटने का फैसला किया है। केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संबंधित कानून के तहत जनगणना कराने का अधिकार केवल उसे है, क्योंकि यह विषय संविधान की संघ सूची के अंतर्गत आता है। बिहार में जाति सर्वेक्षण को हरी झंडी देने के लिए पटना हाई कोर्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह के संबंध में दायर एक हलफनामे में केंद्र ने कहा कि भारत संघ एससी/एसटी के उत्थान के लिए सभी तरह की कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है।
अब केंद्र सरकार ने वापस लिया हलफनामा : केंद्र ने जल्द ही अपना हलफनामा वापस लेने का फैसला किया है। केंद्र ने कहा कि बिहार के जाति सर्वे का विरोध करने वाले कुछ पैराग्राफ 'अनजाने में रह गए' थे और केंद्र सरकार अब इसे वापस लेना चाहती है। सरकार द्वारा दायर नए हलफनामे में कहा गया है कि जनगणना एक वैधानिक प्रक्रिया है और जनगणना अधिनियम 1948 द्वारा शासित होती है। इसमें कहा गया है कि जनगणना का विषय सातवीं अनूसूची की प्रविष्टि 69 के तहत संघ सूची में शामिल है।
क्या कहता है जनगणना अधिनियम : जनगणना अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है कि केंद्र सरकार, आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम का विस्तार करने वाले क्षेत्रों के पूरे या किसी भी हिस्से में जनगणना करने के अपने इरादे की घोषणा कर सकती है। जब भी वह इसे आवश्यक समझे या ऐसा करना वांछनीय लगे तो जनगणना की जाएगी। फिलहाल केंद्र का रुख वापस लेना ऐसे समय आया है जब पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं।